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सन्निधि संगोष्ठी में आप सभी का स्वागत एवं अभिनन्दन।

Thursday 19 December 2013

सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट अंक 09 (१४- दिसम्बर -२०१३)

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 09
दिनाँक / माह : 14-दिसमबर-२०१३
विषय : दोहे / मुक्तक

नमस्कार मित्रो कल यानी १४ दिसम्बर को सन्निधि की नौवीं गोष्ठी जो "दोहे और मुक्तक" पर आधारित रही सफलता पूर्वक संपन्न हुई गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार साहित्यकार हिरेन्द्र प्रताप सिंह जी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में दोहा सम्राट और गज़लकार नरेश शांडिल्य जी हमारे बीच में रहे, साथ में अतिथि कवयित्री के तौर पर कोरबा से आई सीमा अग्रवाल दी और मुंबई से आई शील निगम जी हमारे बीच रही ! उनके अलावा अतुल प्रभाकर जी उनकी धर्म पत्नी आराधना जी, लतांत प्रसून जी, कुसुम शाह दी, नंदन शर्मा जी, आदरणीय सर्वेश चंदौसी जी अखिल चंद्रा जी, रेखा व्यास, अनिल जोशी उनकी धर्मपत्नी सरोज जोशी, पुष्पा जोशी, शशिकांत (गज़लकार) आशीष कंधवे, हर्ष वर्धन आर्य, बालकिशन शर्मा, सुरेन्द्र सैनी, विजय शर्मा, सीमान्त सोहल, सुबोध कुमार, बीना हांडा जी, अनीता दी, अर्चना दी उनके पतिदेव, अशुमन प्रभाकर और उनकी धर्मपत्नी, राजीव तनेजा, बलजीत कुमार, सुशील जोशी, राजेंद्र कुंवर फरियादी, कामदेव शर्मा, संजय कुमार गिरी, निवेदिता मिश्रा झा, अलका भारतीय, उर्मी धीर, अरुन शर्मा
अनन्त , नीरज द्विवेदी, कौशल उप्रेती, इंदु सिंह, वंदना ग्रोवर, मृदुला शुक्ल, संगीता शर्मा, डॉ रेनू पन्त, कांता कावेरी, केदार नाथ, अविनाश वाचस्पति, राम श्याम हसीन, चेतन नितिन राज खरे, परवीन कुमार, वी के बोस, रेनू रॉय, और कुछ अन्य मित्र भी शामिल हुए !


आयोजन की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचत मुस्कान के साथ अतिथियों के लिए दो शब्द कहकर की, साथ ही उन्होंने संस्कृत में दोहों और मुक्तक की चर्चा करते हुए कहा कि आज हिंदी में लिखे जा रहे दोहे और मुक्तक नीतिपरक और श्रृंगार प्रधान ना होकर मौजूदा समय की सच्चाई और समाज के सरोकारों को वाणी दे रहे है !उसके बाद अतुल जी ने स्वागत भाषण दिया और सन्निधि संगोष्ठी के मकसद को उजागर करते हुए नए रचनाकारों की भूमिका का उल्लेख किया।

सन्निधि की सबसे कर्मठ सदस्य कुसुम शाह दी का सम्मान एक शाल के साथ मुख्य अतिथि और अध्यक्ष महोदय के द्वारा किया गया फिर हम सभी के अज़ीज़ लतांत प्रसून जी का सम्मान शाल देकर किया गया और उसके पश्चात् मुझे यानी किरण आर्य को अपने स्नेह से नवाजते हुए मेरे सभी आदरणीय जनों ने सम्मान स्वरुप विष्णु प्रभाकर जी की अमूल्य कृति "आवारा मसीहा" सम्मान स्वरुप दी जो मेरे लिए बहुत गर्व की बात रही, अतुल जी ने इस बार भी एक यथार्थ घटना सन्देश रूप में सामने रखी, जो वास्तविक धरातल से जुडी हुई थी, फिर सरिता भाटिया जी के पर्तिदेव को गत समय में दिवंगत हुए सभी महान साहित्यकारों को श्रधांजली देते हुए सभी ने दो मिनट का मौन रखा, उसके पश्चात् अतुल जी ने किरण आर्य को सञ्चालन के लिए निमंत्रित किया !


मंच पर कुल 12 रचनाकारों ने अपने दोहे और मुक्तक रखे, जिनके नाम है .....अनीता प्रभाकर, सुशील जोशी, अरुन अनंत शर्मा, नीरज द्विवेदी, इंदु सिंह, मृदुला शुक्ला, किरण आर्य, डॉ रेनू पन्त, निवेदिता मिश्रा झा, अविनाश वाचस्पति, चेतन नितिनराज खरे, और आदरणीय सर्वेश चंदौसी जी उनके अलावा हमारी अतिथि कवयित्री सीमा अग्रवाल दी ने अपने कुछ दोहे और दो गीत हम सभी के समक्ष रखे उनके गीतों ने समां बाँध दिया सबने उन पलों का भरपूर आनंद लिया और हमारी दूसरी अतिथि कवयित्री शील निगम जी ने अपनी एक कविता और एक ग़ज़ल हम सभी के समक्ष रखी !


उसके पश्चात हमारे मुख्य अतिथि श्री नरेश शांडिल्य जी ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा सबसे पहले तो मैं आयोजको को बधाई देता हूँ, जिन्होंने 9 महीने में ही संगोष्ठी का ऐसा स्वरुप खड़ा कर दिया है, जो की दिल्ली में बहुत कम संस्थाए कर पा रही है, इसके लिए जो इसके सूत्रधार है अतुल प्रभाकर जी प्रसून लतांत जी कुसुम शाह जी नंदन शर्मा जी और किरण आर्य जी ने इस आयोजन की रूपरेखा रखी, और हम सभी को इस संगठन से जोड़ा ! आज जितने भी प्रतिभागी थे उनको सुनकर बहुत सुखद अनुभूति हुई और बहुत से प्रतिभागियो ने बहुत उम्दा प्रस्तुति यहाँ की, तो बहुत अच्छा लगा की एक प्रबुद्ध और नए रचनाकारो का एक स्वरूप आ रहा है सामने, इसके लिए मैं आयोजको को धन्यवाद देता हूँ ! उन्होंने सुझाव के तौर पर कहा कि यहाँ बहुत संभावनाए है युवा रचनाकारों में, उनकी इस प्रतिभा को निखारने के लिए एक कार्यशाला रखी जा सकती है, जो इन विधाओं के जानकार है उन्हें इन कार्यशाला में बुलाया जाए जिससे उनके और नए रचनाकारों के बीच एक संवाद स्थापित हो सके, कविता किसी को सिखाई नहीं जा सकती है, लेकिन एक दिशा जरुर दी जा सकती है, नए रचनाकारों की जिज्ञासाएं शांत करने के लिए एक कार्यशाला की विशेष भूमिका हो सकती है, मैं आयोजको से निवेदन करूँगा की गर संभव हो सके तो एक ऐसी कार्यशाला की रूपरेखा तैयार की जाए ! इसके पश्चात उन्होंने अपने कुछ दोहे सुनाये सभी श्रोतागण उनके दोहे सुनकर वाह वाह कर उठे, उनके दोहे आयोजन की आत्मा रहे ! अतुल जी ने उसके पश्चात कहा कि हम सभी के पास ये एक अवसर है कि इन गुनीजनो के सानिध्य में हम सीखे गुने बुने और आगे बढे, और इसके बाद अतुल जी ने नरेश शांडिल्य जी और हरेन्द्र प्रताप जी के व्यक्तित्व को मद्देनज़र रखते हुए दो चार पंक्तियाँ कही !


उसके पश्चात गोष्ठी के अध्यक्ष हरेन्द्र प्रताप जी ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा मित्रो आज के इस आयोजन के लिए आयोजको को बधाई देना चाहता हूँ,मैं कहना चाहूँगा कि काका कालेलकर जी की और विष्णु प्रभाकर जी की रूह मुझे यहाँ खीच लाई, जैसा की आप सभी जानते है मुझे विष्णु प्रभाकर जी के करीब रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, मैंने उनकी रचनाओं को बहुत करीब से देखा,मैंने कई मर्तबे उनके नाटक और एकांकी पर अभिनय भी किया, जब कोई किसी लेखक की रचनाओं को जीता है तो कहीं ना कहीं वो लेखक से बहुत करीब से जुड़ जाता है, जहाँ तक प्रसून लतांत जी है उनसे मेरा रिश्ता पुराना है, 1985 में भागलपुर में हम एक अखबार से जुड़े थे, और भाई राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में खोजी पत्रकारिता के क्षत्र में अलख जगाने का प्रयास भी किया ! आज की संगोष्ठी का विषय कहीं ना कहीं साहित्य में है, जो आज के समय में कहीं खो सा गया है उसे फिर से जीवंत किया इस आयोजन ने, इस विषय को ढूँढने और फिर से जीवित करने के लिए मैं आप सभी को साधुवाद देता हूँ, ये सभी विधाए समकालीन चिंताओं को उकेरती है, एक सृजक अपनी बात बिभिन्न आकारों में कहने की कोशिश करता है, जो आकार उसे सबसे सुलभ लगता है वह उस ओर बह चलता है !
साहित्य का भक्ति काल दोहों और रीतिकाल मुक्तक पर आधारित रहा, दोहे के बिना कोई महाकाव्य नहीं रचा जा सकता है ये रीढ़ है साहित्य की, दोहा लिखना कहना और गढ़ना सबसे मुश्किल काम है पद्य के क्षत्र में, रसखान ने अपने दोहों में बहुत से प्रयोग किये और उन्हें लेकर ही आने वाले साहित्यकारों ने बड़े बड़े लेख लिखे, दोहे मुक्तक में एक बूँद में सागर नज़र आना चाहिए, इसीलिए दोहा रचना सबसे चुनौती पूर्ण है, और सिर्फ दोहा ही नहीं अन्य भाषाओ में जाए तो जहाँ शेर कहे जाते है, या अन्य भाषाओ में जाए तो मुक्तक लिखे कहे जाते है ये मुक्तक जो अद्भुद है, ठेट हिंदी और लोकगीतों में मुक्तक का खूबसूरत प्रयोग देखने को मिलता है, पूरे विश्व की काव्य संस्कृति विलक्षण है और इस विलक्षणता में दोहे उस मोती की तरह से है जो कितनी प्रक्रियाओ के बाद जाकर तैयार होता है, और एक सुखमय एहसास बुनता है, और आज का जो दौर है तमाम अच्छाइयों के बावजूद मानसिक रूप से सभी तनावग्रस्त है, और इस तनाव में जो एक सापेक्ष चीज़ है वो है हम साहित्य से जुड़े लोग इस तनाव को कहीं ना कहीं कम करने का प्रयास करते है, और जाहिर है कोई भी दोहा मुक्तक या काव्य समाज को सुंदर बनाने के लिए रचा जाता है, मैं खुलकर कह सकता हूँ की इतने सालो में पहली बार मैं इस विषय पर कोई संगोष्ठी होते देख रहा हूँ, इसीलिए भी मैं आयोजको को धन्यवाद देना चाहता हूँ, साथ ही ये कहना चाहता हूँ जितनी भी रचनाये मंच पर आई उनके एक उम्मीद एक सम्भावना है!


