tag:blogger.com,1999:blog-57671179971917487622024-02-06T19:28:21.439-08:00सन्निधि संगोष्ठीअरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-66851104020546555132014-10-20T03:38:00.004-07:002014-10-20T03:38:40.170-07:00मौत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYBYV1SaJwOMf3fQz8cYSPs-DgFd4we0YLeQ7M8FaeJj_47u1mt3lGDTIF3Uy5w-yVgLkEaPVg-uft-g_XNr7AqBA4Lebe_rr5dQ-LPlmrapViEFXc8AkLLs_9_q2tX16JtFjCQW8xLw/s1600/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%A4.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhYBYV1SaJwOMf3fQz8cYSPs-DgFd4we0YLeQ7M8FaeJj_47u1mt3lGDTIF3Uy5w-yVgLkEaPVg-uft-g_XNr7AqBA4Lebe_rr5dQ-LPlmrapViEFXc8AkLLs_9_q2tX16JtFjCQW8xLw/s1600/%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%A4.jpg" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<b>ताउम्र बेचारगी से अपनी, लड़ता है आदमी,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>मौत से पहले भी कई मर्तबे, मरता है आदमी, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>क्यूकि कहीं ना कहीं जिन्दा, आज भी उसका ज़मीर है, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>जाने कब से आत्महत्या और उसके बीच, महीन सी एक लकीर है, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>लीक से हटकर कभी वो चला नहीं, अपनी ही जात का अलमस्त वो फ़कीर है !</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>सर पर आज भी उसके लटकती, बेबसी की नंगी शमशीर है, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>बंदर के बच्चे से सभ्य इंसान बनने की जुगत भिड़ाता, वो बेसऊर है, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>आदमियत पर अपनी इतराता, फक्त इतना सा उसका कसूर है, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>पल-पल मरने की बेबसी को घूरता, गरियाता है, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>अपने कर्मो की रस्साकसी में उलझा, वो दरिद्र सा बुदबुदाता है !</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>क्युकि मौत तो शाश्वत है, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>क्यूकि मौत को तो आना ही है,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>क्यूकि मौत तो आकर रहेगी ही,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>दबे पाँव ही सही बिल्ली की तरह आएगी,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>और आँख बंद किये कबूतर से मानव को, दबोच अपने पंजो में ले जायेगी !</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>जिन्दगी क्या है ? बस कर्मो का मेला है,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>जिन्दगी की दौड़ में स्पर्धा अव्वल आने की,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>हांफता दौड़ता जीव सिसकता सा अकेला है,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>चूहे बिल्ली सी दौड़ अभी जारी है,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>कभी चूहा तो कभी बिल्ली चूहे पे भारी है !</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>फिर क्या, मौत से पहले मरना जीना, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>आत्मा तो अजर है अमर है ना, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>उतार पुराना चौला नए में ढल जायेगी, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>या विचरते भटकते युहीं किसी दिन शून्य में विलीन हो जायेगी,</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>अंतिम ध्येय तो बस निर्विकार भाव से अनंत में एकाकार होना है, </b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>फिर कैसी आदमियत और कैसा मारना जीना ?</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>*********************</b></div>
</div>
Kiran Aryahttp://www.blogger.com/profile/13612424162022535855noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-30750792746754465142014-09-29T02:28:00.000-07:002014-09-29T02:28:17.774-07:00औरत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkW-_COlYIx4egZGVX7GXCEsq8eND3eUbp754Hq4eVhpcyUO5QlNNABRddwoS9_knI8Cd5AVT4IrGWP8mJHfVqXwR0VcoS9yOkPxRr5JxturdKKQ9JeHMCp3ElIkWIuHxePjWKVk0u0g/s1600/NAARI.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkW-_COlYIx4egZGVX7GXCEsq8eND3eUbp754Hq4eVhpcyUO5QlNNABRddwoS9_knI8Cd5AVT4IrGWP8mJHfVqXwR0VcoS9yOkPxRr5JxturdKKQ9JeHMCp3ElIkWIuHxePjWKVk0u0g/s1600/NAARI.jpg" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<b>औरत में जन्मजात होता है<br />एक गुण, ढलने का<br />समय के साथ वो<br />ढलती है नित नए रूप में<br /><br />बालपन में ही दायरे<br />बना जाते है उसे व्यस्क<br />यहाँ मत जाओ, ये मत करो<br />ऐसे मत चलो, ऐसे मत हंसो<br /><br />और वो ढलती हंसकर<br />हर परिधि में सिमटती<br />बेड़ियाँ सजाये पैरो में<br />रखती कदम फूंक फूंक कर<br /><br />अनायास जब कदम उसके<br />पड़ जाते जलते कोयलों पर<br />तो सुलग उठता वजूद उसका<br />जलते अंगारों सी आंखें<br />हर तरफ से बेध देती<br />उसका शरीर <br /><br />ढांपती उसे वो<br />कांपते हाथों से गिरती <br />संभलती उठती <br />लड़खड़ाते, कदमो को साधती<br />खुद ही चलती<br /><br />सूर्य के उदयमान होने के साथ<br />खिलती धूप सी एक आंगन से<br />निकल दूसरें आँगन में<br />तुलसी के पौधे सी रोप दी जाती है<br /><br />और वो ढल जाती है<br />हो जाती है उसी आँगन की<br />नए रिश्तों में बंधती<br />हर रिश्ते को अपने आंचल में<br />सहेजती बांधती<br /><br />अपनी आँखों की गहराई में समेटती<br />ख़ुशी गम के साथ कितने ही फ़साने<br />जिन्दगी की माला में पिरोती<br />अनुभवों के मोती<br /><br />ढलती शाम सी रखती<br />तह लगा ग़मों को अपने<br />सीले से गम<br />आँखों की नमी पा छलक ना जाए<br />इसीलिए हंसी की चादर उड़ा<br />सब ढांप लेती अपने अंतस में<br /><br />करती रोशन चांदनी सा नेह बरसाती<br />मुस्कुराती ढलती<br />रिश्तों के धागे से बांधती जीवन को<br />रात में करवटें बदलती<br />सुबह के इंतज़ार में<br /><br />औरत ढलती है उम्र के हर पड़ाव में<br />मौसम की रुतों सी<br />और एक दिन पा जाती सुकून रूह उसकी<br />जब बंधनों को तोड़ उन्मुक्त सा<br />चल पड़ता है उसका मन<br />हर मोह से विमुख हो एक अंतहीन सफ़र पर<br />********************</b></div>
<br /></div>
Kiran Aryahttp://www.blogger.com/profile/13612424162022535855noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-89525573791129001372014-09-16T22:20:00.001-07:002014-09-16T22:22:12.016-07:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : अगस्त २०१४<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_5k3v _5k3w clearfix" style="text-align: justify;">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6VcnMsy68rLhAFYQ8Z9SqSOsA9lXHfNeEOwW_lZUoMVUeAxiE9fkG0bdYxeMq5OILgJnsnlJK61I9hkYFF3xYjkIYjnVLjOp7Fz4byBovP3wqzNMwRqVk1uD5eV_JjEt8PMT93yO-Uso/s1600/10635708_706492956071735_6229922516489224874_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6VcnMsy68rLhAFYQ8Z9SqSOsA9lXHfNeEOwW_lZUoMVUeAxiE9fkG0bdYxeMq5OILgJnsnlJK61I9hkYFF3xYjkIYjnVLjOp7Fz4byBovP3wqzNMwRqVk1uD5eV_JjEt8PMT93yO-Uso/s1600/10635708_706492956071735_6229922516489224874_n.jpg" height="300" width="400" /></a></b></div>
<br />
<br />
<b>सन्निधि संगोष्ठी अंक :</b><b> 17</b><br />
<b>दिनाँक / माह :</b><b> </b>31 अगस्त रविवार 2014<br />
<b>विषय :</b><b> </b>सोशल मीडिया और लेखन<br />
<br />
नए
रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के मकसद से पिछले पंद्रह महीने से लगातार
संचालित की जाने वाली संगोष्ठी इस बार ‘सोशल मीडिया और लेखन’ विषय पर
केंद्रित थी। ये संगोष्ठी 31 अगस्त रविवार सन्निधि सभागार में डॉ. विमलेश
कांति वर्मा, पूर्व अध्यक्ष, हिंदी अकादमी, दिल्ली, की अध्यक्षता में सफलता
पूर्वक संपन्न हुई .......<br />
<br />
स्वागत भाषण के दौरान विष्णु
प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार ने घोषणा की कि विष्णु प्रबाकर
की स्मृति में जो सम्मान शुरू किया गया है, वह अब हर साल दिया जाएगा।
उन्होंने बताया कि इसी के साथ दिसबंर में काका कालेलकर के जन्मदिन पर भी
काका कालेलकर सम्मान दिए जाएंगे।<br />
<br />
संगोष्ठी के संचालक और
वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि सोशल मीडिया का दायरा केवल संपन्न
और पढ़े-लिखे लोगों तक सीमित है लेकिन यहां संकीर्ण सोच के कारण उत्पन्न
त्रासदी की चपेट में वे लोग भी आ जाते हैं, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं
होता।<br />
<br />
विषय प्रवेशक के रूप में शिवानंद द्विवेदी सेहर ने
अपने वक्तव्य में कहा कि फेसबुक और ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को
मायने दिए लेकिन सोचनीय ये है, कि हम उस स्वतंत्रता का उपयोग कैसे करते
है ? सोशल मीडिया के माध्यम से संपादक जो मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे
उनके बीच से हट जाने से सीधे अपनी बात कहने और रखने की स्वतंत्रता मिली
लेखक को, वो खुलकर बिना काट छांट के अपनी बात कह सकता है, सोशल मीडिया पर
लेखन की शुरुआत से होने से संपादकीय नाम की संस्था ध्वस्त हो गई। लेखन
उनके दायरे से मुक्त हो गया है।<br />
<br />
वहीँ मनोज भावुक जी ने कहा
कि सोशल मीडिया पर भी अनुशासन की जरूरत है, अभिव्यकित की जो आज़ादी है वो
खतरा ना पैदा करे, संपादक का ना होना वरदान बिलकुल नहीं है, संपादक जब काट
छांट करता है तो वो एक लेखक की कला में निखार लाता है, और यहाँ जब संपादक
बीच में नहीं है तो हर व्यक्ति दो लाइन लिखकर खुद को एक लेखक या कवि की
श्रेणी में रख गौरान्वित महसूस करता है, सोशल मीडिया ने जहां अभिव्यक्ति
का मौका दिया है , वहीं लोग भी इसके कारण एक-दूसरे के करीब आए हैं, मैं जब
युगांडा जैसी जगह में था तो अपने क्षेत्र के लोगो को ढूँढने में सोशल
मीडिया ने और मैंने वहां युगांडा भोजपुरी एसोसिएशन की स्थापना की, तो जनाब
ये मीडिया की ताक़त है लेकिन बात यहाँ ताक़त की नहीं नियंत्रण की है
.......<br />
<br />
अलका सिंह जी ने कहा सोशल मीडिया जहाँ स्त्रियों का
शोषण करता है वहीँ शैलजा पाठक जैसी अच्छी लेखिका को प्रोत्साहन भी देता
है, सोशल मीडिया ने स्त्रियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है ! सोशल
मीडिया आज जिस दौर से गुजर रहा है वहां हमें बहुत सी चीजों को स्पष्ट करने
की आवश्यकता है ! जरुरत है आज सोशल मिडिया की दिशा तय करने की आज जो