प्रस्तुतकर्ता : (किरण आर्य)

Friday 6 December 2013

सन्निधि संगोष्ठी दिसम्बर माह की गोष्ठी में आप सभी सादर आमंत्रित हैं

नमस्कार मित्रों दिसम्बर माह में होने वाली सन्निधि संगोष्ठी 14 दिसम्बर शनिवार सायं ५ बजे से 7 बजे के बीच होना तय हुआ है, इस बार की संगोष्ठी दोहा और मुक्तक पर आधारित रहेगी, इस संगोष्ठी की अध्यक्षता आकाशवाणी में हिंदी अनुभाग के उपनिवेशक एक कवि और लेखक श्री राजेंद्र उपाध्याय जी करेंगे और मुख्य अतिथि के तौर पर वरिष्ठ गज़लकार और दोहा सम्राट के रूप में जाने वाले नरेश शांडिल्य जी हमारे बीच होंगे, इसके अलावा कोरबा से आ रही सीमा अग्रवाल दी और शील निगम जी अतिथि कवयित्री के तौर पर हमारे बीच रहेंगी !

Sunday 17 November 2013

विस्तृत रिपोर्ट सन्निधि संगोष्ठी माह नवम्बर २०१३

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 08
विषय : कहानी
माह : नवम्बर
दिनाँक : 16- नवम्बर - 2013

नमस्कार मित्रो कल यानी 16 नवम्बर को सन्निधि की आठवीं गोष्ठी जो कहानी पर आधारित रही सफलता पूर्वक संपन्न हुई गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार साहित्यकार प्रेमपाल शर्मा जी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में हंस के पूर्व कार्यकारी संपादक और कथाकार संजीव जी विशेष अतिथि के रूप में हंस के कार्यकारी संपादक संगम पाण्डेय जी हमारे बीच रहे, उनके अलावा अतुल प्रभाकर जी उनकी धर्म पत्नी आराधना जी, लतांत प्रसून जी, कुसुम शाह दी, आदरणीय गंगेश गुंजन जी, बीना हांडा जी उनके पतिदेव, अनीता दी उनके पतिदेव, राजीव तनेजा, संजू तनेजा, बलजीत कुमार, सुशील जोशी, राजेंद्र कुंवर फरियादी, कामदेव शर्मा, संजय कुमार गिरी, बबली वशिष्ट, कमला सिंह, अलका भारतीय, ममता जोशी, रिया दी, सुमन शर्मा, राजेश तंवर, शोभा मिश्रा, अनघ शर्मा, अरुण अनंत शर्मा, नीरज द्विवेदी, वंदना गुप्ता, वंदना ग्रोवर, इंदु सिंह, मृदुला शुक्ल, निरुपमा सिंह, शोभा रस्तोगी, हितेश कुमार, सुशील कृष्णेत, अविनाश वाचस्पति, सरिता भाटिया, सरिता गुप्ता, पी के गुंजन, भाई राज रंजन उनकी बहन और जीजा जी, अनुराग त्रिवेदी, और कुछ अन्य मित्र भी शामिल हुए !

आयोजन की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचत मुस्कान के साथ अतिथियों के लिए दो शब्द कहकर की, उसके बाद अतुल जी ने स्वागत भाषण दिया, और एक लघुकथा सुनाई, जो वास्तविक धरातल से जुडी हुई थी, फिर राजेंद्र जी और बि'जी को श्रधांजली देते हुए सभी ने दो मिनट का मौन रखा, उसके पश्चात् अतुल जी ने किरण आर्य को सञ्चालन के लिए निमंत्रित किया, मंच पर चार कथाकारों और एक अतिथि कथाकार ने अपनी रचनाये रखी जिनके नाम है .....हितेश कुमार, शोभा मिश्रा, ब्रिजेश कुमार, अनघ शर्मा, और अनुराग त्रिवेदी जी !

इसके पश्चात् संगम पाण्डेय जी जो हंस के कार्यकारी संपादक है उन्होंने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा कि मुझे पहली कहानी जो हितेश कुमार की थी उसने बहुत प्रभावित किया शुरू की 3 कहानियां सरलबोध की कहानियां रही, और अंतिम कहानी जो अनघ शर्मा की थी जटल भाव का बोध करा रही थी, कहानियां जो हम पढ़ रहे है और लिख रहे है, सभ्यता और जीवन के जिस मुकाम पर हम पहुचे है, उससे आगे कुछ कहने का प्रयास हम कर रहे है या नहीं, क्युकि जो वास्तविक है, साहित्य हमें उसी से परिचित कराने का नाम है, हालाँकि हिंदी कहानी का इतिहास जो दिख रहा है उसीके आसपास बुना गया है उसकी के संयोगो को जोड़ना हिंदी कहानी का चलन रहा है ! हंस के पिछले अंक में हमने एक कहानी छपी एलिस मुनरो की जिसे नोबल पुरस्कार मिला है, एलिस जी को आज के युग का चेखव कहा जाता है, उस कहानी का प्लाट है एक लड़की है जो शहर जा रही है ट्रेन से कुछ सामान खरीदने ये उसकी अकेले पहली यात्रा है और इस यात्रा के दौरान उसे कुछ लोग मिलते है, जिनमे एक यात्री एक पादरी है, जो उसे बताता है उसने एक तालाब के पास बतखे देखि, पादरी के द्वारा वो वर्णन सुन लड़की के सोचती है पादरी एक कल्पना शील मनुष्य है, और जीवन की कोमलता से वाकिफ है, फिर कुछ समय बाद पादरी का अनावश्यक स्पर्श वो महसूस करती है, और कहानी आगे बढती है उस लड़की की मन की दुविधा को लेकर, तो पूरी कहानी लड़की जो महसूस करती है उसपर आधारित है, मेरा मानना है कहानी में जो दिख नहीं रहा उसे दिखानें का प्रयास होना चाहिए ना की जो दिख रहा है उसे ....और मैंने अपने इस संशय को राजेन्द्र जी के समक्ष रखा और साथ ही ये भी की ये कहानी पढ़कर आपको कैसा लगा, राजेंद्र जी ने कहा इस कहानी में पादरी और लड़की दोनों ही खुद को छिपा रहे है, ये उस कहानी का मूल थ्रस्ट है, तो बस मेरा इतना ही कहना है की इस विचारधारा को सामने रखकर आज कथाकारों को कहानी लिखनी चाहिए !

संजीव जी ने अपने वक्तव्य में कहा ये दिन परम दुःख के है मेरे लिए, आज अपने दुःख के साथ साहित्य में संभावना के जो क्षितिज खुल रहे है, उनकी तरफ भी इशारा करूँगा मैं, आपको लगे जहाँ कुछ आपतिजनक कह रहा हूँ कृपया टोक दीजियेगा, सबसे पहले दुःख की बात राजेंद्र जी से मेरा रिश्ता बहुत करीबी रहा अपने दुःख को शब्दों से राह देने की मेरी कोशिश असफल रही है, इसके अलावा मेरे ऊपर जो वज्रघात हुआ वो है बि'जी का जाना राजस्थानी साहित्यकार विजयदान देथा बि'जी का निधन एक भारी क्षति, बि'जी मुझे बेटे की तरह मानते थे उनसे बहुत कुछ सीखा मैंने जीवन में, आप सभी नए पुराने मित्रो से मैं विनती करूँगा भाषा के स्तर पर कथ्य के स्तर पर लोककथाओ के स्तर पर गर हमारे बीच कोई वैश्विक स्तर का कथाकार था तो उसमे अग्रणीय नाम बि'जी का आता है, उन्हें जरुर पढ़े उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानिया थी चरनदास चोर, दुविधा जिस पर पहेली जैसी फिल्म बनी, बि'जी के वैभव पर एक लेख संकलित करने का प्रयास किया था मैंने जो पूरा नहीं कर पाया था मैं ...संगम जी की बातों का आदर करते हुए मैं उनसे इतेफाक़ नही रख पाता, मेरा अपना मानना है की हिंदी कहानी का वैश्विक स्तर कहीं से भी उन्नीस नहीं है, मैंने राजेंद्र जी से भी कई बार कहा और उन्होंने माना भी, हमारे इतिहास में इतनी समृद्ध कहानियां है जिन्हें सोचा भी नहीं जा सकता है, कहानी कहने के कितने विकल्प हो सकते है, बि'जी ने हमारी मान्यताओं से उठाया ! हमारे जो नए रचनाकार कथाकार शुरुवात कर रहे है तो लिखने से पहले कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जो साहित्यकार फैले हुए है उन्हें जरुर पढ़े, अब आती है आज मंच पर आने वाली कहानियों की बात तो अतुल जी ने एक छोटी कहानी से आज शुरुवात की, आज चार कहानियां पढ़ी गई हितेश की कहानी "झीनी झीनी बारिश" में अंचल का संकट, वहन के लोगो की अस्तित्व की लड़ाई दोनों तरफ से मार खा रहे लोग हितेश की कहानी का ताना बाना दोनों को समेटता है, तो इस कहानी को मैं एक तरह से अपनी भोगी हुई कहानी बता सकता हूँ ! शोभा जी ने अपनी कहानी में एक आत्महत्या का हवाला दिया, लडकी के अन्दर की संभावनाए जो खिलनी चाहिए थी नहीं है, भारतीय समाज में बहूँ के साथ व्यवहार का चित्रण, और अंत में नायिका का आत्महत्या करना फिर फिर एक डर का भाव और फिर लेखिका उसे सुखांत में ले आती है, तो कहानी को सहज भाव से बहने दे पात्रो पर हावी ना होने दें ! इसके बाद ब्रिजेश की कहानी जो रियाज़ा के उत्सर्ग की कहानी है, ब्रिजेश की कहानी पर थोड़ी मेहनत की जरूरत है, फिर भी धन्यवाद उन्हें जो उन्होंने साम्प्रदायिकता के स्तर पर कहानी रची, अनघ की कहानी धन्यवाद की पात्र है, और प्रभावित करती है, आज की कहानियों में सबसे सुगठित कहानी अनघ की रही ! सुनाई जाने वाली कहानी पढ़ी जाने वाली कहानी गाथा बनने वाली कहानी कहानी के उदारीकरण के कुछ प्रकार है, कहानी का समृद्ध संसार हमारे यहाँ विकसित हो रहा है, थोडा सा प्रयास कहानी की समृद्धि को बढ़ाएगा !

संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री प्रेमपाल शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में कहा दोस्तों दिल्ली की गोष्ठियों में अध्यक्षीय वक्तव्य का समय आते आते आधा हॉल खाली हो जाता है, खैर मुझे अच्छा लगा की नए लेखको की पाठशाला तैयार की जा रही है, अतुल जी प्रसून जी और जो भागीदार है सबको बधाई, जिस कक्ष में गोष्ठी हो रही है राजेंद्र जी के हंस के काफी करीब है, यहाँ थोड़ी सी रिहर्सल होगी, पाण्डेय पड़ोस में है हो सकता है वो जल्द ही हंस में छपे कुछ और रचनाकार सामने आये मृत्यु तो सबके लिए एक नियति है ही और राजेंद्र जी विष्णु प्रभाकर जी और जो नहीं है आज उनकी क्षति तो पूरी हो नहीं सकती, एक रचनाकार के तौर पर आप आगे आयेंगे तो उनके लिए ये एक श्रधांजली होगी ! मैं एक प्रश्न से गुजर रहा था कहानियों के दौरान की हिंदी साहित्य जगत में लेखकों की इतनी कमी नहीं है जितनी पाठकों की है, मैं इसे इसीलिए भी कहना चाह रहा हूँ की गर हम उन कहानियों को पढेंगे तो थोडा सा खुद ही समझ आ जाएगा की हिंदी कहानी में हम कहाँ शामिल हो सकते है, किन पात्रताओ की तरफ हम बढ़ सकते है, किसी बच्चे को बार बार मापा जाए तो उसकी लम्बाई रुक जाती है मेरे तीन दिग्गजों ने कई मर्तवा लम्बाई को नापा मैं संक्षेप में कहूँगा सभी कथाकारों में एक तीखी संवेदनशीलता है, विशेषकर शोभा ने जो कहानी पढ़ी, उनकी कहानी स्त्रियों की दशा पर सोचनीय सवाल उठाती है, लेकिन अंत में उनका रिंकू जी को महान पति परमेश्वर बनाना खलता है थोडा, आज भी अफगानिस्तान की मलाला और हमारे यहाँ स्त्री की दशा में अंतर नहीं है और ये दशा बदलेगी तब जब कम से कम हम अपनी कहानियों में उसे सबल रूप दे पाए, ब्रिजेश ने एक मुस्लिम चरित्र को चुना है, वो सराहनीय है, हकीकत वहीँ है आज भी जो मुजफ्फ़रपुर में होता है और उसके लिए सत्ताधारी जिम्मेदार है ! अनघ की कहानी में धीमरी का चरित्र अच्छा है और उनकी कहानी शिल्प की दृष्टि से भी सफल रही !
अंत में आये अनुराग त्रिवेदी जी और अतुल जी की लघुकथा में उन्होंने अपनी बात बहुत सही ढंग से कही, तो दोस्तों आयोजको के लिए मेरी बधाई उन्होंने जगह बहुत अच्छी चुनी है, लतांत प्रसून जी गाँधी जी के बहुत बड़े दीवाने है इसीलिए राजघाट के पास उन्होंने ये जगह चुनी संगोष्ठी के लिए, गांधीवादी संस्थाओ को जितना बेहतर लतांत प्रसून जी ने लिखा किसी और ने नहीं लिखा है, आपने और अतुल प्रभाकर जी ने मुझे बुलाया मैं हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ !...........किरण आर्य

Saturday 19 October 2013

सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट : माह (अक्टूबर - २०१३)

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 07
विषय : व्यंग रचनाएँ
माह : अक्टूबर
दिनाँक : 19 - अक्टूबर - 2013
 
नमस्कार मित्रो 19 अक्टूबर को सन्निधि की सांतवी संगोष्ठी जो व्यंग रचनाओं पर आधारित रही सफलता पूर्वक संपन्न हुई, इस गोष्ठी में अध्यक्ष के तौर पर व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय जी मुख्य अतिथि के तौर पर दिल्ली नगर निगम के सहायक आयुक्त और साहित्यकार सुरेश यादव जी और फिल्मकार राजीव श्रीवास्तव जी हमारे बीच में रहे, उनके साथ आदरणीय कुसुम शाह दी, अतुल जी प्रसून जी, अतुल जी की धर्मपत्नी अनुराधा जी, अनीता दी, उनके पतिदेव, राजीव तनेजा, संजू तनेजा, कामदेव शर्मा, बबली वशिष्ठ, अजय अज्ञात जी, प्रभु नारायण जी, सुरेन्द्र मोहन जी, चेतन नितिनराज खरे, अभिषेक कुमार झा अभी, मित्र शोभा मिश्रा उनके पतिदेव, संजय कुमार गिरी, मेरी प्यारी सखी सरिता दास उनके पति रविन्द्र के दास जी, तंवर जी, और कुछ अन्य मित्रो ने भी इस आयोजन में शिरकत की.........
आयोजन की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचत मुस्कान के साथ अतिथियों के लिए दो शब्द कहकर की, उसके बाद अतुल जी ने स्वागत भाषण दिया और किरण आर्य को सञ्चालन के लिए आमंत्रित किया, मंच पर जिन मित्रो की रचनाये आई उनमे ......हमारे मुन्ना भाई अविनाश वाचस्पति जी, सीत मिश्रा, सुशील जोशी, नीरज द्विवेदी, रचना आभा, राजीव तनेजा, शिवानन्द सहर, राजेंद्र कुंवर फरियादी, रेनू रॉय, कौशल उप्रेती और सरिता गुप्ता जी रहे !

इसके पश्चात् फिल्मकार राजीव श्रीवास्तव जी ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा मैं एक फिल्म फेस्टेवल करने जा रहा हूँ नव यथार्थवाद न्यू रेअलेस्टिक सिनेमा, जिसका फिल्म जगत पर बड़ा इम्पैक्ट रहा है,सत्यजीत रे ने फिल्म दा बाइसिकल देखि और यथार्थवादी सिनेमा की नीव रखी उन्होंने सोचा इसी तरह की फिल्म बनायेंगे उसके बाद विमल राय ने उससे प्रेरित हो दो बीघा जमीन जैसी लोकप्रिय फिल्म बनाई, और वहीँ से शुरुवात हुई हिंदी सिने जगत में वास्तविक जीवन को सिनेमा से जोड़ने की, जहाँ किरदार आये सड़क से उठकर सामने ! फिल्मांकन में यथार्थवादी बहुत सी संभावनाए है और संभावना है की साहित्य फिल्म जगत से जुड़े !

इसके पश्चात् दिल्ली नगर निगम के सहायक आयुक्त और साहित्यकार सुरेश यादव जी ने अपना वक्तव्य दिया, सुरेश जी ने कहा चाहे व्यंग्य रचना हो कहानी हो या कविता वो एक रचनाकार का शौक नहीं हो सकता है, जब कोई व्यक्ति कहता है की रचना लिखना मेरा शौक है तो मुझे वाकई शॉक लगता है, ये एक साधना का ही परिणाम है, ये अलग बात है की रचना कभी बहुत गहरी तो कभी विकट और विकराल होती है, उनमे व्यक्ति का पूरा जीवन भी लग जाता है लेकिन रचना रचना ही होती है छोटी बड़ी नहीं होती है, सभी ने छोटी रचनाये लिखी होती है, उनकी साधना उन्हें बड़ी रचनाओं तक पहुचाती है, बड़े रचनाकार होना और ख्यातिप्राप्त होना दो अलग बात है, कई बार दोनों बात हो जाती है तो सोने पर सुहागा हो जाता है लेकिन प्राय ऐसा होता है जो बड़े अच्छे रचनाकार होते है वो शांत रहकर ख्यति में बहुत पीछे रह जाते है और जो रचनाकार हलके और थोड़े से उथले होते है वो प्रयासरत अधिक होने के कारण ख्यति में आगे निकल जाते है, लेकिन कालांतर में होता ये है केवल रचना ही बचती है जो ख्यति का कारण बनती है, रचना ही बचती है जो आपके व्यक्तित्व का निर्माण करती है, और रचना ही बचती है जिसे लोग याद करते है ! सभी प्रतिभागियों ने अच्छी रचनाये पढ़ी लेकिन मैं चाहता हूँ आप और गहरे डूबे और जब तक कोई रचना संवेदना के किसी एक बिंदु पर घनीभूत नहीं होती है स्थाई प्रभाव नहीं डालती है, अपने प्रयास को एक अच्छी रचना में तब्दील करना एक साधना है कौशल है जो स्वत ही आता है, मैं अतुल जी के प्रयास को नमन करता हूँ उन्होंने विष्णु जी को याद करने के लिए सही जगह चुनी है और आप सभी को अपनी शुभकामनाये प्रेषित करता हूँ !