ज्वलंत मुद्दे है उन्हें कैसे स्थान दिया जाए सोशल मीडिया पर ये जानना
जरुरी सबसे !<br />
पारुल जैन ने भी स्त्री पक्ष को ही प्रधान रूप में
रखकर बात रखी अपनी उन्होंने कहा यहाँ जो वैचारिक स्वतंत्रता मिली है उसका
दुरूपयोग ना हो इसको ध्यान में रख चलना है सबको ! शिरेश ने सत्ता के
विकेंद्रीकरण को केंद्र में रखकर अपनी बात शुरू की और बहुत हद तक सही दिशा
में अपनी बात को रखा ....<br />
<br />
शुभुनाथ शुक्ल जी ने अपने
वक्तव्य में कहा सोशल मीडिया और लेखन पर यहाँ तमाम सवाल उठाये गए, मैंने
जब 30 साल पहले जब जनसत्ता ज्वाइन किया तब जनसत्ता एक नया प्रयोग था, उसमे
पाठकीय पत्र के लिए एक मंच रखा गया जिसका नाम था चौपाल, चौपाल पर इतने
पत्र आते थे चौपाल भर जाती थी, सेंकडो पत्र एक ही इशू पर आते थे, हमें कई
बार पत्रों को एडिट करना पड़ता था और कई बार रोकना भी पड़ता था, लेकिन आज
फेसबुक जैसी संस्था के आने से संपादक जैसी संस्था हट गई है, अब आप अपने मन
से जो चाहे लिख सकते है, इसके लाभ भी है और दुर्गुण भी, समाज बनता है लोगो
से उनकी सोच से उनके विचारों से, लिखने पढने में गर आपको असीमित वर्ग तक
पहुच बनानी है, तो फेसबुक एक शसक्त माध्यम है उसके लिए, और मैंने इसका
भरपूर उपयोग किया अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए, इसमें कोई शक नहीं की
फेसबुक ने एक नया आयाम दिया है ! राजनेताओं ने फेसबुक का सबसे सही और
भरपूर इस्तेमाल किया है ! तो यहाँ असली लेखक वहीं है जो राजनेताओं के
प्रभाव से मुक्त हो और इस मंच से अपनी बात जिस तरह से कहना चाहता है कह सके
!<br />
<br />
पद्मा सचदेव जी ने अपने वक्तव्य में कहा मुझे यहाँ आकर
अच्छा इसीलिए लग रहा है यहाँ उपस्थित सभी लोग उसी तरह एकत्र है जैसे आग
तापने को लोग इकठ्ठा होते है और सार्थक चर्चा करते है, सोशल मीडिया और
लेखन दोनों ही अलग विधाए है, सोशल मीडिया का आज बोलबाला है, सोशल मीडिया
में जितने माध्यम है उनकी अपनी अलग ताक़त है, और लिखा हुआ वो जब चाहे बदल
भी सकते है, और पुनर्विचार भी कर सकते है, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में कभी
कभी सच पूरी तरह उजागर नहीं होता. पर जो भी जितना भर होता है उसका असर
तुरंत होता है, सोशल मीडिया में लोगो को भड़काने का काम नहीं होना चाहिए,
खबरे तोड़ मरोड़ कर ना दी जाए, भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए,
मिडिया की शक्ति का सदुपयोग हो ये सबसे जरुरी है, पहले एक समय में
बलात्कार जैसी घटनाएं होती थी, तो उन्हें दबा दिया जाता था, लेकिन आज ऐसी
खबरों को छिपाया नहीं जाता बहुत तीव्र प्रतिक्रिया आती है, एक नई सोच नई
क्रांति दिखती है, रहा लेखन तो लेखन आपको हमेशा लपेटे रखता है, जाने कब वो
लम्हा आ जाए जब आप कुछ लिख पाए, लेखन मिडिया से अलग एक रचनात्मक क्रिया
है, कभी यूँ भी लगता है ये एक लम्हा है, जो आपके पास आता है एक छोटे बच्चे
की तरह और आँचल पकड़ आपके साथ साथ चलता है, इस लम्हे में आप जितना डूबते
है उतनी रचना भीगी हुई होती है, उस लम्हे का इंतज़ार लेखक हमेशा करता है,
ये मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ कविता आपके पास आती है , उसमे थोड़ी सोच
आप लाते है लेकिन कविता आपके अन्दर जो बहुत समय से घुमड़ता है उसकी देन
होती है ! आजकल मुक्त छंद या अजान पहर की कविता प्रचलन में है, पहले हम
छंद युक्त कविताएं ही लिखते थे जिसमे मेहनत अधिक थी, कविता खुद अपने आप ही
जन्मती है इसे एक शेर के साथ कह अपनी बात ख़त्म करुँगी ..........<br />
कि टूट जाते है कभी मेरे किनारे मुझमे<br />
डूब जाता है कभी मुझमे समंदर मेरा ............<br />
<br />
डॉ
विमलेश कांति ने अपने वक्तव्य में कहा आज मुझे यहाँ आकर बहुत सुखद
अनुभूति हो रही है यहाँ आज नए मीडियाकर्मी और नई पीढ़ी के लोग अपनी बात कह
रहे है हम वृद्ध लोगो के समक्ष ये अच्छी बात है, ईश्वर ने हमें एक मूह दो
कान दिए है शायद इसीलिए हम कम बोले और अधिक सुने, गांधी जी भी यहीं कहते
थे, मीडिया और लेखन दो ऐसे विषय है, उनमे शक्ति अपरिमित है, लेकिन शक्ति का
नियत्रण कैसे हो ? कैसे हम उसे सही मार्ग पर ले जाए, ये सोचने की बात है !<br />
<br />
कार्यक्रम
का संचालन किरण आर्या और अरुन शर्मा अनंत ने किया। इंडिया अनलिमिटेड की
संपादक ज्योत्सना भट्ट ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस मौके पर उपलब्धियों और
प्रोत्साहन के लिए भोपाल के डा सौरभ मालवीय(पत्रकारिता), भागलपुर के मनोज
सिन्हा(फोटो पत्रकारिता)और साहित्य के लिए प्रज्ञा तिवारी, राजेंद्र सिंह
कुंवर फरियादी और कौशल उप्रेती विष्णु प्रभाकर सम्मान से सम्मानित किए
गए। इन सभी को ये सम्मान समारोह की मुख्य अतिथि पदमा सचदेव और साहित्यकार
गंगेश गुंजन ने दिया।<br />
<br />
<br />
प्रस्तुति : किरण आर्या</div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-42183936663523864072014-09-16T22:14:00.000-07:002014-09-16T22:22:18.411-07:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : जुलाई २०१४<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_5k3v _5k3w clearfix" style="text-align: justify;">
<b>सन्निधि संगोष्ठी अंक :</b><b> 16</b><br />
<b>दिनाँक / माह :</b><b> </b>19 जुलाई 2014<br />
<b>विषय :</b><b> </b><b> </b>कहानी<br />
***************************************************************************<br />
<br />
नमस्कार
मित्रो दिनांक 19 जुलाई 2014 को सायं 5.00 बजे से राजघाट 1 जवाहरलाल
नेहरु मार्ग, अम्बेडकर स्टेडियम के समीप गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा
के सन्निधि सभागार में कहानी पर आधारित सन्निधि संगोष्ठी सफलतापूर्वक
संपन्न हुई, गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसम शाह के सानिध्य
में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता भाषाविद नारायण कुमार जी ने की, और
मुख्य अतिथि के तौर पर नाटककार और कहानीकार असगर वजाहत साहब हमारे बीच
उपस्थित रहे !<br />
<br />
अतिथियों, प्रतिभागियों और श्रोताओं का स्वागत भाषण
विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार ने किया, अतुल जी ने अपने
वक्तव्य में कहा सन्निधि अब तक सफलता पूर्वक मासिक गोष्ठी करती आई है अब
जरूरत है हम भविष्य में होने वाली गोष्ठियों की दिशा बदले, गोष्ठी किसी
विषय वस्तु पर केन्द्रित हो, उसमे विधा का बंधन ना हो, विषय वस्तु प्रमुख
रहे, अगर हम हिंदी के अलावा अन्य प्रदेशों की भाषाओं को लेकर भी चले तो हम
सार्थक प्रयास कर पायेंगे!<br />
<br />
कार्यक्रम का संचालन प्रसून लतांत और
किरण आर्या ने किया। गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर
प्रतिष्ठान की ओर से आयोजित होने वाली इस बार की संगोष्ठी कहानी विधा पर
केंद्रित थी और इसमें चार नए रचनाकारों ने अपनी-अपनी कहानियों का पाठ
किया। संगोष्ठी में जाह्नवी सुमन की ‘अपना घरौंदा’, अनघ शर्मा की ‘चीनी
मिट्टी रेशम पानी’, शोभा रस्तोगी की ‘डायन’ और राजीव तनेजा की ‘अलख
निरंजन’ चार अलग तरह की कहानियां पढ़ी गई !<br />
<br />
इस संगोष्ठी में गाँधी
हिन्दुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह जी के साथ अतुल प्रभाकर,
लतांत प्रसून, आराधना प्रभाकर, अनीता प्रभाकर, सोमा विश्वास, राजीव तनेजा,
रचना आभा, वी के बोंस, उर्मिला माधव दी, विवेक रॉय, नीरव कुमार, रुपेश
कुमार, अशोक झा, परीक्षित नारायण सुरेश, अरुन कुमार, शिवानंद सहर
द्विवेदी, बीना हांडा, राजेन्द्र कुंवर फरियादी, वीरेंद्र सिंह, इंदु
कड्कल, निर्मल कान्त, अटल गाँधी जी के साथ अन्य कई मित्र शामिल रहे !<br />
<br />
इसके
पश्चात् असगर वजाहत जी ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा जितनी भी
कहानियां यहाँ पढ़ी गई, और जो आयोजक है वो सब बधाई के पात्र है, वो एक ऐसे
कार्य में संलग्न है जो सराहनीय है, समाज को बदलने का काम साहित्य और
संस्कृति करती है, हम लोग जिस साहित्य की प्रगति में लगे है, वो जड़ों से
बदलने का काम कर रहा है, उनका कहना है कि राजनीति समाज में ऊपर-ऊपर बदलाव
लाता है पर साहित्य यह काम नीचे से करता है। उन्होंने समाज में बेहतर
बदलाव के लिए साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों की सक्रियता की जरूरत बताई।
असगर वजाहत ने कहा कि जानकारियों की लगातार बढ़ती उपलब्धता के दौर में
कहानीकारों के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। उन्हें यह सोचना पड़ रहा है कि
कहानी के जरिए वे अपने पाठकों को क्या देना चाहेंगे, क्योंकि बहुत-सी
जानकारियां अब लोगों को विभिन्न स्रोतों से मिल जाती हैं। कहानी के शिल्प
की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कहानी भाषण नहीं है। भाषण के समाहित
होने से डू और डोंट के जुड़ते ही कहानी की ताकत कम हो जाती है। उन्होंने
कहा कि पाठक को कहानी में गैर जरूरी चीजों में नहीं अटकाया जाना चाहिए।
उन्होंने नए रचनाकारों से कहा कि केवल घटना बता कर कहानी लिखेंगे तो पाठक
भ्रमित हो जाएंगे। वजाहत ने कहा कि लेखक को खिलाड़ियों की तरह ही कठिन
परिस्थितियों में से गेंद को निकाल कर अपने कब्जे में लेकर गोल करना होता
है। लेखक को संतुलित संयम के साथ अपने लक्ष्य तक पहुंचना होता है।
उन्होंने कहा कि कहानी लिखने के पहले हमें इस बात पर जरूर गौर करना चाहिए
कि हमें कहानी में क्या नहीं कहना है! कहानी का औचित्य क्या है? कहानी
पाठक को सोचने पर विवश करे, आज का युग सूचनाओं का युग है, सर्च इंजन से
सर्च करने पर हर तरह की सूचनाये उपलब्ध हो जाती है, आप जो कहे वो किसी
सर्च इंजन से ना मिले, एक कहानी जो आप लिख रहे है अपने लिए नहीं पाठकों के
लिए लिख रहे है, और पाठक को बांधे रखना सबसे मुश्किल काम होता है, आपके
लिए अपनी बात कहना एक कला है, बहुत से लोग सोचते है कागज़ कलम हाथ में है
तो कुछ भी लिख सकते है, आपको उपदेश्य तय करना है, अपनी कहानी का, जितने
संयम से आप चलेंगे उतनी क्षमता से आप अपने लक्ष्य तक पहुँच पायेंगे, पाठक
को गैर जरुरी बातों में भटकाना लक्ष्य से दूर ले जाता है, इसीलिए कहानी
लिखते समय हम संवेदनशील बने अच्छा लिखने का सबसे सरल माध्यम है अच्छा लिखा
पढना, उसकी रौशनी में आप जान पायेंगे की अच्छा लेखन किस प्रकार किया जाता
है, मुझे ख़ुशी हुई ये देखकर युवा पीढ़ी अच्छा लिखने का प्रयास कर रही है !<br />
<br />
संगोष्ठी
की अध्यक्षता कर रहे नारायण कुमार जी ने अपने वक्तव्य में कहा, मुझे याद
आता है, जब मैं पढ़ रहा था, तो उस दौरान हमारे एक मित्र बोले तुम पी एच डी
कर लो, उस समय कथा की समीक्षा का कोई मापदंड नहीं था, उसी समय में धर्मवीर
भारती ने धर्मयुग के नाम से एक पत्रिका का संपादन शुरू किया, और मोहन
राकेश ने सरिता में "आईने के सामने" एक स्तंभ शुरू किया जिसमे उन्होंने
पूछा तुम क्यों लिखते हो? तो नागार्जुन ने कहा राकेश तुम शरारती हो, तुमने
मुझे आईने के सामने खड़ा कर दिया ! एक कहानी का निरूपण चार तत्व करते है,
ईश्वरीय तत्व, राजनैतिक तत्व, उत्सुकता और वल्गरिटी इन सबका मिश्रण कहानी
की दशा दिशा तय करता है, हिंदी कहानी में अंग्रेजी शब्दों का बहुतायात में
प्रयोग कहानी के पक्ष को निर्बल कर देता है, जो शब्द आप उपयोग में लाते
है, वहीँ कहानी को प्रवाह प्रदान करते है ! अपनी जो आंचलिक कहानियां है,
उनमे शब्दों के पर्याय ना लिखा जाना पाठकों के लिए असमंजस की स्थिति पैदा
करता है अक्सर, इसीलिए कहानी जिस भाषा में हो उसे उसी भाषा में ही लिखा
जाना चाहिए ! मैं धन्यवाद करता हूँ आयोजको का जिनकी वजह से मैं असगर वजाहत
जी के संसर्ग में बैठा हूँ, और एक गैर कथाकार आदमी होने के बावजूद कहानी
के विषय में कह सुन रहा हूँ !<br />
<br />
संगोष्ठी के अंत में लतांत प्रसून जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया !<br />
<br />
प्रस्तुति : किरण आर्या</div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-40549056642226446042014-09-16T22:13:00.000-07:002014-09-16T22:22:26.768-07:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : जून २०१४<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_5k3v _5k3w clearfix" style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_nd94phChB-VVjymMaxlBqVHtrx7FBtAqorG0TcshIBde2t4jcOP82-HOOsQJv6MLupc6WqWGjdP1qQr7YrI6PebH2ovxqtpr5oPyaHuzbQCYD9T9aIaITE7LKUuXvyFNTmAKlQ3efLE/s1600/june-2014.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_nd94phChB-VVjymMaxlBqVHtrx7FBtAqorG0TcshIBde2t4jcOP82-HOOsQJv6MLupc6WqWGjdP1qQr7YrI6PebH2ovxqtpr5oPyaHuzbQCYD9T9aIaITE7LKUuXvyFNTmAKlQ3efLE/s1600/june-2014.jpg" height="225" width="400" /></a></div>
नमस्कार मित्रो एक बार फिर जून माह
में हुई सन्निधि संगोष्ठी की विस्तृत रिपोर्ट आप सभी के समक्ष प्रस्तुत
है, क्षमा प्रार्थी हूँ पिछले कुछ समय से व्यस्तता के चलते रिपोर्ट
प्रस्तुत करने में देरी हो रही है !<br />
<br />
21 जून 2014 को होने वाली
सन्निधि संगोष्ठी सफलता पूर्वक संपन्न हुई, गोष्ठी के प्रारंभ में विष्णु
प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार ने पिछले पंद्रह महीनों से
लगातार संचालित की जा रही सन्निधि संगोष्ठी की उपलब्धियों की जानकारी देते
हुए अपने पिता विष्णु प्रभाकर के योगदान को याद किया। संचालन कर रहे
वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने मीडिया, संस्कृति, साहित्य और भाषा के
सवाल को अहम बताते हुए कहा कि अब इन सब मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने
का निर्णायक समय आ गया है।<br />
<br />
अशोक कुमार झा जी ने अपने वक्तव्य में
कहा विष्णु प्रभाकर जी के १०३ वें जन्मदिन पर काका साहेब कालेलकर की
कर्मस्थली में "द डे आफ्टर मंथ" के दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य में और
सन्निधि की १५वीं गोष्ठी के अवसर पर मैं आप सभी का हार्दिक अभिनंदन करता
हूँ, ये समारोह आप सभी के बिना पूरा नहीं होता, "द डे आफ्टर मंथ" के
प्रकाशन को दो साल पूरे हुए, इन दो सालों में न्यूनतम साधन से इस पत्रिका
के लगातार 24 अंकों का प्रकाशन करना हमारे लिए अत्यंत संघर्षपूर्ण रहा, इस
पत्रिका में राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक ख़बरों और लेखों के प्रकाशन के
साथ साहित्य और संस्कृति को भी प्रयाप्त महत्व दिया जाता रहा है, अभी हमने
फैसला किया है समय समय पर उन साहित्यकारों पर विशेषांक निकाला जाए जिनके
जन्म को सौ वर्ष पूरे हो चुके है, और इसी कड़ी में प्रथम बार जून का अंक
विष्णु प्रभाकर पर केन्द्रित किया गया, आज चिंता का विषय है, आज पात्र
पत्रिकाओं में साहित्य और संस्कृति को बहुत कम महत्व दिया जा रहा है, जबकि
हकीकत ये है अपने देश में हिंदी पत्रकारिता को स्थापित करने में साहित्य
और संस्कृति से जुड़े पुरोधाओं का योगदान रहा है, अगर साहित्य और संस्कृति
का प्रवाह बहता रहे, तो इससे समाज न सिर्फ समृद्ध होता है, अपितु इसे दिशा
भी मिलती है, इसीलिए आज के समारोह में होने वाली संगोष्ठी का विषय
"मीडिया साहित्य संस्कृति और भाषा" रखा गया है, हमें उम्मीद है संगोष्ठी
में हमारे विद्वान अतिथियों द्वारा जो विचार रखे जायेंगे, वें हम सभी के
लिए कारगर साबित होंगे !<br />
<br />
प्रेमपाल शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में
हिंदी की दिशा दशा पर चिंता व्यक्त की, उन्होंने कहा पिछले दिनों साहित्य
ही गायब नहीं हो रहा है, अपितु साहित्यकारों की स्मृतियाँ भी गायब हो रही
है सिरे से, कुछ समय पूर्व मेरा बनारस जाना हुआ, बनारस हिंदी का गढ़ माना
जाता रहा है, वहां पुस्तकालय के नाम पर २०-२० किताबें थी और उनकी भी जिल्द
फटी हुई थी, मेरी ये टिपण्णी यहाँ इसीलिए आवश्यक है क्युकि हिंदी आज
विस्मृति के दौर पर है हिंदी का जो नुक्सान हो रहा है, किसी विधा के खिलाफ
जो गोलबंदी है, उससे सुराख़ करने की शुरुवात हो चुकी है, गाँधी जी और उनके
अनुसरण करने वालो से हमने सीखा अपनी सतह से चिपककर रहना, पात्र पत्रिकाएं
भी धर्म की तरह हमारे भीतर प्रवेश कर जाती है, प्रेमपाल जी ने चिंता जाहिर
की कि न केवल साहित्य, बल्कि साहित्यकारों की स्मृतियां भी गुम हो रही
हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दृढ़ता के अभाव में आज हमारी हिंदी की
दुर्गति हो रही है।<br />
<br />
वरिष्ठ साहित्यकर और समयांतर पत्रिका के संपादक
पंजर बिष्ट ने अपने वक्तव्य में कहा विष्णु जी के साथ मेरी मित्रता रही और
एक लम्बे समय तक रही, लगभग २०-२५ साल बैठा करता रहा मैं उनके साथ कॉफ़ी
होम में ये कोई छोटा दौर नहीं था ये मान लीजिये मैंने अपनी जवानी का एक
विशिष्ट समय उनके साथ बिताया और विष्णु जी तो लगातार जवान ही रहे, असल में
विष्णु जी जिस तरह के व्यक्ति थे, ७७ के बाद जब आपातकाल के दौरान ही उनसे
मेरा सम्बन्ध बना मैंने विष्णु जी से ये सीखा एक लेखक होने के लिए सबसे
जरुरी ये है, आप कितने उदार हो, कितने लोगो के साथ आप मिल सकते है, क्युकि
विष्णु जी कॉफ़ी हाउस में बैठते थे और उनके साथ कोई भी बैठ सकता था, और
उनसे बात कर सकता था, अक्सर सारे हिन्दुस्तान से लोग वहां आते थे, उनके
बहुत से मित्रो से मेरा परिचय कॉफ़ी हाउस में ही हुआ, ऐसे ही त्रिवेंद्रम
के उनके एक मित्र से मेरा परिचय वहां हुआ और बाद में एक बार त्रिवेन्द्रम
जाने पर उन्ही मित्र ने हमारी बहुत सहायता की, विष्णु जी की मित्रता का
दायरा बहुत बृहद था, उनके जैसे दायरा तभी बन सकता है जब आप उदार हो या फिर
आपकी रचनाओं से लोग परिचित हो, दूसरी बात जो लेखक के तौर पर मैंने उनसे
सीखी वो ये है, एक लेखक अपने विचारो में लगातार उदार होता है, और वो एक
बेहतर समाज के निर्माण के लिए जहाँ समानता हो, ऐसे समाज निर्माण के लिए वो
सतत प्रयत्नशील होता है, और कल्पनाशीलता के साथ उसी के लिए वो जीवन भर
काम करता है, विष्णु जी की रचनाओं में लगातार आप ये बात देखेंगे, उन्होंने
जातिप्रथा स्त्री पुरुष के बीच के अंतर को मिटाने का प्रयत्न किया ये
अपने आप में एक बड़ी बात थी, तीसरी बात ये है आप देखिये लेखक की दुनिया
सीमित नही होती, वो कितना विशाल होता है इसका उदाहरण कि विष्णु प्रभाकर जी
शरत जी के जीवन से प्रभावित रहे, और उनकी जीवनी पर उन्होंने काम किया,
ऐसे कठिन दौर में जब उनके पास आय का कोई निश्चित साधन नहीं था, और परिवार
की जिम्मेदारियां भी थी, वो जिस तरह से बांग्लादेश और वर्मा तक गए, और शरत
जी के जीवन सम्बंधित जानकारी एकत्र करी, और बाद में आवारा मसीहा जैसी
कृति समाज को दी वो अपने आप में एक मील का पत्थर है, एक लेखक के नाते आपको
खुला और विश्वसिक दृष्टि का होना चाहिए, ये वो बातें है जो संस्मरण रूप
में मैं आज विष्णु जी की १३०वी जन्मशती के अवसर पर उन्हें श्रधान्जली रूप
में उन्हें अर्पित करना चाहता हूँ, जब भी विष्णु जी को याद करता हूँ मुझे
लगता है मैंने उनके साथ एक पूरी शताब्दी पार कर दी हो, मैं उनके निकट रहा
ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है, आज जो विषय है उसपर बात करना थोडा सा विकट
है, आज जो दौर है वो मीडिया का दौर है, आज बेव पत्रकारिता पूरी तरह से
हमारे जीवन को प्रभावित है करती है, संस्कृति को बचाने में राष्ट्रभाषा
हिंदी का अहम योगदान रहा है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया की ओर से संस्कृति पर हो
रहे लगातार हमले पर अफसोस जताते हुए कहा कि देश में त्रिभाषा प्रणाली
लागू नहीं की गई। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा का अधिकार अपनी
मातृभाषा में ही हासिल करने की कोशिश होनी चाहिए।<br />
<br />
अध्यक्षीय वक्तव्य
देते हुए केके बिड़ला फाउंडेशन के निदेशक डा सुरेश ऋतुपर्ण ने कहा कि
हिंदी का सवाल अहम है। इसकी समृद्धि के लिए निरंतर प्रयास होने चाहिए।
उन्होंने कहा कि भाषा गई तो संस्कृति भी नहीं बचेगी। डा ऋतुपर्ण ने भारत
से बाहर के देशों में हिंदी के बढ़ते प्रचार-प्रसार के बारे में विस्तार से
बताया।<br />
<br />
गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर
प्रतिष्ठान की ओर से आयोजित समारोह में विष्णु प्रभाकर पर केंद्रित ‘द डे
आफ्टर मंथ’ के विशेषांक का और उत्तर प्रदेश में छप्पन गांवों में
पुस्तकालय अभियान को संचालित करने वाली संस्था कर्तव्य की ओर से प्रकाशित
पत्रिका का लोकार्पण किया गया। साथ ही गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की
मंत्री सुश्री कुसुम शाह के सानिध्य में समाजसेवा, पत्रकारिता और अन्य
क्षेत्रों में उल्लेखनीय भूमिका निभा रहे युवाओं में शूमार कुमार कृष्णन,
अमृता , राजीव तनेजा, अरुण शर्मा अनंतसुशील जोशी, सज्जन कुमार गर्ग, सोमा
विस्वास, बीएम मिश्रा, अनिल कुमार बाली और अशोक झा को सम्मानित किया गया।<br />
<br />
समारोह
के आखिर में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें हर्षवर्धन आर्य, इंदू
सिंह, सुशील जोशी, संतोष सौम्य, सरोज सिंह, रुप आहूजा, अनिल कुमार बाली,
राहुल उपाध्याय, अरुण शर्मा अनंत, निवेदिता मिश्रा झा और सोमा विस्वास ने
अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया। काव्य गोष्ठी का संचालन सन्निधि संगोष्ठी
की संयोजिका किरण आर्या ने किया। धन्यवाद ज्ञापन द डे आफ्टर मंथ की
महाप्रबंधक सारिका ने किया। समारोह में रमेश शर्मा, गंगेश गुंजन और नारायण
कुमार सहित हंस पत्रिका के कार्यकारी संपादक संगम पांडेय के साथ बहुत से
मित्र भी मौजूद थे जिनमे आलोक खरे, डी के बोस, नरेन् आर्य, राजेन्द्र
कुंवर फरियादी, प्रेम सहेजवाला, संजय गिरी भी मौजूद थे।<br />
<br />
प्रस्तुति : किरण आर्या</div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-36014358867255926672014-06-05T22:08:00.002-07:002014-06-05T22:16:29.020-07:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : मई २०१४<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi85RacTj39-ZSa968L1g7ydLdHKIDfGgKs3N-XbUJbwGMAfVJgR4I4dnoXl11Oe7s69EwHC6pqttkkxYiulFgkvgRsrexBvktpcGsAS6JmQl4V_DmbLvBRcgfqUs5RulH1Uf8cKtfdh8o/s1600/mai.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi85RacTj39-ZSa968L1g7ydLdHKIDfGgKs3N-XbUJbwGMAfVJgR4I4dnoXl11Oe7s69EwHC6pqttkkxYiulFgkvgRsrexBvktpcGsAS6JmQl4V_DmbLvBRcgfqUs5RulH1Uf8cKtfdh8o/s1600/mai.jpg" height="298" width="400" /></a></div>