इसके पश्चात् गोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ व्यंग्यकार साहित्यकार प्रेम जनमेजय जी ने अपना वक्तव्य दिया ! प्रेम जी ने कहा वो सभा निश्चित रूप से बहुत अच्छी होती है गुणवता पूर्ण होती है, जिसमे प्रबुद्ध लोग भागीदारी करते है मैं आभारी हूँ अतुल जी का उन्होंने मुझे अवसर प्रदान किया ऐसे आयोजन का हिस्सा बनने का, आजकल का समय अवसाद पूर्ण है और ऐसे में जब ऐसी रचनाये आती है सामने जो संवेदनाओं को छूती है अपने एकांकीपन में जब आप ऐसी रचनाये सुनते है जो मन को छूती है तो बल मिलता है आज इस तरह की गोष्ठियों आयोजनों की बहुत आवश्यकता है, आज हमारे समाज से हमारे बीच से जो गायब हो रहा है वो है संवाद और जिसके चलते फेसबुक जैसी प्रिंट मिडिया साईट वजूद में आ रही है जहाँ प्रतिक्रिया तुरंत मिलती है, आजकल जहाँ समय नहीं है अपने विषय में सोचने का वहीँ दुसरो के विषय में सोचना बड़ी बात है जो अतुल जी कर रहे है, बधाई देता हूँ आभार प्रकट करता हूँ ! साहित्य में खुद ही दिशा ढूंढ रहा हूँ, आज जो रचनाये मैंने सुनी उनके विषय में कुछ सामान्य बातें मैं कहना चाहूँगा रचना को पढने के साथ एक चीज अपने आप जुडती है वो है परफोर्मिंग आर्ट पढ़ना मंच पर भावो को संप्रेषित करना एक कला है कहाँ रुकना है कहाँ प्रभाव छोड़ना है जितने भी रचनाकार पढ़ रहे है उन्हें सुधारना है! वर्तमान को देखने की शक्ति युवाओं के पास है, नई तकनीक का प्रयोग अविनाश वाचस्पति की रचनाओं में देखने को मिलता है, युवा दृष्टि आपके पास है और परिपक्वता मेरे पास, बाधित दृष्टिकोण धृतराष्ट्र दृष्टिकोण है युवा आज के बहुत अच्छा लिख रहे है, अपनी पत्रिका में युवाओं की ५४ रचनाये हमने रखी है ! युवा सोच जरुरी नहीं अपरिपक्व हो ! हास्य और व्यंग में जमीन आसमां का अन्तर है हास्य आदि मानव से आरम्भ हुआ है और व्यंग्य समाज का हथियार है, व्यंग्य प्रहार करता है हास्य रस देता है दोनों का उपदेश्य अलग होता है ! आज के सन्दर्भ में कहे तो हास्य का अश्लीलीकरण हो गया है, आपको स्तर बनाना है उसे गिराना नहीं है, व्यंग्यकार मिथ को तोड़ता है, फंतासी का प्रयोग अपनी रचना में अविनाश ने कुशलता से किया, उन्होंने सभी रचनाकारों से आग्रह किया की अपनी रचना को तत्कालिता में मत बांधिए ! अपनी समय की राजनैतिक विसंगतियों पर प्रहार करना अलग बात है, आप लिख क्या रहे है ये बड़ी चीज है, और विवशता पर व्यंग्य ना करे कभी ! इसी के साथ सभी रचनाकारों का हौसला बढाते हुए और शुभकामनाये देते हुए उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया !
और अंत में अतुल जी ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए आयोजन समाप्ति की घोषणा की !

Saturday 21 September 2013

सन्निधि संगोष्टी विस्तृत रिपोर्ट : सितम्बर माह २०१३

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 06
विषय : लघु कथा एवं हिंदी कविता 
माह : सितम्बर 
दिनाँक : 21 - सितम्बर - 2013

नमस्कार मित्रो इस बार सन्निधि की मासिक गोष्ठी २१ सितम्बर को संपन्न हुई, ये संगोष्ठी लघुकथा और हिंदी कविता पर आधारित रही, और इस गोष्ठी में वरिष्ठ कवियत्री और साहित्यकार अनामिका जी ने अध्यक्ष के तौर पर और गिलियन राईट जी जो पिछले चालीस सालो से भारत में रहकर हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए कार्य कर रही है, ने मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की, बारिश होने के बाबजूद हमारे बहुत से मित्र इस आयोजन में सम्मिलित हुए जिनमे कुसुम शाह दी, बीना हांडा जी उनके पतिदेव, नरेन जो मेरे प्रेरणा स्त्रोत है अतुल जी की धर्मपत्नी अनुराधा जी जो हर कदम पर होती है उनके साथ खड़ी बबली वशिष्ट, आरती शर्मा, कामदेव शर्मा जी, संजय गिरी और भी कुछ मित्र जिनके नाम मुझे याद नहीं है, सम्मिलित हुए !

सबसे पहले लतांत प्रसून जी ने अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ उपस्थित मित्रो का स्वागत किया और गिलियन राईट के विषय में बताया और अतुल जी को आमंत्रित किया स्वागत वक्तव्य के लिए अतुल जी ने सभी का स्वागत करते हुए मंच सञ्चालन के लिए मुझे आमंत्रित किया और इस तरह गोष्ठी का सुभारम्भ हुआ .....सबसे पहले अरुन रूहेला ने "रिश्ता" सुशिल कुमार जी ने "बाँझ" और किरण आर्य ने "आत्महत्या" अपनी लघुकथा सुनाई उसके बाद अरुन शर्मा, चेतन खरे, अभिषेक कुमार झा, नवीन कुमार और जनेंद्र जिज्ञासु ने अपनी कविताएं सुनाई उसके पश्चात् हमारे अतिथि कवि श्री राजेंद्र राजन जी जो जनसत्ता में सहायक संपादक है उन्होंने अपनी कुछ प्रतिनिधि रचनाये हम सभी के समक्ष रखी उनकी कविताएं आम आदमी से जुडी और मानवीय संवेदनाओं को गुनती नज़र आई, लतांत प्रसून जी ने कहा की राजन जी की कविताएं आंखें खोलती है और वयक्तिक चिंतन को दर्शाती है !
इसके पश्चात् हमारी मुख्य अतिथि गिलियन राईट जी ने अपना वक्तव्य दिया ....सबसे पहले उन्होंने सबको धन्यवाद दिया, उन्होंने कहा मैं खुशनसीब हूँ जो इस आयोजन में शिरकत कर रही हूँ, गिलियन जी ने राजेंद्र जी की कविता जो तालिबान पर थी उसके विषय में बात करते हुए प्राचीन तालिबान जिसे बामियान कहा जाता था, के स्वरुप की भी चर्चा की, बामियान के विषय में बाते करते हुए उन्होंने कहा की उनके एक मित्र जो वहां जाते रहते है उन्होंने बताया की वहां बुद्ध की जो विशालकाय प्रतिमा थी उसे अलकायदा आतंकियों ने उड़ा दिया जबकि वहां के पठान उसे तोडना नहीं चाहते थे और बामियान को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना चाहते थे लेकिन उसके बाद भी धूल से बनी उस प्रतिमा की छवि आज भी वहां विराजमान है, जिसे देख आभास होता है की जैसे साक्षात् बुद्ध खड़े है वहां, गिलियन जी ने बामियान जाने वाले एक दोस्त के हवाले से कहा अब वहां खुदाई हो रही है जिसमे बुद्ध के और भी मूर्तियाँ मिल रही है, उन्होंने कहा हर ख़राब काम का एक अच्छा पक्ष होता है, और सब ख़त्म होने पर भी उम्मीद सब लौटा जाती है ! गिलियन जी ने बताया की मैं पेशे से एक अनुवादक हूँ जब मैंने अनुवाद करना शुरू किया तो हिंदी से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद करने वाले अधिक लोग नहीं थे, लेकिन आज ये पाठ्यक्रम में शामिल है! आज से चालीस साल पहले स्टूडेंट बीजा पर यहाँ आई और यहीं की होकर रह गई मैं एक नदी में बहने वाली लहर हूँ जो चलती रही हूँ ! उन्होंने मिस्टर मैग्रेवा के विषय में बताया जिन्होंने ३३ साल हिंदी पढाई केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में, मिस्टर मैग्रेवा के विषय में उन्होंने बताया न्यूजीलेंड प्रवास के दौरान मैग्रेवा जी को एक फिजीयन द्वारा लिखा हिंदी शब्दकोष मिला उन्होंने उसे पढ़ा और वहीँ से हिंदी के प्रति उनका रुझान शुरू हुआ, इसके बाद हिंदी से अंग्रेजी शब्दकोष उन्होंने लिखा पिछले माह मिस्टर मैग्रेवा नहीं रहे और इसीलिए मैं इस गांधीवादी माहौल में उन्हें मैं याद कर रही हूँ !

इसके पश्चात् अनामिका जी ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा मैं इस सभागार में रखी अलमारियों में रखी किताबो इस पुराने ढंग की दरी इस पुरे परिवेश को जिसे कुसुम शाह बेन ने अपने आँचल तले संभल कर रखा, एक स्त्री ही इतने मनोयोग से इसे सभाल सकती है, अपने परिवार से परे एक परिवार के रूप में, लोग आयेंगे जुड़ेंगे मशाल जायेगी एक हाथ से दुसरे हाथ में इसे देख रही हूँ मैं साक्षात् ! धरती के आँगन में घड़े का पानी जो देता है ओज धंस रहा है भीतर कहीं हमारी संस्कृति का पानी और लघुकथा के साथ कविताएं कैसे भारती प्राण उसमे ये देखा हमने, उन्होंने कहा आधुनिक साहित्य के बीच की तारम्यता टूट रही है गध और पद्य के बीच की दूरी पाटती कविता निजी संवेग मन की दीवारों पर चटाई का काम करती है इस खुशनुमा शाम को लाल सलाम कहती हूँ मैं !