<br />
<div style="text-align: center;">
<b> सन्निधि संगोष्ठी अंक :</b><b> 14</b></div>
</div>
<div style="text-align: center;">
<b>दिनाँक / माह :</b><b> </b>24 मई 2014</div>
<div style="text-align: center;">
<b>विषय :</b><b> </b><b> </b>कविता</div>
<div style="text-align: center;">
*********************************************************************************************</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
नमस्कार मित्रो 24 मई को होने वाली सन्निधि संगोष्ठी सफलतापूर्वक
संपन्न हुई, यह गोष्ठी कविता पर आधारित रही, इस गोष्ठी में वरिष्ठ कथाकार
और कवयित्री कमल कुमार जी अध्यक्ष के रूप में और कवि-गजलकार और आकाशवाणी
के उप महानिदेशक लक्ष्मी शंकर वाजपेयी मुख्य अतिथि के रूप में हमारे बीच
रहे, इसके आलावा अतिथि कवियों के तौर पर ममता किरण, निरुपमा सिंह और केदार
नाथ कादर जी भी हमारे बीच रहे .....</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसके अतिरिक्त गंगेश गुंजन, ममता किरण, निरुपमा सिंह, केदारनाथ कादर,
अतुल प्रभाकर, वंदना ग्रोवर, नीरज द्विवेदी, कौशल उत्प्रेती, संगीता
शर्मा, रश्मि भारद्वाज, सुशीला श्योराण, आलोक खरे सहित संगोष्ठी का संचालन
कर रहीं किरण आर्या ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया। इन सभी की कविताओ
देश की चिंता समाई थी और भविष्य के प्रति उम्मीदें थीं।</div>
<div style="text-align: justify;">
इस संगोष्ठी में श्रोता रूप में अनुराधा प्रभाकर, सुरेश चंद्रा,
सीमान्त सोहल, उर्मिला माधव, राजीव तनेजा, अविनाश वाचस्पति, आनंद कुमार
द्विवेदी, मृदुला शुक्ला, कामदेव शर्मा, देवेन्द्र तिवारी, सोमा दास,
रश्मि नाम्बियार, मेरी प्यारी सखी कुसुम कुशवाहा और अन्य कुछ मित्रो ने
शिरकत की !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
संगोष्ठी के प्रारंभ में संगोष्ठी के मकसद को उजागर करते हुए वरिष्ठ
पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि आज किताबों में कविता देखने को मिलती है
पर जीवन में वह खत्म हो गई है। स्वागत अतुल प्रभाकर ने किया, और अपना एक
भाव भी हम सभी के समक्ष रखा, गोष्ठी की संयोजिका किरण आर्य ने काव्य पाठ
के लिए मित्रो को आमंत्रित किया और अपने कुछ भाव भी रखे हम सभी के समक्ष !</div>
<div style="text-align: justify;">
इसके पश्चात् मुख्य अतिथि लक्ष्मी शंकर बाजपई जी ने अपना वक्तव्य दिया,
उन्होंने कहा मैं आभारी हूँ, पहले मैं साझा करना चाहूँगा एक सवाल कि
भविष्य में कविता का स्वरुप क्या होगा? कविता रहेगी या नहीं? इसमें कोई
संशय नहीं है, कविता का सम्बन्ध भावो से है इसीलिए कविता का अस्तित्व
हमेशा विद्धमान रहेगा, जीवन में जितनी पेशोपेश या समस्या है उनका निदान
कविता और साहित्य में है, जो साहित्य कला से जुड़ा नहीं है वो ह्रदय पशु
समान है, कविता पर आज जो संकंट है गहरा है, वो सोचनीय है, मैं विश्व कविता
महोत्सव में गया, तो वहां कविता का जो रूप देखा बेहद खूबसूरत था, पूरा
देश कविता में था, दिल्ली और पूरे देश में ऐसे प्रयास की जरूरत है, जरुरी
है कविता को स्कूल कॉलेज और आम जन तक पहुचाया जाए, दूसरा संकट कविता को
उनकी तरफ से है, जो कविता को घटिया तरीके से कविता को पाजेब पहनाकर चौराहे
पर नाचाना चाहते है, कविता की सरलता सहजता जो गाँव शहरों में बसती थी, वो
फिर से जीवंत हो जरुरी है, एक कविता वो है जो किताबो में है और एक कविता
वो है जो कठिन जटिल गद्य को कविता रूप में प्रसारित किया जा रहा है, कविता
बोद्धिक विलास का पर्याय नहीं हाही, आज के युवाओं के लिए दो हिंदी कवियों
के नाम बताना भी दुर्लभ जान पड़ता है, हमारे लोकसभा अध्यक्ष ने देश भर से
ढाई सौ से अधिक बुद्धिजीवी बुलाये थे जिनमे एक भी हिंदी कवी का नाम नहीं
था, इतने बुद्धिजीवियों में एक भी कवि का ना होना कवियों की कमियों की और
इंगित करता है, कविता को आज जो अजीबोगरीब रूप दे दिया गया है वो सोचनीय
है, कविता का आज जो बटवारा हो रहा है वो मेरी समझ से परे है, कविता में
साम्प्रदायिकता नहीं होनी चाहिए, जब तक संसार में मनुष्य रहेगा तब तक
कविता का वजूद बना रहेगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
कविता मनुष्य की ताकत है इसे केवल तथाकथित विद्वानों और अभिजात्यों के
दायरे से बाहर लाने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि अपने
देश में कविता की समृद्ध वाचिक परंपरा पूरी तरह से लुप्त हो गई है और उसके
नाम पर जो कुछ बचा है उसकी सराहना नहीं की जा सकती है, क्योंकि वह पूरी
तरह फूहड़ हास्य-व्यंग्य तक सीमित रह गई है। उन्होंने कहा कि पहले किताबों
और पत्रिकाओं में छपने वाले महान कवि भी कवि सम्मेलनों में भाग लेते थे और
आम जनता कविता से जुड़ती थी। आज किताबों में छपने वाले कवि भी आम जनता से
दूर हो गए हैं और फूहड़ कवि सम्मेलनों से लोगों को कोई दिशा नहीं मिलती।
हिंदी कविता समाज में अपनी पैठ बनाए आज ये प्रयास होने चाहिए ! लक्ष्मी
शंकर ने अपनी कुछ कविताएं और ग़ज़ल भी सुनाई !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसके पश्चात् गोष्ठी की अध्यक्ष कमल कुमार जी ने अपने वक्तव्य में कहा,
मैं विष्णु प्रभाकर जी की स्मृति को नमन करते हुए आप सभी मित्रो का
स्वागत करती हूँ, कविता नदी की तरह, धूप की तरह, हवा और नदी की तरह होती
है, इन सभी का बहना अविरल और सतत है, जिन्दगी के जो अनुभव और क्षण है उनमे
पिरोकर आज कविता अलग अलग ढंग से लिखी जा रही है, कविता अपने अंतस की
प्रेरणा अंतस का उजास है, उसका ही प्रकाश है, कवि जब छंद में कविता बोलते
है, आपके मस्तिष्क और भाव को बांधती है, छंद मुक्त कविता पहले मस्तिष्क
में जा फिर भावो का आकार लेती है, उसके पश्चात् उन्होंने अपनी कुछ कविताये
सुनाई !</div>
<div style="text-align: justify;">
गोष्ठी के अंत में धन्यवाद ज्ञापन नंदन शर्मा ने किया।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
प्रस्तुतकर्ता : किरण आर्य</div>
<div style="text-align: justify;">
संयोजक (सन्निधि संगोष्ठी)</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-10679117164591900402014-04-26T22:17:00.000-07:002014-06-05T22:18:02.782-07:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : अप्रैल २०१४<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZR6HLWGSrklMYntp8OR0A5-UMTLfFNUhFE0vxvkbJMxsJSWQ9xa04k3F0vcujJNoipxKP_vvo82LLDdk87zatTxnPbz6ivLkP3wC7H-YZM4JXGLhH9-L4HbKiqGYqz9LU9SUtLWbJZGI/s1600/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%B2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiZR6HLWGSrklMYntp8OR0A5-UMTLfFNUhFE0vxvkbJMxsJSWQ9xa04k3F0vcujJNoipxKP_vvo82LLDdk87zatTxnPbz6ivLkP3wC7H-YZM4JXGLhH9-L4HbKiqGYqz9LU9SUtLWbJZGI/s1600/%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%88%E0%A4%B2.jpg" height="298" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<strong>सन्निधि संगोष्ठी अंक : </strong><strong>13</strong></div>
<div style="text-align: center;">
<strong>दिनाँक / माह : </strong><strong> </strong>26 अप्रैल 2014</div>
<div style="text-align: center;">
<strong>विषय : </strong>एकल नाट्य प्रस्तुति एवं काव्य पाठ</div>
<div style="text-align: center;">
**************************************************</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
दिनांक
26 अप्रैल 2014 सायं 5 बजे से गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के सन्निधि
सभागार में काका कालेलकर और विष्णु प्रभाकर की स्मृति में अभिनेता निर्देशक
रवि तनेजा जी द्वारा " प्यासा कौआ" एकल नाट्य पस्तुत किया गया, और इसके
साथ ही कुछ मित्रो के द्वारा काव्य पाठ भी किया गया, एक और सफल संगोष्ठी
जिसमे सम्मिलित रहे अतुल कुमार, लतांत प्रसून, अतुल जी की श्रीमती आराधना
प्रभाकर, उनकी सुपुत्री और दामाद, अनीता दी, राम श्याम हसींन, भाई कौशल
उप्रेती, नीरज द्विवेदी, सुमन जान्हवी, मेरी प्रिय सखी स्नेहलता मांगलिक,
उसके पतिदेव भरत मांगलिक, बीना हांडा, उनके पतिदेव, उनके साथ और भी मित्र
इस आयोजन का हिस्सा रहे, आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में अजय कुमार और
संगम पाण्डेय जी सम्मिलित रहे !</div>
<div style="text-align: justify;">
सबसे पहले वरिष्ठ पत्रकार प्रसून जी
ने अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ संगोष्ठी की शुरुवात की प्रसून लतांत ने
हिंदी में नाटक लेखन के इतिहास को पेश करते हुए कहा कि तीस साल पहले तक देश
के गांव-गांव में होने वाले नाटकों का चलन अब थम गया है। नाटकों का यह दौर
स्थानीय युवाओं को अपनी प्रतिभा को चमकाने और उभारने का बहुत बड़ा जरिया
था। उन्होंने कहा कि न केवल गांवों और कस्बों में होने वाले नाटकों का दौर
खत्म हुआबल्कि हजारों सालों से चली आ रहीलोकनाट्य की परंपरा भी लुप्त होने
के कगार पर है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसके पश्चात् प्रसून जी ने स्वागत भाषण के
लिए अतुल जी को मंच पर बुलाया, अतुल जी ने स्वागत भाषण के साथ नाटक के विषय
वस्तु पर प्रकाश डाला और सन्निधि संगोष्ठी को नए रचनाकारों के लिए उपयोगी
मंच बताते हुए कहा कि साल भर से आयोजित की जाने वाली संगोष्ठियों में सभी
विधाओं को शामिल किया गया और सौ से कहीं ज्याद नए रचनाकारों ने इसमें शिरकत
की है। उन्होंने कहा कि अबकी बार नाटक को शामिल किया गया क्योंकि यह
साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा है पर आज इसकी बहुत उपेक्षा हो रही है।
इसके पश्चात उन्होंने किरण आर्य को मंच पर बुलाया !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
किरण
आर्य ने मंच से सभी मित्रो का अभिनन्दन करते हुए कविता पाठ के लिए उर्मिला
माधव, सरिता दास, मधु लबाना और सुशील कुमार को बुलाया और उसके पश्चात् संगम
पाण्डेय जी ने अपना वक्तव्य दिया !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
संगम जी ने कहा नमस्कार
मैं यहाँ एक ही निमित से हूँ, कि मुझे अजय कुमार और रवि तनेजा जी का परिचय
कराना है, ये दोनों ही रंगमंच के जाने माने नाम है, रवि तनेजा जी का रंगमंच
से गहरा नाता रहा है उनके ससुर साहब सिद्धू जी भी रंगमंच से जुड़े है, और
इसके साथ उनका पूरा परिवार रंगमंच और कला को समर्पित है, ये नाटक भी उन्ही
का लिखा हुआ है जिसका मंचन आज यहाँ होने जा रहा है, अजय कुमार नाट्य कला
अकादमी से 2000 में स्नातक हुए उन्होंने देश विदेश की यात्रा की और नाटक
किये अजय जी अभिनेता बहुत अच्छे है लेकिन इनकी निपुणता गायन में है !
उन्होंने कहा किसी कौम की सेहत के बारे में जानने का सही तरीका स्कूल और
कॉलेज में मिली विद्या से होता है, सच हमेशा कड़वा कसैला होता है, और उसे
पचाना मुश्किल होता है, कला के नाम पर इसे सामने आना ही चाहिए, एक लेखक
अपनी ईमानदारी से इसे सामने रखता है, समाज आईना होता है, समाज के सामने
विकल्प होते है, खुद को सँभालने संवारने के, नाटककार में संयम नहीं होता
आलस होता है, तो वह कहानी को बांधता है कुछ पलों घंटो में ! और अंत में
उन्होंने एक शेर कहा ..........काश के ख़ुदा बक्शे हमें ऐसी ताकत
.........के चश्में में गैरों के हम खुद को देख सके !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसके पश्चात्
रवि तनेजा ने अपने एकल अभिनय के जरिए पेश कर यह बताया कि आज प्यास बढ़ गई है
और पानी न केवल तालाबों और नदियों से गायब हो रहा है बल्कि जिंदगी का पानी
भी लगातार कम हो रहा है। रवि तनेजा ने एकल अभिनय के जरिए न केवल एक
गांधीवादी शिक्षक आत्माराम की विडंबनापूर्ण जिंदगी के साथ उनकी संततियों के
बुरे हश्र की वजहों को उजागर किया, बल्कि चौपट हो रही दुनिया का भयावह
चित्र भी प्रस्तुत किया। तनेजा गांधीवादी शिक्षक आत्माराम को स्कूल से
सेवानिवृत्त होने के एक दिन पहले नौकरी से हटा देने से लेकर उनकी संतानों
की बरबादी की कथा को अपने सधे अभिनय में सहज ढंग से दर्शकों में संप्रेषित
करने में कामयाब रहे। गांधी और भगत सिंह के विचारों के अंतरद्वंद्व में
झूलते समाज की दशा को पेश करते हुए तनेजा ने जाहिर किया कि कैसे शिक्षक
आत्माराम की बेटी भाग गई। नक्सली बना बड़ा बेटा शासन की प्रताड़ना का शिकार
हुआ तो छोटा बेटा नशे का शिकार हो गया। इन बरबादियों को मास्टर आत्माराम
रोक नहीं सका और अपनी असमर्थता पर पछताता-टूटता आत्माराम का दर्द आज केवल
उसका नहीं रह गया है बल्कि अपने देश के सच्चे मूल्यों को आधार बना कर जीने
वाले हरेक आदमी का दर्द हो गया है।</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
और गोष्ठी के अंत में संगोष्ठी
में नई शैली में नाटकों को लोक गायन से जोड़ने के लिए चर्चित निर्देशक और
अभिनेता अजय कुमार ने अपनी प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर
दिया।...........</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
किरण आर्य</div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-85577783321336194912014-03-22T22:11:00.000-07:002014-06-05T22:16:46.379-07:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : मार्च २०१४<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8wHauxKgvr69X_mhgtK_VgrcAXwqYSSiRtpXoGj6r3ytzOTZOAdXfEhHLCcjW_o3inFYJQK1BJObQDg5YLfJg31cN8a6n6wTTnjOSsljFuLIpHLRoS4lNTmAXOGnGH9W18O0rfHOv_vY/s1600/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8wHauxKgvr69X_mhgtK_VgrcAXwqYSSiRtpXoGj6r3ytzOTZOAdXfEhHLCcjW_o3inFYJQK1BJObQDg5YLfJg31cN8a6n6wTTnjOSsljFuLIpHLRoS4lNTmAXOGnGH9W18O0rfHOv_vY/s1600/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A.jpg" height="215" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<b>सन्निधि संगोष्ठी अंक : </b><b>12</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>दिनाँक / माह : </b><b> 22 , </b>मार्च<b> </b><b>2014</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>विषय : </b>विभिन्न विषयों पर आधारित</div>
<div style="text-align: center;">
***************************************************************************</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
नमस्कार
मित्रो दिनांक 22 मार्च 2014 को सन्निधि की बारहवीं संगोष्ठी सफलता पूर्वक
संपन्न हुई, संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार कथाकार अजय नावरिया
जी ने की, मुख्य अतिथि के तौर पर क्षमा शर्मा जी हमारे साथ रही और इसके
अतिरिक्त विशिष्ट अतिथि के तौर पर डॉ. सुरेश शर्मा, नरेंद्र भंडारी जी
हमारे बीच रहे, और उनके साथ अतुल प्रभाकर जी, लतांत प्रसून जी, कुसुम शाह
दी, अनुराधा प्रभाकर, अनीता प्रभाकर, अर्चना प्रभाकर जी और उनके पतिदेव,
आदरणीय गंगेश गुंजन जी, नंदन शर्मा जी, राजीव तनेजा जी, उनकी धर्मपत्नी
संजू तनेजा जो एक अच्छी सखी भी है और हर संगोष्ठी का हिस्सा होती है, केदार
नाथ जी जो हर गोष्ठी में श्रोता तौर पर शिरकत करते आये है, प्यारी सखियाँ
सुनीता शन्नो जी, अंजू शर्मा और वंदना गुप्ता, सरिता भाटिया दी, प्यारी
सुमन जान्हवी, मेरे जीवन का अभिन्न अंग मेरे पतिदेव नरेन् आर्य, छोटी बहन
संगीता शर्मा, बीना हांडा जी, महाखबर अखबार से सुधाकर सिंह, विवेक रॉय,
गौरव गुप्ता, भाई राजेंद्र कुंवर फरियादी, सरोज जोशी, डॉ सुरेश शर्मा जी की
धर्मपत्नी, सखी नेह सुनीता उनकी माँ, और अन्य कई मित्र इस आयोजन का हिस्सा
रहे.......</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
यह सन्निधि की बारहवीं संगोष्ठी थी, इसीलिए
इसमें अभी तक मंच पर आई सभी विधाओं को समाहित किया गया, जिसमे कविता, गीत,
ग़ज़ल, हायकु, कहानी, लघुकथा, क्षणिका, मुक्तक, व्यंग और दोहे सभी का समावेश
देखने को मिला, मंच पर आने वाले रचनाकारों में भाई सुशील जोशी (गीत), शिखा
सिंह (कहानी), सीमा अग्रवाल दी, जो कोरबा से है (गीत), भाई अरुन शर्मा
(ग़ज़ल), डॉ आरती स्मित (कविता), राजीव तनेजा (व्यंग), गुंजन गर्ग अग्रवाल
(हायकु), भाई नीरज द्विवेदी (क्षनिकाए), पी के शर्मा (व्यंग और मुक्तक),
मुन्ना भाई यानी अविनाश वाचस्पति (व्यंग), किशोर कौशल जी (दोहे) और सुमन
जान्हवी (लघु कथा) लेकर मंच पर आये !!</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
संगोष्ठी की
शुरुवात जनसता के वरिष्ट पत्रकार और सन्निधि के आधार स्तंभ लतांत प्रसून जी
ने अपनी चिर परिचित उर्जावान मुस्कान के साथ की......प्रसून जी की
जिन्दादिली और उर्जाशीलता हम सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है, दो शब्द कहने
के पश्चात् प्रसून जी ने सन्निधि संगोष्ठी की रीढ़ की हड्डी और हम सभी के
मार्गदर्शक अतुल प्रभाकर जी को स्वागत भाषण के लिए आमंत्रित किया.......</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अतुल
जी ने अपने वक्तव्य में मंच आसीन सभी सुधिजनो और संगोष्ठी का हिस्सा बने
सभी मित्रो का स्वागत करते हुए कहा कि राजधानी दिल्ली में ऐसे भी लेखक समूह
हैं जो पिछले तीस सालों से लगातार मासिक संगोष्ठी करते आ रहे हैं। उनके
सामने हम लोगों की उपलब्धियां बहुत कम हैं, अपार हर्ष हो रहा है, सन्निधि
आज अपनी बारहवीं संगोष्ठी कर रही है ......और इसके बाद उन्होंने संगोष्ठी
की शुरुवात करने हेतु किरण आर्य को मंच पर आमंत्रित किया......</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
संगोष्ठी
की संयोजक किरण आर्य ने मंच संचालन के साथ सभी विधाओं में अपने भाव मंच से
रखे और सादत हसन मंटो जी की एक लघु कथा भी उन्होंने मंच से सुनाई</div>
<div style="text-align: justify;">
और मंच पर हर विधा से रचनाकारों को अपने भाव रखने हेतु आमंत्रित किया.....</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसके
पश्चात् विशिष्ट अतिथि नरेंद्र भंडारी जी ने अपने वक्तव्य में कहा मैं कोई
साहित्यकार नहीं हूँ एक पत्रकार हूँ और इस आयोजन का हिस्सा बनना मेरे लिए
सुखद एहसास रहा बहुत, हम पत्रकार हमेशा कटघरे में खड़े नज़र आते है, लेकिन
फिर भी चरवेती सिद्धांत पर अमल करते हुए करते है अपने कर्तव्य का निर्वाह
सतत उसी प्रकार आप सभी के ये प्रयास सफल रहे और रंग लाये !</div>
<div style="text-align: justify;">
डॉ सुरेश
शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में कहा आज की गोष्ठी में कुछ भाव और व्यंग बहुत
बढ़िया थे, सन्निधि की इस उपलब्धि पर मैं अतुल जी और सन्निधि के सभी सदस्यों
को बधाई देता हूँ, उसके पश्चात् उन्होंने अपनी एक ग़ज़ल और दो कविताएं
सुनाई, जिनमे उनकी कविता दुमकटी ने दिल पर एक अलग छाप छोड़ी !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
इसके
पश्चात् संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करने वाली क्षमा शर्मा
जी जो नंदन की पूर्व अध्यक्ष रह चुकी है, और अभी भी बहुत सी सामाजिक
संस्थाओ के साथ जुडी है, ने अपना वक्तव्य दिया, क्षमा जी ने अपने वक्तव्य
में कहा, सभागार में उपस्थित इतने सारे रचनाकारों को एक साथ देखकर मैं
स्तब्ध हूँ, मैं साधुवाद देती हूँ किरण आर्य को उन्होंने सभी विधाओं में
हाथ आजमाया है, उन्होंने कहा सुशील जोशी ने राधा के गाल से गुलाल लेने की
बात कही, तो भाई साहब गोरा करने की क्रीम बनाने वालो ने सुन लिया तो पीछे
पढ़ जायेंगे, शिखा सिंह की कहानी स्त्रियों की उस मानसिकता को दर्शाती है,
जो सुविधाओं का गलत उपयोग करने की भावना को बखूबी दर्शाती है, स्त्री के
व्यक्तित्व में जो नकारत्मक है आज स्त्री उसे लिख रही है, वो सराहनीय है,
मैं बधाई देती हूँ आप सभी को आपके प्रयासों और सृजनशीलता के लिए ! उन्होंने
कहा मुख्य अतिथि की भूमिका बेटी को विदा करने वाले जैसी होती है, किसी की
अधिक तारीफ कर दी तो दुसरो को लगता है हमारी तो बखिया उधेड़ दी और इस पर
इतनी मेहरबानी क्यों, तो मैं सभी रचनाकारों को स्नेह आशीष देती हूँ !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उनके
वक्तव्य के पश्चात् प्रसून जी अध्यक्ष महोदय को बुलाते हुए कहा आज की
गोष्ठी में वट वृक्ष वल्लभ डोभाल जी अगर हमारे बीच नहीं आ पाए तो, तुलसी
पौधे के रूप में अजय नावरिया जी का हमारे बीच होना भी एक सुखद एहसास है !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
अजय
नावरिया जी जो दलित लेखक संघ के अध्यक्ष है, उन्होंने अपने वक्तव्य में
कहा, मैं आप सभी को बधाई देता हूँ एक सफल संगोष्ठी की, फेसबुक ने इतना सरल
कर दिया है, हम सभी आज चेहरे से एक दुसरे को पहचानते है, आज यहाँ एक तरफ नए
रचनाकार है तो दूसरी तरफ पी के शर्मा जी और अविनाश वाचस्पति जी जैसे मंजे
रचनाकार भी है, जो नए है वो नएपन को ओढे है और जो पुराने है वो अनुभव के
पिटारे के साथ, अविनाश जी को सामने देखकर एक विचार आया हमें अपनी विधा को
पहचानना होगा, और अगर हम देर करते है तो बहुत कुछ पीछे छूट जाता है, पहले
मैं कविताएं लिखता था, आज जब उन कविताओं को देखता हूँ तो लगता है कितना
बचकाना है वो सब, फिर कहानियां लिखना शुरू किया तो लगा हाँ यहीं है मेरी