अनामिका जी ने अरुण रूहेला की कहानी रिश्ता पर बात करते हुए कहा एक पेप्सी की बोतल सस्ती हो गई आज विकास की विडंबना है ये जो एक छलावा मात्र है छलावो के स्तर है अनेक, भिखारी का कटोरा और पेप्सी की बोतल एक झपाके में एक चित्र होता है खड़ा, उसके बाद सुशिल कुमार की कहानी बाँझ के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा न्याय और क्षमा दो बड़े भाव है मार्क्स ने न्याय और बुद्ध ने क्षमा की बात की, बाँझ कहानी दर्शाती है नए पुरुष की नई समझ, किरण आर्य की कहानी आत्महत्या के बारे में उन्होंने कहा स्पर्श की गंध अलग अलग होती है एक ऐसे स्पर्श की गंध जो बिना प्रेम के रिश्ते से आती है ठीक वैसे ही होती है जैसे मुर्दे के जलने की गंध हो, मृत्यु और जीवन हाथ बांध खड़े होते है, उन्होंने कहा आज मंच पर जो कविताएं आई उनमे भाविक उर्जा थी, पहले ९ रस अलग अलग रचे जाते थे आज सभी रस गडमड पड़े है जहाँ आधुनिक कविता वहीँ जन्म लेती है, उन्होंने कहा यहाँ चारो और कविताओं के पोस्टर लगाये जाने चाहिए कविता की समझ को एक पानी का घड़ा मिल जाएगा ! राजेंद्र जी की कविताओं के विषय में बात करते हुए अनामिका जी ने कहा की जहाँ उनकी पहली कविता गर भ्रम देती है मैं और वो का तो दूसरी उस भ्रम को तोडती है, राजन जी की बुद्ध की कविता में एक सुनहरा खाका सा रह जाता है आँखों के सामने ! हम अतिरेक में जीते है अतिरेक हमें अति पुरुष और अति स्त्री बना देता है, कविता में इतना दमखम होता है कि मन में कुछ ना कुछ ठहर जाता है गर हम अपनी स्मृतियों में गलबहियां डाले बैठे तो सीख सकते है बहुत कुछ, और इसके बाद अंत में इस तरह के आयोजन के महत्व और उनमे सम्मिलित होने की अपनी चाहत के साथ उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया !


Saturday 14 September 2013

सन्निधि संगोष्ठी २१ - सितम्बर - २०१३

नमस्कार मित्रो आगामी माह में होने वाली सन्निधि संगोष्ठी लघुकथा पर रहेगी, दिल्ली और एन सी आर में रहने वाले युवा रचनाकार जो लघु कथा लिखते है अपनी एक लघु कथा सन्निधि के मेल पर भेजे जिन प्रतिभागियो की रचनाये आयोजन में सम्मिलित की जायेंगी उन्हें सूचित किया जाएगा सन्निधि के मेल या फ़ोन के द्वारा ........इस बार का आयोजन २१ सितम्बर को होना तय हुआ है !

सन्निधि से जुड़ने वाले नए रचनाकारों से गुजारिश पहले सन्निधि को जाने उससे एक श्रोता के तौर पर जुड़े क्यूकी एक अच्छा श्रोता ही एक अच्छा वक्ता हो सकता है उसके पश्चात् मंच आप लोगो का ही है, हम जानते है मंच और माइक का आकर्षण बहुत बड़ा है लेकिन दूसरो को सुनना और सीखना वो सबसे अहम् है ..........शुभं
 
संयोजक :  किरण आर्या

Saturday 17 August 2013

सन्निधि संगोष्ठी मासिक रिपोर्ट : माह अगस्त २०१३

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 05
विषय : काव्य 
माह : अगस्त 
दिनाँक : 17 - अगस्त - 2013

नमस्कार मित्रो शनिवार 17 अगस्त को सन्निधि की पांचवीं गोष्ठी जो काव्य पर आधारित रही सफलतापूर्वक संपन्न हुई ....इस संगोष्ठी की अध्यक्ष्ता वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक श्रीमती निर्मला जैन जी ने की ......
अतिथि कवियों के तौर पर जनसत्ता के सहायक संपादक अनुराग अन्वेषी जी, लंदन से वरिष्ठ पत्रकार एवं कवयित्री शिखा वार्ष्णेय और लेडी श्रीराम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष और कवयित्री डॉ वर्तिका नंदा जी ने शिरकत की .....उनके अलावा मंच पर आने वाले प्रतिभागियो में कमला सिंह, संजय कुमार गिरी, विनय विनम्र, सुशीला शिरोयन, सरिता भाटिया, बबली वशिष्ट, किरण आर्य, राधा कृष्ण पन्त, बेबांक जौनपुरी और डॉ सुरेश शर्मा जी रहे ....
इस आयोजन में गाँधी हिंदुस्तानी सभा के मंत्री कुसुम शाह दी, विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार जी, जनसत्ता के वरिष्ट पत्रकार लतांत प्रसून जी, नंदन शर्मा जी, अतुल जी की पत्नी आराधना जी, इंदु शर्मा जी, लीना मल्होत्रा, अलका सिंह, अलका भारतीय, उर्मी धीर, संजू तनेजा, राजीव तनेजा, बलजीत सिंह, राहुल राही, डॉ दिनेश कुमार, अभिषेक कुमार झा, संजीव चौहान, अंसार अली, अनीता अग्रवाल, उनके पतिदेव एम् के अग्रवाल, नीलम मेदीरता, अरुण सिंह रूहेला, राहुल रूहेला, कामदेव शर्मा, रेनू रॉय, किरण कुमारी, रूबी कुमारी, वी के बॉस, शालिनी रस्तोगी, धीरज कुमार, बीना हांडा जी, शिवानंद द्विवेदी, राजेंद्र कुंवर फरियादी, अरुण अनंत शर्मा, सुशील जोशी, अरविन्द जी, और अन्य कई मित्रगन सम्मिलित रहे !
आयोजन की शुरुवात अतुल जी ने अपने वक्तव्य से की, जिसमे उन्होंने सभी उपस्थित मित्रो का स्वागत करने के साथ आयोजन के नियमो पर भी अपनी बात रखी, उसके पश्चात प्रसून जी ने अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ आयोजन का शुभारम्भ करते हुए निर्मला जैन जी के विषय में बताते हुए कार्यकर्म की कमान किरण आर्य को सौंप दी ....
सभी मित्रो ने अपनी कविताओ के द्वारा मन मोह लिया ! अतिथि कवियों में अनुराग जी ने अपनी दो कविताएं सुनाई, फिर लन्दन से आई शिखा जी की पुस्तक "मन के प्रतिबिम्ब" का विमोचन किया गया, और शिखा जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा सबके मन को छू लिया, बहुत ही सरल सहज और हँसमुख है शिखा, वर्तिका जी ने अपनी रचना के द्वारा बहुत ही सटीक ढंग से अपनी बात कही ! उसके पश्चात निर्मला जैन जी ने जो आयोजन की अध्यक्ष थी, अपना वक्तव्य दिया .... निर्मला जी ने कहा मुझे बेहद ख़ुशी है ये आयोजन एक ऐसा स्थल है जहाँ सब लोग मिल बैठ कर अपने भाव साझा कर रहे है, वर्ना तो लोगो की व्यस्तताएं इतनी बढ़ गई है की ऐसे अवसर कम ही मिल पाते है ....यहाँ उन लोगो की रचनाये सुनने को मिली जिन्होंने अभी कलम उठाई है, कविता के प्रति जो समर्पण जरुरी है वो यहाँ देखने को मिला ! आप नियमित रूप कविता सुन रहे है दाद दे रहे है जो प्रसंशनीय है ! मुझे याद आ रहा है पहले के समय में एक शनिवार समाज बनाया गया था जिसमे छोटी के साहित्यकार से लेकर युवा साहित्यकार तक सभी एकत्र होते थे, और उन्होंने जो ऊँचाइयाँ पाई वो इस शनिवार समाज की ही दें रही ! निर्मला जी ने ये भी कहा की झूठी शाबाशी देने से बखिया उधेड़ना ज्यादा सही है, उसके लिए मंच की जरुरत नहीं होती है, झूठी तारीफ़ सबसे खतरनाक सिद्ध होती है, उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए नए रचनाकारों के लिए .....
जो लोग रचना करते है वो केवल लिखे ही नहीं अपितु दूसरो को पढ़े भी, दूसरा आपने किसी विषय पर जब लिखा तो केवल लिखा ही या उसपर चितन भी किया आपने किसी समस्या को रखा तो उसका हल भी सोचा या सिर्फ समस्या लिखने भर से कर्तव्य पूरा हुआ, केवल उतेजित होने भर से काम नहीं चलता है, एक व्यक्ति के कर्तव्य भी निभाये ! अब तक क्या किया क्या जिया ये जरुर सोचे ! आज अजनबीपन बढ़ रहा है इस कदर की पडोसी को पडोसी की खबर नहीं !
निर्मला जी ने कहा की इन पैरो से पूरी धरती नापी है लेकिन कभी अपने भारतीय होने पर शर्म नहीं आई, हमारी जीवन शैली में बहुत कुछ ऐसा है जो और कहीं नहीं मिलता है, अंग्रेजी एक भारतीय से अच्छी कोई और नहीं बोल पाता है, उन्होंने बताया उनके अमरीकी प्रवास के दौरान बहुत सी अमरीकन स्त्रियाँ कहती थी कि आपकी अंग्रेजी बहुत अच्छी है, तो मैंने मुस्कुरा के कहा हमने अंग्रेजी आपसे नहीं ब्रिटिशर्स से सीखी है, उन्होंने कहा अपने ऊपर गर्व करना सीखें ! साहित्य पर जो लिखा जा रहा है उसपर ध्यान दें आपने जो लिखा दूसरे जो लिख रहे है उसपर ध्यान दें ! पुरे समाज में एक खास तरह की संवादहीनता आ रही है जो दूर होना जरुरी है ! कविता को अच्छी तरह सुनाना सबसे जरुरी है और आपके पढने का ढंग प्रभावी होना चाहिए इन दोनों में फर्क करना सीखे, उन्होंने याद करते हुए कहा लालकिले का कवी सम्मलेन मैंने देखा है, जहाँ लाखो की भीड़ उमड़ा करती थी अपने पसंदीदा रचनाकारों को सुनने के लिए, अशोक चक्रधर मेरा शिष्य है जो गंभीरता के साथ दो मिनट में भीड़ जुटा सकता है, और अंत में उन्होंने कहा कि रचनाओं में फर्क करना सीखे एक पर दाद दें और दूसरे पर विचार करे इसके साथ ही सभी को शुभकामनाये देते हुए उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया !
संजीव चौहान जी के प्रति हम सभी विशेष आभार प्रकट करते है जिन्होंने क्राइम वॉरियर यू टूब पर आयोजन के विडियो @YouTube playlist http://t.co/HxITFS9m4Y अपलोड किये!
सन्निधि का अगला आयोजन लघु कथा और कविता पर आधारित रहेगा !

Thursday 18 July 2013

सन्निधि संगोष्ठी (११ अप्रैल २०१३ )

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 01
माह : अप्रैल 
दिनाँक : 11 - अप्रैल - 2013


गाँधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्टान के संयुक्त तत्वाधान में मासिक साहित्यिक संगोष्टी के शुभारंभ पर आयोजित समारोह कल सन्निधि सभागार में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ .........देश में 24 भाषाओ के साहित्य की सर्वोच्च स्वायत संस्था साहित्य अकादमी के उप सचिव श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी जी, डॉ गोपेश्वर सिंह जी (अध्यक्ष हिंदी विभाग दिल्ली विश्व विद्यालय ) एवं दिनेश मिश्र जी (मानद अध्यक्ष, इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ ऑथर्स) जैसे वरिष्ट साहित्यकारों ने इसमें शिरकत की ......इसके अलावा इस आयोजन में और भी कई प्रमुख हस्तियाँ थी जिनमे गाँधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह जी राष्ट्रिय गाँधी संग्राहलय की पूर्व निदेशक सुश्री वर्षा दास जी, गाँधी समिति और दर्शन समिति की निदेशक सुश्री मणिमाला जी, गाँधी ग्लोबल फोरम के अध्यक्ष श्री बाबूलाल शर्मा जी, गाँधी पीस फाउंडेशन के श्री रमेश शर्मा जी सहित विष्णु प्रभाकर जी की दोनों बेटियां दामाद, बहु और पोत्री भी थी ! साथ ही पायल शर्मा, शिवानन्द द्विवेदी शहर, और गाँधी हिंदुस्तानी सभा के वरिष्ट सहयोगी भी इसमें मौजूद थी, निदान फाउंडेशन की सचिव उर्मि धीर जो मेरी छोटी बहन भी है और सोमा विश्वास ने भी इस आयोजन में अपनी सहभागिता दर्ज कराई !

सबसे पहले कुसुम शाह दी जो गाँधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री भी है उन्होंने गाँधी साहित्य सभा के क्रियाकलापों काका साहिब कालेलकर जी के सपने को लेकर आगे चलने और इस आयोजन में गांधीवादी विचारधारा को लेकर चलने की बात कही !

उसके पश्चात् गोपेश्वर सिंह जी ने अपने वक्तव्य में कहा, भारतीय साहित्य दक्षिणपंथी और वामपंथी अतिरेक से भरा पड़ा है। गांधीवादी या गांधीवाद से प्रभावित उन आदर्शों से प्रेरित लेखकों का संगठन हो, कभी इस ओर नहीं सोचा गया। या मान लिया गया कि गांधीवादी लेखकों के संगठनों की जरूरत नहीं है। हिंदी साहित्य सभा इस दिशा में पहल कर सकती है। जिसमें मैं हर संभव कोशिश करूंगा। इस मंच से नई पीढ़ी को नई दिशा देनी होगी। ऐसा नहीं है कि आर्थिक अनिश्चितता के दौर में महान लेखक पैदा नहीं हो सकते। विष्णु प्रभाकर ऐसे ही महान लेखकों में से एक थे। उन्होंने ये भी कहा की आज का लेखक अपनी कमियों या बुराइयों को सुनने के लिए तैयार नहीं है वो केवल अपनी अच्छाई ही सुनना चाहता है जो बहुत हद तक सही भी है। इस मंच से सभी नवोदित लेखको और कवियों का उन्होंने हौसला बढ़ाया और अपने सीमाओ में साथ देने की बात भी कही !
इसके बाद श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि युवाओं की संगोष्ठी की बात महत्वपूर्ण है। इस तरह के मंचों के अभाव में युवा पीढ़ी साहित्य से दूर होती जा रही है। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर बच्चों में भाषा व साहित्य के संस्कार दिए जाने से ही युवाओं में निज भाषा, निज देश के लिए सम्मान पैदा होगा।

श्री दिनेश मिश्र जी ने अपने वक्तव्य में इस मासिक गोष्टी का समर्थन किया और इस आयोजन में अपना निरंतर सहयोग देने का आश्वासन भी दिया !

डॉ ममता धवन जी ने भी अपने वक्तव्य में नए लेखको की मानसिकता और परेशानियों पर प्रकाश डाला !
प्रसून जी जो जनसत्ता के वरिष्ट पत्रकार होने के साथ प्रतिभा के धनी और एक नेकदिल इंसान भी है उन्होंने कार्यक्रम में मंच संचालन के कार्य का बहुत ही सुंदर सहज रूप में निर्वाह किया और मंच से सभी युवा साहित्यकारों एवं कवियों को आमंत्रित किया आगामी आयोजन के लिए ! प्रसून जी और अतुल जी ने इस सपने की नीव रखी देल्ही में सभी युवा साहित्यकारों को एक मंच पर संगठित कर साथ लाने का सपना ! मुझे ख़ुशी है और ये मेरा सौभाग्य भी है कि इस सपने को धरातल रूप में साकार करने में मैं उनके साथ खड़ी हूँ !
अतुल जी जो श्री विष्णु प्रभाकर जी के सुपुत्र है और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री भी है उन्होंने मंच से आयोजन की विस्तृत रूपरेखा रखी सभी के समक्ष ! अतुल जी को पहली बार मैं निदान फाउंडेशन के एक आयोजन में मिली बहुत ही शांत सहज और मृदुल स्वाभाव के धनी, मुझे कल ही पता चला की अतुल जी विष्णु प्रभाकर जी के सुपुत्र है जमीनी स्तर से जुड़े अतुल जी प्रसून जी नन्दनलाल जी और कुसुम शाह दी इस आयोजन के सूत्रधार है जब इतने सारे नेकनीयत लोग एक मंच पर है तो कार्यक्रम की सफलता में कोई संदेह नहीं साथ में आप सभी मित्रो का अपार स्नेह और शुभकामनाये वो सबसे अहम् है ........मेरे एक स्नेह निमंत्रण पर मेरे बहुत से मित्र इस आयोजन में आये और अपनी सहभागिता दर्ज की ........जो मेरे लिए सबसे बड़ी बात रही ....वंदना गुप्ता, निरुपमा सिंह, मृदुला शुक्ला, नीलम मेहंदीरता, सुनीता अग्रवाल, कल्पना बहुगुणा, सरिता भाटिया, पूनम भाटिया, आनंद कुमार द्विवेदी जी, राजीव तनेजा जी, राजेंद्र फरियादी जी, सुशिल जोशी भाई, कामदेव शर्मा जी, राघवेन्द्र अवस्थी जी, संदीप लखीरा, अवनीश डबराल, मुकेश कुमार सिन्हा जी, बलजीत कुमार जी ......सभी मित्रो से मिलना एक सुखद अनुभव रहा बहुत और आप सभी ने मेरे स्नेह निमंत्रण को स्वीकार कर अपने व्यस्त समय में से कुछ पल निकाले उसके लिए शब्द नहीं है मेरे पास .....फेसबुक पर लोग नाम कमाते है लेकिन मैंने कमाया यहाँ पर मित्रो का असीम स्नेह जो मेरी ताक़त है सबसे बड़ी .....इसके अलावा एक और इंसान जो इस आयोजन में आ नहीं पाए लेकिन पृष्ठभूमि में रह जिन्होंने मेरी बहुत मदद की वो है सईद अयूब ....सईद ने मुझे बहुत से मित्रो के टेलीफोन नंबर मुहैया कराये और मैं सभी से सम्बन्ध स्थापित भी कर पाई !.....अलका भारतीय दी हमेशा से मेरी प्रेरणा स्त्रोत और हर कदम पर मेरे साथ रही है इस आयोजन में भी कदम कदम पर उनका सहयोग मुझे मिला जो मेरा सबल भी रहा ........