विधा, हम लिखते है, तो केवल लिखने भर के लिए नहीं उसके साथ समकालीनों को
पढना भी आवश्यक है, जरुरी है हम परम्परा और समकालीनों को पढ़े, आपको
प्रशिक्षण की जरूरत है समय को बदलना है तो खुद को पहचानना होगा, आप सभी ने
कुछ हद तक तो मुझे अभिभूत किया ही, बाकी सतत प्रयास ही आगे बढ़ने की कुंजी
है !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
प्रसून जी ने कहा की नावरिया जी का कुछ हद तक
अभिभूत होना संगोष्ठी की सफलता का घोतक है, बढ़ते हुए पौधों को काटा नहीं
जाता है, हम लकड़हाडे नहीं माली है, वरिष्ठ साहित्यकारों को हमारे बीच
बुलाने का ध्येय ही ये है की उनके अनुभवों से नए रचनाकार कुछ सीख पाए !</div>
<div style="text-align: justify;">
अंत
में नंदन शर्मा जी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और साथ ही ये भी कहा हर समय ये
होता आया है जो नए रचनाकार आते है अगर उन्हें बहुत अधिक क्रिटिसाइज कर दिया
जाए तो वो भाग जाते है, निराश हो जाते है, तो हमें उन्हें भगाना नहीं उनकी
हौसला अफ़जाई करना है !..............</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>प्रस्तुतकर्ता : किरण आर्य</b></div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-86554493876140540962014-03-07T04:16:00.003-08:002014-03-07T04:17:12.988-08:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : फरवरी २०१४<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<b> सन्निधि संगोष्ठी अंक : 11</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>दिनाँक / माह : 15 फरवरी, 2014</b></div>
<div style="text-align: center;">
<b>विषय : हायकु / साहित्यिक पत्रकारिता</b></div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3xy931M9jnE-yDgpjR0qCBPdTTdgmXmgS2UKmrHrwcQkFYULaU2UK-gDl7Zb_4kKsHfRI9nXdQVHzsxIURSzzYnG7jh3ShkdMZA2j5e1ZaxhI9jSzHSZUTgsMMM7sF-kdkTFswXjDH6E/s1600/1982066_622297967824568_961670356_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3xy931M9jnE-yDgpjR0qCBPdTTdgmXmgS2UKmrHrwcQkFYULaU2UK-gDl7Zb_4kKsHfRI9nXdQVHzsxIURSzzYnG7jh3ShkdMZA2j5e1ZaxhI9jSzHSZUTgsMMM7sF-kdkTFswXjDH6E/s1600/1982066_622297967824568_961670356_n.jpg" height="298" width="400" /></a></div>
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
**************************************************************************************</div>
<div style="text-align: justify;">
नमस्कार
मित्रो 15 फ़रवरी को सन्निधि की ग्यारवीं संगोष्ठी जो साहित्यिक
पत्रकारिता पर आधारित रही, इस संगोष्ठी की अध्यक्षता जाने माने साहित्यकार
सीतेश आलोक जी ने की, मुख्य अतिथि के तौर पर राहुल देव जी हमारे बीच रहे,
जो जनसता और आज तक से संपादक के तौर पर जुड़े रहे है .....उनके अतिरिक्त
वक्ता के तौर पर विवेक मिश्रा, स्नेहा ठाकुर, विपिन चौधरी, शिवानंद सहर
द्विवेदी, और आशीष कांध्वे जी संगोष्ठी का हिस्सा रहे, इसके अतिरिक्त
अन्य बहुत से मित्र जिनमे केदार नाथ जी, मिथिलेश श्रीवास्तव जी उनकी
धर्मपत्नी श्रीमती अनीता श्रीवास्तव जी, संगीता शर्मा, सुशिल जोशी, कामदेव
शर्मा, भाई अविनाश वाचस्पति जी उनके मित्र डॉ सुरेश चन्द्र जी उनकी धर्म
पत्नी, श्री गंगेश गुंजन जी सहित बहुत से मित्र गण हमारे साथ शामिल
रहे.....</div>
<div style="text-align: justify;">
संगोष्ठी की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने की, और स्वागत भाषण
के लिए अतुल जी को आमंत्रित किया, अतुल जी ने स्वागत भाषण के साथ ही
संचालन की बागडोर प्रसून जी को सौप दी, प्रसून जी ने साहित्यिक पत्रकारिता
की बात करते हुए सबसे पहले विवेक मिश्रा जी को बुलाया.</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
विवेक
मिश्रा जी ने कहा साहित्यिक पत्रकारिता के विषय में बात करते हुए ये
जानना आवश्यक है कि साहित्यिक पत्रकारिता क्या है? साहित्यिक पत्रकारिता
की बात करते हुए किताबों की बिक्री या अन्य विषयों पर बात भटक जाती है !
जब हम साहित्य की बात करते है तो हम एक भाषा एक विषय की बात नहीं करते है,
एक संस्कृति एक समाज के दायरे में साहित्य को नहीं बांधा जा सकता है, जब
हम पत्रकारिता की बात करते है तो चीज़े बड़े और व्यापक स्तर पर लेते है, एक
चींटी आकाश को मोडती है और आकाश को लील लेती है, साहित्यिक पत्रकारिता
केवल सूचना का सन्दर्भ नहीं है, सवालों विचारों तक ले जाने वाली दुनिया
है, समाज की परत दर परत खोलने का काम साहित्य के माध्यम से किया जा सकता
है, यह व्यवस्था के विरोध की दुनिया है, जीवन में महिमामंडन की दुनिया है,
उपदेश्य है जीवन की उदारता, साहित्य के बिना दुनिया चल तो सकती है, लेकिन
कहीं पहुच नहीं सकती है, हिंदी में पत्रकारिता 19०० में सरस्वती संपादन
में हमारे सामने आई व्यापक रूप में, और जब उसमे वृन्दालाल जी प्रेमचंद जी
का उद्भव हुआ तब साहित्यिक पत्रकारिता मुखरित हुई, और रचनाये अधिक मारक
सिद्ध होने लगी, १९४७ आजादी के मोहभंग का समय रहा, और सोच जाति धर्म को
छोड़ वामपंथ का आलिंगन करने लगी ! बाज़ार आगमन के समय हंस जैसी पत्रिका का
उदभव हुआ जो आज तक स्थाई है, हंस के साल बीत जाने के बाद साहित्यिक
पत्रकारिता जो हाशिये पर खड़ी थी वर्गीकरण मांगने लगी आज जरूरत है
साहित्यिक पत्रकारिता को परिभाषित करने की उसका वर्गीकरण करने की !</div>
<div style="text-align: justify;">
इसके
पश्चात् किरण आर्य ने साहित्यिक पत्रकारिता पर अपने अल्प ज्ञान के साथ
कुछ बातें कहते हुए स्नेह ठाकुर जी को मंच पर आमंत्रित किया !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
स्नेह
ठाकुर जी ने अपने वक्तव्य में कहा मैं श्रदेय काका साहब जी को नमन करते
हुए सयोजकों को धन्यवाद देना चाहती हूँ, काका साहेब स्मरणीय है काश मुझे
उनके सानिध्य के कुछ पल प्राप्त हो पाते, बड़े बड़े विद्वान् मंचासीन है
किरण जी से मेरा ज्ञान अल्प से भी अल्पतर है, विवेक जी ने काफी अच्छी
व्याख्या की, और हमारे ज्ञान को बढाया, मैं ४५ साल से कनाडा में हूँ, मैं
भाषा ज्ञान को समझती हूँ मेरा बेटा नही समझ पायेगा द्विवेदी जी ने जो
निर्भीकता दिखाई मैं उसे ही पकड़कर निर्भीकता से बात कर रही हूँ, मेरे लिए
गर्व का विषय है, स्नेह ठाकुर ने कोयले में से हीरा निकाला, समस्या मेरे
सामने साहित्यिक पत्रिका निकालने की है विदेशों में अपनी भाषा को लेकर
अधिक कुछ निकाल सकते है, हम विदेशों में केवल कहने भर को भारतीय है, उससे
पहले बंगाली बिहारी या उतराखंडी है, यानी क्षेत्रवाद हावी है, कुछ कहते
है, गाढ़ी हिंदी मत लिखिए कुछ कहते है कुछ तो साहित्यिक कीजिये तो समस्याएँ
आती है बहुत सी आती है, लेकिन प्रयास रहता है की भारतीय संस्कृति को
निखार सकूँ और रूप देती रहूँ !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
उसके पश्चात् आशीष कंधवे जी
ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा मैं नमन करता हूँ प्रसून जी अतुल जी
और उनके साथ जुड़े सभी सदस्यों को जो हांक रहे है उस रथ को,जो साहित्य को
दिशा दे रहा है नई, आज के सन्दर्भ में कहूँ तो खबरों को सनसनीखेज बनाना और
टी आर पी के अनुसार परोसना आज पत्रकारिता है, पहले पत्रकारिता की मूल
भावना जन चेतना थी जो आज शून्य हो गई है, जो प्रेरित है बाजारवाद और बहुत
सी बहती हवाओं से, साहित्य का संस्कार खत्म हो गया है, उस पीढ़ी को मत रोइए
जो बीत गई आज को सोचिये सुधारिए मन आज की सोचता हूँ उसे बुनता गुनता हूँ,
साहित्य साहित्यिक उत्थान का परिचायक है, उसे हलके में नहीं लिया जा सकता
है, निज भाषा को शुभाकांक्षी होना चाहिए, उसे एक खूटे से बंधकर नहीं रहना
चाहिए, जब हम खूटे से बंध जाते है तो गुलाम हो जाते है, और जो गुलाम वो
निष्पक्ष नहीं हो सकता है, विमर्शपूर्ण हो पत्रकारिता लेकिन ग्रस्त नहीं
होनी चाहिए, समाज को उसके शिवत्व को प्राप्त करने के लिए पत्रकारिता माध्यम
होनी चाहिए ! पत्रकार मतलब खालसा यानी सच्चा जो खालसा नहीं हो सकता वो
पत्रकार नहीं है, पतन की कोई सीमा नहीं है, लेकिन अधोगामी प्रवृतियों को
आगे बढ़ने की प्रेरणा देना ही पत्रकारिता है !</div>
<div style="text-align: justify;">
विपिन चौधरी ने अपने
वक्तव्य में आकड़ो पर प्रकाश डाला कि आज नामचीन अखबारों को पढने वालो की
संख्या में जो अधोगति आई है, उन्होंने कहा हिंदी युग्म वाले हम सभी किसी भी
विषय को सकारात्मक तौर पर नहीं देख पाते है और साहित्य के हासिए पर होने
की ये एक प्रबल वजह है, और इसके साथ ही विपिन ने अपने वक्तव्य में
साहित्यिक पत्रकारिता में एक नए आयाम को जोड़ा !</div>
<div style="text-align: justify;">
शिवानंद सहर ने अपने
वक्तव्य में कहा बोलने के लिए बहुत कुछ नहीं मेरे पास केवल कुछ बुनियादी
ठोस बातें कहूँगा, पत्रकारिता पहले पत्रकारिता है, पत्रकारिता के कई पक्ष
होते है, जैसे सुचना का संप्रेक्षण, विचारो का संप्रेक्षण, संवादों का
संप्रेक्षण इत्यादि जब साहित्यिक पत्रकारिता की बात आती है, तो रिपोर्टिंग
एक मात्र ऐसी विधा है, जहाँ आपसे निष्पक्षता की उम्मीद ज्यादा से ज्यादा
की जाती है, सूचनाये आती है उन्ही के आधार पर खबरे बनती है, खबर वहीँ होती
है जिसे दबाने की मंशा हो, उसके अतिरिक्त बाकी सब केवल विशुद्ध विज्ञापन
है, साहित्य में क्या छिपाने की चाह है? साहित्य को इंसान से बड़ा नहीं
मानता हूँ, हिंदी लोकभाषाओ का जोड़ तोड़ कही जा सकती है, हमने तमाम भाषाओ से
शब्द लिए विधाएं नहीं ली, कोई भी साहित्य मनुष्य और मानवता से बड़ा नहीं
हो सकता है !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
राहुल देव जी ने अपने वक्तव्य में कहा हिंदी
में औपचारिकता वैसे भी बहुत ज्यादा है, मैं पत्रकारिता में रहा हूँ, तो
साहित्यिक पत्रकारिता से सरोकार पड़ता रहा है मेरा, और आज भी है, मैं हिंदी
पत्रकारिता के इतिहास के विषय में नहीं बोल सकता हूँ, हिंदी अखबारों में
साहित्य के विषय में क्या छपता है, थोड़ी बहुत आलोचना पढता रहता हूँ,
साहित्यिक पत्रकारिता के प्रभाव से हम बच नहीं सकते है, बहुत उर्जवाद है,
हिंदी की रचनाशीलता साहित्य अनुराग बना हुआ है, आज हिंदी की व्यापकता में
एक सिकुडन आती दिखती है, समाज में साहित्यकार की जगह भी सिकुड़ी है, हमारे
पिता जो थे वो सम्पूर्ण व्यक्तित्व नहीं थे, लेकिन वो थे तो हम है, उनके
योगदान को हम अनदेखा नहीं कर सकते है, या ये नहीं कह सकते उन्होंने ये
नहीं किया, उन्होंने अपने संसाधनों के साथ जो दिया वो महत्वपूर्ण है, उसी
प्रकार महावीर जी नहीं होते तो हिंदी का स्तर क्या होता? साहित्य में भी
क्षेत्रवाद हावी होता गर महावीर जी नहीं होते, हिंदी पर विदेशी साहित्य
प्रवृति का बड़ा प्रभाव रहा है, हमने स्वयं को बाहरी दृष्टिकोण से अधिक मापा
समझा है, जो भी मित्र अपने प्रयासों से साहित्यिक पत्रिका निकाल रहे है
वो सराहनीय है, रिपोर्टिंग में संवादहीनता जो आ रही है चिंताजनक है,
साहित्य के क्षेत्र में बड़े अखबारों में साहित्य का स्तर गिरा है, हिंदी
की सरकती जमीन को रोकने का प्रयास नहीं दिख रहा है, जो आज स्थिति है वो
हिंदी की हत्या या बलात्कार से विलग नहीं है, बड़े अखबारों में ये लगातार
दृष्टिगोचर हो रहा है, ये प्रश्न पूछा जाए मठाधीशों से आपके समय में बड़े
अखबारों में हिंदी अखबारों में जो छपता रहा उसका क्या स्तर है? और उसके
प्रति आपकी जवाबदेही क्या है? गुटबाजी सब जगह होती है, लेकिन हिंदी
साहित्य में जितनी खेमेबाजी दिखती है जितनी टांग खिचाई दिखती है, वो
आश्चर्यजनक है, जबकि उसके पास वो जमीन वो खाद है, जिसके माध्यम से हिंदी
विश्व स्तरीय बन सकती है, साहित्य में गाली गलौज देखने सुनने को मिलती है,
भंगिमाओ में, भयानक रोग है छपास रोग, फूल मालाओं लफ्ज़बाजी के बगैर काम
नहीं चलता, एक दुसरे की प्रशसा एक जैसे चेहरे गुटों के बीच तुम भी खुश मैं
भी खुश जैसा दर्शन चलता रहता है, हिंदी ने अपना अभिजन नहीं पैदा किया है,
आज देश में नायक की जरूरत है, हिंदी में नायकत्व नहीं दीखता है, जो नहीं
रहे उन्हें महान नहीं बनाना है, जो जीवित है उनमे से नायक को ढूंढना है !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
डॉ
सीतेश आलोक जी ने अपने वक्तव्य में कहा साहित्य सामाजिक सरंचना को भी
नहीं देख पा रहा है, उन्होंने हिंदी विशुद्ध हिंदी के प्रयोग प्रचार
प्रसार पर जोर दिया उन्होंने कहा हिंदी के उत्थान के साथ ही साहित्यिक
पत्रकारिता और समाज का उत्थान जुदा हुआ है !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
और सबसे अंत में कामदेव शर्मा जी ने शानदार ढंग से धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संगोष्ठी के समापन की घोषणा की .</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<b>प्रस्तुतकर्ता : किरण आर्या </b></div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-73967472270557414382014-01-22T22:11:00.002-08:002014-01-22T22:11:50.097-08:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट अंक 10 (18- जनवरी- 2014 )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption">सन्निधि संगोष्ठी अंक : 10 <br /> दिनाँक / माह : 18 जनवरी, 2014 <br /> विषय : हायकु / क्षणिका </span></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"></span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0rhzWqrI0X2qbjYkg0HsSNjAe3EY53lu5fU1NGXFTuY1LY9b5qnzmNdFdrvykgS7gtt0RGtqYdcvwwXVCMuB2uQK_rHTeuK4Ktr-fDJ7L9S5bFCXynI9dkHmjPgV_DogJ5n2zHYV5g4A/s1600/1604798_603788189675546_1098925422_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0rhzWqrI0X2qbjYkg0HsSNjAe3EY53lu5fU1NGXFTuY1LY9b5qnzmNdFdrvykgS7gtt0RGtqYdcvwwXVCMuB2uQK_rHTeuK4Ktr-fDJ7L9S5bFCXynI9dkHmjPgV_DogJ5n2zHYV5g4A/s1600/1604798_603788189675546_1098925422_n.jpg" height="225" width="400" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /><span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"></span></span><span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption">
नमस्कार मित्रो 18 जनवरी को सन्निधि की दसवीं गोष्ठी जो "हायकु और
क्षणिकाओं" पर आधारित रही सफलता पूर्वक संपन्न हुई गोष्ठी की अध्यक्षता
वरिष्ठ गज़लकार हायकुकार साहित्यकार श्री कमलेश भट्ट कमल जी ने की,मुख्य
अतिथि के रूप में हायकुकार और नवगीतकार श्री जगदीश व्योम जी हमारे बीच में
रहे, साथ में अतिथि कवयित्री के तौर पर डॉ वंद<span class="text_exposed_show">ना
ग्रोवर दी और अतिथि कवि के तौर पर श्री सीमान्त सोहल जी हमारे बीच रहे !
उनके अलावा अतुल प्रभाकर जी उनकी धर्म पत्नी आराधना जी, उनकी सुपुत्री और
दामाद जी के साथ प्यारी सी स्वस्ति, लतांत प्रसून जी, कुसुम शाह दी, नंदन
शर्मा जी, पुष्पा जोशी, नेहा नाहता, अर्चना प्रभाकर जी उनके पतिदेव, सुबोध
कुमार, बीना हांडा जी, राजीव तनेजा, बलजीत कुमार, कामदेव शर्मा, निरुपमा
सिंह, रश्मि नाम्बियार, मृदुला शुक्ला, शोभा मिश्रा, देवेश त्रिपाठी, बबली
वशिष्ठ, नीरज द्विवेदी, निवेदिता मिश्रा झा, संजय सिंह, आरती शर्मा,
राजेंद्र कुंवर फरियादी, संजय कुमार गिरी, प्रियंवदा सिंह, महाखबर अखबार के
संपादक सुधाकर सिंह और रांची से व्यंग लेखक पंकज यादव जी पधारे ! </span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"><span class="text_exposed_show"><br />
आयोजन की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचत मुस्कान के साथ
अतिथियों के लिए दो शब्द कहकर की, प्रसून लतांत ने हाइकू और क्षणिकाओं के
उद्भव और उसके विकास की चर्चा करते हुए कहा कि विधाएं अलग-अलग भले हों
लेकिन वे महत्त्वपूर्ण इसलिए होती हैं कि उसमें किस हद तक सच्चाइयां पिरोई
होती हैं। उन्होंने कहा कि 19वीं सदी में जापान में शुरू हुए हाइकू का
भंडार काफी समृद्ध है। अब यह हिंदी में भी उपलब्ध है। हिंदी के वरिष्ठ
आलोचक क्षणिका जैसी विधा पर तवज्जो नहीं देते पर इसकी रचना भी खूब हो रही
है और विभिन्न लघु पत्रिकाओं ने विशेषांक निकाल कर इस विधा के रचनाकारों को
प्रोत्साहित भी किया है। <br /> अतुल कुमार जी ने अतिथियों का स्वागत करते
हुए नए रचनाकारों से अपने वरिष्ठ लेखकों की रचनाओं का पाठ करने की जरूरत पर
जोर दिया और सन्निधि संगोष्ठी के मकसद को उजागर करते हुए नए रचनाकारों की
भूमिका का उल्लेख किया। </span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"><span class="text_exposed_show"><br /> रचनाकरों की ओर से संगोष्ठी के संचालन में
अथाह योगदान के लिए विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के सचिव अतुल कुमार जी और
उनकी धर्मपत्नी अनुराधा जी का सम्मान भी किया गया। <br /> उसके पश्चात् अतुल
जी ने किरण आर्य को सञ्चालन के लिए निमंत्रित किया ! किरण आर्य ने अपनी
मुस्कान के साथ जो उनकी पहचान भी है, गोष्ठी की शुरुवात अपने हायकु गुरु
पवन कुमार जैन जी के कुछ हायकु पढ़कर की, और हायकु के प्रचार प्रसार में पवन
जी के योगदान को भी इंगित किया, मंच पर कुल 8 रचनाकारों ने अपने हायकु और
क्षनिकाएं रखी, जिनके नाम है .....अरुन सिंह रूहेला, सुनीता अग्रवाल,
सुशीला शिरोयन जी, संगीता शर्मा, राजीव गोयल, किरण आर्य, अभिषेक कुमार अभी,
और शोभा रस्तोगी के अलावा हमारी अतिथि कवयित्री डॉ वंदना ग्रोवर दी ने
अपनी कुछ क्षनिकाएं और कविताये सुनाई, जो दिल को छू लेने वाली रही,
उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा की मैं सिर्फ मैं हूँ ..हमारे दूसरे
अतिथि कवि सीमान्त सोहल जी ने भी अपनी कुछ कविताएं सुनाई, और सभी का मन मोह
लिया ! </span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"><span class="text_exposed_show"><br /> उसके पश्चात हमारे मुख्य अतिथि श्री जगदीश व्योम जी ने काका
कालेलकर जी को प्रणाम के साथ अपना वक्तव्य प्रारम्भ किया, उन्होंने कहा आज
फेसबुक ऐसा माध्यम है जहाँ सभी एक दुसरे से मुखातिब होते रहते है, और वहां
दिखने वाले चेहरों को आपने यहाँ एकत्रित किया ये एक बहुत अच्छा आयोजन रहा,
जैसे हायकु एक बंधी हुई विधा है, वैसे ही किरण आर्य ने हायकु जैसे ही समय
को भी बाँध दिया, सहित्य में जितनी छोटी विधा होती है वह उतनी ही कठिन होती
है, किसी बात को कम शब्दों में कहना कठिन होता है बहुत, जो लोग ये सोचकर
लिखते है की छोटी विधा है तो आसान होगी वो लोग गलती करते है, कई बार ये बात
उठती है की भारत मे इतने प्रकार के छंद है तो फिर हायकु ही क्यों? आप हर
कथ्य को कहे कि दोहे में ही कहा जाए तो ये संभव नहीं है, अगर ये संभव होता
तो तुलसीदास जी दोहे और चौपाई को छोड़कर बरवे रामायण नहीं लिखते, सभी
विधायें एक दुसरे की पूरक है, जिस विधा में हम अपनी बात सहजता से कह सके वो
विधा अच्छी है, इसके पश्चात उन्होंने अपने कुछ हायकु पढ़े जो समसामयिक और
प्रेरक रहे ! </span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"><span class="text_exposed_show"><br /> इसके पश्चात् संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री कमलेश भट्ट कमल
जी ने अपने वक्तव्य में कहा, गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु
प्रभाकर प्रतिष्ठान के तत्वाधान से होने वाली इस गोष्ठी में शामिल होने का
अवसर देने हेतु मैं किरण आर्य और अतुल प्रभाकर जी का आभारी हूँ क्युकि हम
रहते तो गाजिअबाद में है लेकिन दिल्ली हमारे लिए दूर बनी रहती है, और
दिल्ली को इन्होने हमारे करीब किया, और ये करीबी जिस विधा की वजह से बढ़ी वो
कलेवर में छोटी होने के वाबजूद हायकु बड़ी विधा है, जिस तरह दिल्ली में
रहते हुए हम आम आदमी की ताक़त समझ सकते है, वैसे ही हायकु एक बहुत ही
महत्वपूर्ण विधा है, क्षणिका का जन्म कहाँ से हुआ इसके विषय में ठीक ठीक
कुछ कह पाना संभव नहीं है, यह हमारी प्रयोगवादी नई कविता का ही एक हिस्सा
है, जिसमे हम संक्षेप में अपनी बात को कुछ शब्दों में सीमित कर देते है,
हायकु मुक्तक कविता की जापानी शैली है, जापान में ये सबसे लोकप्रिय शैली है
कविता की, बाशो ने १७ वीं शताब्दी में हायकु को एक पहचान दिलाई, आज दुनिया
भर में हायकु लिखे जा रहे है अगर आप हिंदी की ही बात करे तो हिंदी की सभी
भाषाओं में आज हायकु लिखे जा रहे है, भारत में पहली बार हायकु की चर्चा
रविन्द्र नाथ टैगोर जी ने की १९१६ में, उन्होंने कहा हायकु दुनिया की सबसे
छोटी विधा है, हमने हायकु को छंद के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया,
उसके पश्चात १९५९ में अज्ञेय जी ने अपनी पुस्तक में हायकु की पहली चर्चा
की, उसके बाद भी हायकु बहुत लस्तम पस्तम चलता रहा !</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"><span class="text_exposed_show"><br /> जेनयु के प्रो.