सबसे अंत में मेरे पतिदेव नरेन् आर्य उनका सबसे बड़ा योगदान रहा जो मैं इस आयोजन में पूरी निष्ठा के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाई मित्रो की सूचि तैयार करने से लेकर मेरे साथ आयोजन का हिस्सा बनने सभी आने मित्रो को रास्ता बताने का काम उनके जिम्मे रहा किसी ने सच कहा है जीवन साथ के सहयोग के बिना आप आगे नहीं बढ़ सकते तो नरेन् का साथ प्रेम और सहयोग मुझे बल देता है हर पल और मेरा मार्ग भी प्रशस्त करता है .... इस आयोजन की संचालन समिति की सदस्य होने के नाते मैं आप सभी मित्रो को आभार प्रकट करती हूँ और साथ में विनम्र निवेदन के साथ आगामी आयोजन में निमंत्रित भी करती हूँ आप सभी की सहभागिता पर ही आगामी आयोजन की सफलता निर्भर करती है ! आप सभी के सुझावों का भी स्वागत करती है संचालन समिति ............शुभं
 

Friday 21 June 2013

सन्निधि संगोष्ठी मासिक रिपोर्ट : माह जून २०१३

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 03
विषय : गीत - ग़ज़ल 
माह : जून 
दिनाँक : 21- जून - 2013

राजधानी दिल्ली में ‘आवारा मसीहा’ जैसी महत्त्वपूर्ण कृति के लेखक विष्णु प्रभाकर की 101वीं जयंती को नए रचनाकारों को मार्गदर्शन और उन्हें प्रोत्साहन देने के रूप में मनाया गया। इसका आयोजन गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान की ओर से सन्निधि सभागार में किया गया। इन दोनों संस्थाओं की ओर से खासतौर से नए रचनाकारों के लिए अप्रैल महीने से मासिक सन्निधि संगोष्ठी का सिलसिला शुरू किया गया है। तीसरी संगोष्ठी संगोष्ठी गीत-गजल पर केंद्रित थी। इस बार संगोष्ठी में डा सुधा मल्होत्रा की ‘विष्णु प्रभाकर: व्यक्त्तिव और कृतित्व’ और वीना हांडा की ‘भावांजलि’ पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया। संगोष्ठी की उपलब्धि यह रही कि इसमें भाग लेने वालों में ज्यादातर संख्या युवाओं की थी। कार्यक्रम का प्रारंभ हिंदी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष विमलेश वर्मा एवं पांचाल जी के कर कमलों द्वारा विष्णु प्रभाकर जी के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ। संगोष्ठी के शुभारंभ के पहले समवेत रूप से केदारनाथ तबाही में मारे गए लोगों और समाजसेवक बाबूलाल शर्मा की दिवंगत आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि रहे डॉ. शफ़ी अयूब जबकि अध्यक्ष एवं विशेष अतिथि के पद पर क्रमश: डॉ. रंजना अग्रवाल एवं मणिमाला जी आसीन रही जिन्हें स्वागत के क्रम में संस्थान की ओर से स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए। तत्पश्चात् सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम अपनी ऊँचाइयों को छूने आगे बढ़ा।
आदरणीय प्रसून लतांत जी ने अपनी मुस्कुराहट के साथ एक बार फिर माइक की जिम्मेदारी बखूबी संभाली। सबसे पहले स्व. विष्णु प्रभाकर जी के सुपुत्र श्री अतुल कुमार जी ने संगोष्ठी के प्रारंभ होने से लेकर इसके भविष्य की संभावनाओं को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही विष्णु जी के सुछ संस्मरण भी उनकी कुछ पंक्तियों के साथ हमसे सांझा किए। जैसे –
“सब कुछ तो नहीं समा सकता प्यार में,
इसलिए प्यार से अधिक प्यार मैं करता हूँ।“
विष्णु जी की इन पंक्तियों को श्री अतुल कुमार जी ने व्यंग्य का रूप भी दिया जो आज के हालातों को इंगित करता है- “सब कुछ तो नहीं समा सकता भ्रष्टाचार में,
इसलिए भ्रष्टाचार से अधिक भ्रष्ट आचार मैं करता हूँ।“
जयंती समारोह का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि संगोष्ठी का मकसद नए रचनाकारों के लिए माली बनना है न कि लकड़हारा बनना ताकि नए रचनाकारों को भरपूर मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिल सके। इस मौके पर विष्णु प्रभाकर के परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे और उनकी बेटी अनिता नवीन ने अपनी स्वरचित कविता का पाठ कर विष्णु प्रभाकर के हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान और अति मानवीय व्यक्तित्व को उजागर किया। अतुल प्रभाकर जी के अलावा उनकी पत्नी जो हमेशा इस आयोजन का हिस्सा रही है के साथ उनके भाई अमित प्रभाकर जी, बहन अर्चना और अनीता के साथ बहनोई अखिल कुमार और नवीन कुमार, उनकी बेटी और दामाद सभी शामिल रहे आयोजन में !
गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह के सान्निध्य में और वरिष्ठ गीतकार डा रंजना अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोजित इस महोत्सव में वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी कृष्णा कुमारी ने विष्णु प्रभाकर के सादगी भरे जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि वे अपने बेहतर संस्कारों और सरोकारों के लिए तो जाने ही जाएंगे लेकिन विपुल रचना भंडार देकर जाने के लिए भी हमारे बीच न केवल हमेशा जीवंत रहेंगे बल्कि हम सभी को बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरित भी करते रहेंगे। विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद गांधी स्मृति और दर्शन समिति की निदेशक मणिमाला ने राष्ट्रीय स्तर पर नए रचनाकारों के लिए 14 सिंतबर हिंदी दिवस पर आयोजन में समिति की ओर से भरपूर सहयोग देने का एलान किया
डॉ. सुधा ने विष्णु जी के साथ व्यतीत किए अपने शोध के दिनों को साँझा किया। वहीँ वीणा हांडा जी ने अपने वक्तव्य में अपनी पुस्तक भावांजली से हम सभी का परिचय कराया !
सन्निधि संगोष्ठी की संयोजक किरण आर्या के संचालन में गीत और गजलों का दौर चला, गीत और ग़ज़ल पढ़ने एवं सुनने के लिए विभिन्न स्थानों से अनेक पाठक एवं श्रोता अपनी सारी व्यस्तताओं को दर-किनार कर यहाँ एकत्रित हुए। अनेक भावों को अपने अंदर समेटे विभिन्न गज़ल एवं गीतों से सभी को मोहित करने वाले गीतकार एवं गज़लकारों में अलका भारतीय, कालीशंकर सौम्य, अरविंद राय, विनय राज, निरुपमा सिंह, अजय अज्ञात, साहिल ठाकुर, कामदेव शर्मा, पूनम माटिया, नीरज द्विवेदी, आदेश त्यागी, अरुण अनंत शर्मा, शालिनी रस्तोगी, डा माँ समता और कौशल उप्रैती जैसे नए रचनाकार अपनी श्रेष्ठ रचनाओं को पेश कर आयोजन को एक उपलब्धि बनाने में कामयाब हुए। कार्यक्रम के बीच में जहाँ विनोद शर्मा एवं उनकी मंडली द्वारा भजन सुनाया गया वहीं माला जी एवं उनके साथियों ने एवं शीला जी ने बीना हाँडा जी की कविताओं को सुरों से सजाया।
धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी संयोजन समिति के सदस्य सुशील कुमार ने किया। संगोष्ठी में पिछली संगोष्ठी में अपनी महत्त्वपूर्ण कविताओं का पाठ करने वाले रचनाकारों में मौके पर मौजूद राजीव तनेजा, सुशिल जोशी, सुशिल कुमार, जैनेन्द्र जिज्ञासु, बीना हांडा, वंदना गुप्ता और रचना आभा के साथ किरण आर्य को प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। इसके साथ ही बहुत से मित्रो ने इस आयोजन में श्रोता बन सहभागिता दर्ज कराई जिसमे डॉ चौबे, बबली श्रीवास्तव, बलजीत कुमार, अंजू चौधरी, सुशीला शिरोयन, रश्मि नाम्बियार, रमा भारती, किरण कुमारी, मुकेश कुमार सिन्हा, इंदु सिंह, उर्मि धीर, राकेश त्रिपाठी जी, विनय विनम्र, कमला सिंह, नरेन् आर्य, संजय कुमार, सरिता भाटिया, संजू तनेजा, रमेश शर्मा, अभय सिन्हा, अजय सहाय, विजय हांडा जी, नीलू जी, के साथ अन्य कई मित्रो ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई यहाँ अपने दो मित्रो का नाम मैं विशेष रूप से लेना चाहूंगी .....जयपुर से मेरी सखी सरोज सिंह, मऊ से आई मेरी सखी रुचिका एवं उसके पतिदेव अरविंद मिश्रा और पटना से भाई राज रंजन जी आयोजन में सम्मिलित हुए उनका आना मेरे लिए सुखद अहसास रहा (जिन मित्रो के नाम भूलवश छूट गए है उनसे अग्रिम क्षमा प्रार्थी हूँ मैं )
मुख्य अतिथि डॉ. शफ़ी अयूब ने अपने शेरों से सबको मोह लिया। शफ़ी साहब का लहजा मन को छू जाने वाला रहा उन्होंने हिंदी और उर्दू में गजल लेखन के इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि गजल आज दोनों भाषाओं में लिखी जा रही है और यह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय भी है। उन्होंने कहा कि गजल शुरू में चाहे जिस मकसद से लिखी गई लेकिन आज वह लोगों की आकांक्षाओं को व्यक्त करने वाली काफी सशक्त विधा बन गई है।
उनके बाद उपहार स्वरूप सभी को विष्णु जी की सुपुत्री अनीता जी की अपने पिताजी को समर्पित रचना के सोपान का अवसर मिला। अंत में डॉ. रंजना अग्रवाल जी ने थोड़ी सी बात गीतों की करने के पश्चात् एक सुंदर गज़ल सुनाकर कार्यक्रम में समाँ बाँध दिया।
उसके पश्चात् संयोजन समिति से सुशील कुमार जी ने सभी को प्रीति भोज के लिए आमंत्रित कर कार्यक्रम का समापन किया। आयोजन में प्रीती भोज बीना हांडा की तरफ से था! निश्चित तौर पर यह एक सफल आयोजन रहा। हाँ कुछ असुविधाए और परेशानियाँ जरुर रही लेकिन शुक्रगुजार है हम अपने सभी मित्रो के जिन्होंने उन परेशानियों को दरकिनार रख हँसते हुए इस आयोजन को सफल बनाया, हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि भविष्य में इस तरह की परेशानियों का सामना ना करना पड़े आप सभी को ! अंत में विशेष आभार आदरणीय प्रसून सर का और सुशिल जोशी भाई का जिन्होंने इस रिपोर्ट को बनाने में मेरी मदद की ! ...........किरण आर्य (संयोजक )

नोट :-अगली सन्निधि संगोष्टी जुलाई माह के दूसरे शनिवार यानी 13 जुलाई को होगी जो कहानी विधा पर केन्द्रित होगी, जिसमे पार्ट लेने वाले प्रत्येक प्रतिभागी को 7 मिनट काय मिलेगा, जिसमे वो पूरी कहानी, उसके अंश या सार रूप में अपनी कहानी रखे !

Saturday 11 May 2013

सन्निधि संगोष्ठी मासिक रिपोर्ट : माह (मई २०१३)


सन्निधि संगोष्ठी अंक : 02
विषय : काव्य 
माह : मई 
दिनाँक : 11 - मई - 2013

नमस्कार मित्रो ११ मई को सन्निधि सभागार में सन्निधि संगोष्टी का आयोजन जो काव्य पर आधारित था सफलता पूर्वक संपन्न हुआ इसका शुभारंभ संगोष्टी में सम्मिलित सभी सदस्यों ने अपने परिचय के साथ किया ....इस आयोजन की अध्यक्षता गंगेश गुंजन जी ने की उनके अलावा हमारे बीच वरिष्ट साहित्यकार आदरणीय बलदेव बंशी जी भी रहे ..उनके अलावा गाँधी हिंदुस्तानी सभा की मंत्री कुसुम शाह जी, अतुल कुमार जी, लतांत प्रसून जी, नंदन शर्मा जी, अनीता प्रभाकर जी जो विष्णु प्रभाकर जी की बेटी भी है और उनकी पुत्रवधू जी अनुज जी, ज्योतिसंघ जी राकेश त्रिपाठी जी, प्रवीण आर्य जी, अजय अज्ञात जी, बबली बशिष्ट जी, रश्मि भारद्वाज, प्रभा मित्तल जी, सरिता भाटिया जी, अरुण अनंत शर्मा, बलजीत कुमार जी, मुकेश कुमार सिन्हा जी, नरेन् आर्य जी, अलका भारतीय दी, उर्मी धीर, रेहान सिद्दकी, आदेश त्यागी जी, बाबू लाल जी, और अन्य कई लोगो ने सहभागिता दर्ज कराई !
प्रसून जी ने मच पर संगोष्टी के अध्यक्ष डॉ गंगेश गुंजन जी बलदेव वंशी जी अतुल कुमार जी नन्दन शर्मा जी को मंच पर आमंत्रित किया उसके बाद नन्दन शर्मा जी ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और आयोजन की सफलता की कामना की तत्पश्चात किरण आर्य ने अध्यक्ष महोदय श्री गंगेश गुंजन जी को कुछ उपहार भेट स्वरुप दिए फिर अतुल जी ने गोष्टी के नियम और उसको आगे ले जाने के सम्बन्ध में जानकारी दी ....उन्होंने कहा आदि मानव ने जब विचार मंथन शुरू किया तब विचार मंथन की कला विरासत स्वरुप उसके पास नहीं थी ! इसी तरह जब छोटा बच्चा शून्य से शुरू कर परिपक्व बनता है इसीलिए आप भी मन में संकोच और आग्रह ना रख खुले मन से सहयोग करे और संगोष्टी से सम्बंधित कुछ दिशा निर्देश भी उन्होंने अपने वक्तव्य में दिए !
फिर लतांत प्रसून जी ने कविता की भूमिका समाज में उसपर प्रकाश डाला प्रसून जी ने ये भी कहा की कविता और रचनाकार समय के साथ साथ उसमे आते है बहुत से बदलाव कुल मिलकर उनका वक्तव्य बहुत प्रभावी रहा ! वरिष्ट साहित्यकार बलदेव बंसी जी ने कहा की आज आत्मसम्मान का दिन है आत्मा का सृजन है कविता ! नदी पर कविता लिखो तो नदी बन जाओ पेड़ पर कविता लिखो तो पेड़ फूल बन जाओ अकेले फूल के पास जाओ जैसे कविता जाती है जब लौटकर आओगे तो अपने भीतर भी एक खिला हुआ फूल पाओगे और अंत में उन्होंने कहा दोस्तों बस इतनी सी कहानी है जिसमे जितना पानी है उतनी ही रवानी है !
बलदेव बंसी जी के वक्तव्य के बाद प्रसून जी ने मंच संचालन का कार्यभार आपकी इस मित्र किरण आर्य का सौंप दिया, इस बार मच पर पंद्रह प्रतिभागियों ने अपनी कविता पाठ किया जिसमे सुशील जोशी, नीलम नागपाल मेंहदीरत्ता, शिवानन्द सहर, सुशील कुमार, बबीता, बृजेश कुमार, समर्थ वशिष्ट, इंदु सिंह, मृदुला शुक्ला, रचना आभा, जेनेन्द्र, बीना हांडा बेन, राजेंद्र कुँवर फरियादी, राजीव तनेजा, और वंदना गुप्ता शामिल रहे !
गोष्ठी के प्रथम कवि सुशील जोशी जी ने बड़े ही सुंदर ढंग से राधा की होली को रंग दिए अपने द्वारा रचित छंदों के माध्यम से और उसके बाद बड़े ही रुचिकर और सरस ढंग से अपनी प्रिया को याद कर उसका सुंदर रूप को विभिन्न उपमाओं में बांध कर श्रोताओं के सामने रखा बड़ा सरस रहा उनका विश्लेषण हास्य की चाशनी के साथ भक्ति रस से लबरेज़ ! दूसरी कवयित्री नीलम मेहदीरत्ता अपने स्वाभाव के अनुसार गंभीर और गहरी कविता लेकर आई मंच पर उन्होंने गरीब लड़की अमीर लड़की समाज में व्याप्त स्त्री पुरुष के भेदभाव से उपजे सामजिक परिवेश का चित्रण बखूबी किया उसके बाद गरीबी में ज़िन्दगी गुजरने पर मजबूर लोगों का भी बहुत संवेदनशील वर्णन करती हुई कविता प्रतिभाशाली कवयित्री नीलम की दोनों कविताएं सामजिक परिवेश पर बहुत ही जायज़ सवाल थे उनके बाद जोश-ओ-खरोश से भरे शिवानन्द की कविता ने कुछ रोमांस को जिया और माहौल को प्रेम रस में डुबो दिया उसके पश्चात् इन्दु सिंह जी की कविता समाज के कटु सत्य को उजागर करती हुई रही रोजमर्रा घरो में काम करने वालो की त्रासदी को दर्शा गयी ! बहुत संवेदनशील सवाल थे उनके भी ...
फिर आये गंभीर माहौल से अलग राजीव जी अपनी गुदगुदाने वाली कविता के साथ बड़ी व्यवहारिक लगी उनके द्वारा की गई माईक की महिमा राजीव सभी को हंसा गए फिर आये समर्थ वशिष्ट जी जो अपनी रचना के माध्यम से स्वदेश दीपक जी को हम सभी से रूबरू करा गए, जेनेन्द्र एक क्रन्तिकारी कवि के रूप में अपनी बात कही अपनी दोनों रचनाये ही उन्होंने देश के गावो को समर्पित की बहुत ही बढ़िया रहा उनका प्रस्तुतिकरण, गाँव के शहरीकरण और आज के राजनितिक माहौल पर उनकी दोनों कविताएं बहुत सारे सवाल छोड़ गयी ! मुस्कुराती सी मृदुला शुक्ला ने भी स्त्री पे बढ़ते अत्याचार पर चिंता व्यक्त करते हुए कविता प्रस्तुत की !
राजेंद्र कुँवर फरियादी की चिंता हिंदी को लेकर थी और उन्होंने हिंदी की स्थिति पर एक कविता प्रस्तुत की आज़ादी चाहिए बहुत अच्छी रचना रही उनकी भी फिर आये सुशील कुमार ने कविता के जन्म पर प्रकाश डाला अपनी रचनाओ के माध्यम से बृजेश ने गांवो के शहरीकरण और उद्योगीकरण पर बहुत अच्छी रचना प्रस्तुत की उनकी रचना का शीर्षक रहा 'मैं एक गाँव हूँ जो शहर हो गया हूँ' ! वहीँ बबीता जी ने सरलता और सहजता से गावो की स्त्री त्रासदी को अपनी रचना के माध्यम से रखा ! बबीता और बृजेश कुमार दोनों ही जेनेयू से पीएचडी कर रहे हैं दोनों का प्रस्तुतिकरण गज़ब का रहा ! रचना आभा की चिंता थी आज स्त्री पर बढ़ते अत्याचार पर बहुत प्रभावी ढंग से अपनी बात कही उन्होंने वंदना गुप्ता की चिंता भी कुछ ऐसी थी किन्तु उन्होंने स्त्री को सशक्त होने का सन्देश देकर अपनी रचना की समाप्ति की और अंत में वरिष्ठ कवयित्री वीणा हांडा जी थी! उन्होंने भी स्त्री के सामजिक परिवेश पर एक रचना प्रस्तुत की और एक रचना गाँधी जी पर प्रस्तुत की बहुत अच्छी प्रस्तुति थी उनकी गाँधी एक व्यक्ति नहीं विचार हैं जो आज भी हमारे बीच हैं लेकिन हम उन्हें पहचानने से इनकार कर रहे हैं कुछ ऐसा ही सारांश उनकी कविता का था !
अंत में अनुज कुमार के दो शब्द वरिष्ठ साहित्यकार गंगेश गुंजन जी के कवियों को प्रेरित करते शब्द उन्होंने कहा कि मंच पर जितनी भी रचनाये आई सभी सार्थक और प्रभावी रही इसके साथ ही उन्होंने सभी रचनाकारों का मनोबल भी बढ़ाया ! एक और व्यक्ति जिसके जिक्र के बिना ये आयोजन संपन्न नहीं होगा वो है विशाल चर्चित मुंबई में बैठकर विशाल हर पल इस आयोजन का हिस्सा रहा और एक सक्रिय सदस्य के रूप में विशाल ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई ! बैनर से लेकर आयोजन के बारे में सभी मित्रो को बताने तक विशाल हर पल क्रियाशील रहा! इस तरह से एक सफल आयोजन की समाप्ति हुई ! इस रिपोर्ट को तैयार करने में अलका दी ने मेरी बहुत मदद की आप सभी मित्रो का स्नेह सहयोग ही सबल है मेरा !