सत्यभूषण शर्मा जी जो पहले जापानी प्रोफ़ेसर थे, उन्होंने हायकु के विषय में
विस्तार से बताया, हायकु का ५-७-५ का शिल्प क्या होता है, तो हायकु के
प्रचार प्रसार का सारा श्रेय जेनयु को ही जाता है, किरण आर्य भी जेनयु से
जुडी है, तो एक बार फिर हायकु जेनयु में लौट रहा है, १९७० के आसपास
उन्होंने एक हायकु क्लब की स्थापना भी की, और एक हायकु पत्रिका की शुरुवात
भी की, इस हायकु पत्रिका ने विश्व भर में हायकु को एक पहचान दिलाई, प्रो.
सत्यभूषण जी कहते थे हायकु सत्य की साधना है, यहाँ शब्दों का बहुत अपव्यय
है अज्ञेय जी कहते थे शब्द उर्जा है, और उसका सार्थक प्रयोग होना चाहिए,
गाली में भी शब्द होता है, और कविता में भी, साहित्य के माध्यम से हायकु
में हम सबसे सटीक ढंग से घनात्मक उर्जा का प्रयोग कर पाते है, हायकु को हम
जब जानना शुरू करते है तो उलझन होती है और समझ लीजिये यहीं से हायकु आपको
पकड़ रहा है, व्योम जी हमारे बीच है आज हायकु के क्षेत्र में उनका नाम बहुत
प्रचलित नामो में से है शुरू में वो कहा करते थे अरे ये भी कोई विधा है,
हायकु में बहुत अधिक व्याख्या नहीं होनी चाहिए हायकु स्वयं अपनी बात कहे,
वो स्वत बोलता है, हायकु का एक कविता हो जाना उसे सार्थकता प्रदान करता है,
अपने कुछ हायकु सुनाने से पहले उन्होंने कहा की अंत में मैं एक बात कहना
चाहूँगा इस गोष्ठी में अधिकतर चेहरों को हमने मुस्कुराते हुए देखा, मित्रो
हम देखते है साहित्य की गोष्ठियों में अधिकतर चेहरे उदास लटके हुए होते है,
अगर साहित्य हमें थोड़ी देर के लिए जीवंत भी ना कर सके तो उसकी सार्थकता
कैसी? मंच पर जितने प्रतिभागी आये उनमे बहुत संभावनाए और आत्मविश्वास दिखा,
और इसके पश्चात् उन्होंने अपने कुछ हायकु पढ़कर सुनाये ! </span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"><span class="text_exposed_show"><br /> इसके पश्चात्
विजयदान देथा की कहानियों पर आधारित एक नाटक का सुमन कुमार के निर्देशन
में मंचन किया गया। सांप की व्यथा कथाओं पर केंद्रित इस नाटक को दर्शकों ने
खूब सराहा.</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="fbPhotosPhotoCaption" data-ft="{"type":45,"tn":"*G"}" id="fbPhotoPageCaption" tabindex="0"><span class="hasCaption"><span class="text_exposed_show"><b>प्रस्तुतकर्ता : किरण आर्या </b></span></span></span></div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-60901828149224820842013-12-19T00:01:00.000-08:002013-12-19T00:03:23.449-08:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट अंक 09 (१४- दिसम्बर -२०१३)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;">सन्निधि संगोष्ठी अंक : 09</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: x-large;">दिनाँक / माह : 14-दिसमबर-२०१३</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;"><span style="font-size: x-large;">विषय : दोहे / मुक्तक </span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhiPyyEDaKMS_sHbrOYgn394yJp2BawCWwqo2n6LA8zGIKZ9UK_7kcPuDbCzqoRYp3vVSTjHwcq3w4-_UTgVTqhRFA2_zOTxoROZiwdAv6TpkydyIM1-EuU8GyI-L40Q8w1P4JMWHF2na4/s1600/1476045_586222541432111_1740952139_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="297" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhiPyyEDaKMS_sHbrOYgn394yJp2BawCWwqo2n6LA8zGIKZ9UK_7kcPuDbCzqoRYp3vVSTjHwcq3w4-_UTgVTqhRFA2_zOTxoROZiwdAv6TpkydyIM1-EuU8GyI-L40Q8w1P4JMWHF2na4/s400/1476045_586222541432111_1740952139_n.jpg" width="400" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><b>
</b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">नमस्कार मित्रो कल यानी १४ दिसम्बर को सन्निधि की नौवीं
गोष्ठी जो "दोहे और मुक्तक" पर आधारित रही सफलता पूर्वक संपन्न हुई गोष्ठी
की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार साहित्यकार हिरेन्द्र प्रताप सिंह जी ने की,
मुख्य अतिथि के रूप में दोहा सम्राट और गज़लकार नरेश शांडिल्य जी हमारे बीच
में रहे, साथ में अतिथि कवयित्री के तौर पर कोरबा से आई सीमा अग्रवाल दी
और मुंबई से आई शील निगम जी हमारे बीच रही ! उनके अलावा अतुल प्रभाकर जी
उनकी धर्म पत्नी आराधना जी, लतांत प्रसून जी, कुसुम शाह दी, नंदन शर्मा
जी, आदरणीय सर्वेश चंदौसी जी अखिल चंद्रा जी, रेखा व्यास, अनिल जोशी उनकी
धर्मपत्नी सरोज जोशी, पुष्पा जोशी, शशिकांत (गज़लकार) आशीष कंधवे, हर्ष
वर्धन आर्य, बालकिशन शर्मा, सुरेन्द्र सैनी, विजय शर्मा, सीमान्त सोहल,
सुबोध कुमार, बीना हांडा जी, अनीता दी, अर्चना दी उनके पतिदेव, अशुमन
प्रभाकर और उनकी धर्मपत्नी, राजीव तनेजा, बलजीत कुमार, सुशील जोशी,
राजेंद्र कुंवर फरियादी, कामदेव शर्मा, संजय कुमार गिरी, निवेदिता मिश्रा
झा, अलका भारतीय, उर्मी धीर, अरुन शर्मा </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">अनन्त , नीरज द्विवेदी,
कौशल उप्रेती, इंदु सिंह, वंदना ग्रोवर, मृदुला शुक्ल, संगीता शर्मा, डॉ
रेनू पन्त, कांता कावेरी, केदार नाथ, अविनाश वाचस्पति, राम श्याम हसीन,
चेतन नितिन राज खरे, परवीन कुमार, वी के बोस, रेनू रॉय, और कुछ अन्य मित्र
भी शामिल हुए !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">आयोजन की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचत मुस्कान के साथ
अतिथियों के लिए दो शब्द कहकर की, साथ ही उन्होंने संस्कृत में दोहों और
मुक्तक की चर्चा करते हुए कहा कि आज हिंदी में लिखे जा रहे दोहे और मुक्तक
नीतिपरक और श्रृंगार प्रधान ना होकर मौजूदा समय की सच्चाई और समाज के
सरोकारों को वाणी दे रहे है !उसके बाद अतुल जी ने स्वागत भाषण दिया और
सन्निधि संगोष्ठी के मकसद को उजागर करते हुए नए रचनाकारों की भूमिका का
उल्लेख किया।</span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">सन्निधि की सबसे कर्मठ सदस्य कुसुम शाह दी का सम्मान एक शाल के साथ
मुख्य अतिथि और अध्यक्ष महोदय के द्वारा किया गया फिर हम सभी के अज़ीज़
लतांत प्रसून जी का सम्मान शाल देकर किया गया और उसके पश्चात् मुझे यानी
किरण आर्य को अपने स्नेह से नवाजते हुए मेरे सभी आदरणीय जनों ने सम्मान
स्वरुप विष्णु प्रभाकर जी की अमूल्य कृति "आवारा मसीहा" सम्मान स्वरुप दी
जो मेरे लिए बहुत गर्व की बात रही, अतुल जी ने इस बार भी एक यथार्थ घटना
सन्देश रूप में सामने रखी, जो वास्तविक धरातल से जुडी हुई थी, फिर सरिता
भाटिया जी के पर्तिदेव को गत समय में दिवंगत हुए सभी महान साहित्यकारों को
श्रधांजली देते हुए सभी ने दो मिनट का मौन रखा, उसके पश्चात् अतुल जी ने
किरण आर्य को सञ्चालन के लिए निमंत्रित किया !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">मंच पर कुल 12 रचनाकारों ने अपने दोहे और मुक्तक रखे, जिनके नाम है
.....अनीता प्रभाकर, सुशील जोशी, अरुन अनंत शर्मा, नीरज द्विवेदी, इंदु
सिंह, मृदुला शुक्ला, किरण आर्य, डॉ रेनू पन्त, निवेदिता मिश्रा झा,
अविनाश वाचस्पति, चेतन नितिनराज खरे, और आदरणीय सर्वेश चंदौसी जी उनके
अलावा हमारी अतिथि कवयित्री सीमा अग्रवाल दी ने अपने कुछ दोहे और दो गीत
हम सभी के समक्ष रखे उनके गीतों ने समां बाँध दिया सबने उन पलों का भरपूर
आनंद लिया और हमारी दूसरी अतिथि कवयित्री शील निगम जी ने अपनी एक कविता और
एक ग़ज़ल हम सभी के समक्ष रखी !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">उसके पश्चात हमारे मुख्य अतिथि श्री नरेश शांडिल्य जी ने अपना वक्तव्य
दिया, उन्होंने कहा सबसे पहले तो मैं आयोजको को बधाई देता हूँ, जिन्होंने 9
महीने में ही संगोष्ठी का ऐसा स्वरुप खड़ा कर दिया है, जो की दिल्ली में
बहुत कम संस्थाए कर पा रही है, इसके लिए जो इसके सूत्रधार है अतुल प्रभाकर
जी प्रसून लतांत जी कुसुम शाह जी नंदन शर्मा जी और किरण आर्य जी ने इस
आयोजन की रूपरेखा रखी, और हम सभी को इस संगठन से जोड़ा ! आज जितने भी
प्रतिभागी थे उनको सुनकर बहुत सुखद अनुभूति हुई और बहुत से प्रतिभागियो ने
बहुत उम्दा प्रस्तुति यहाँ की, तो बहुत अच्छा लगा की एक प्रबुद्ध और नए
रचनाकारो का एक स्वरूप आ रहा है सामने, इसके लिए मैं आयोजको को धन्यवाद
देता हूँ ! उन्होंने सुझाव के तौर पर कहा कि यहाँ बहुत संभावनाए है युवा
रचनाकारों में, उनकी इस प्रतिभा को निखारने के लिए एक कार्यशाला रखी जा
सकती है, जो इन विधाओं के जानकार है उन्हें इन कार्यशाला में बुलाया जाए
जिससे उनके और नए रचनाकारों के बीच एक संवाद स्थापित हो सके, कविता किसी
को सिखाई नहीं जा सकती है, लेकिन एक दिशा जरुर दी जा सकती है, नए
रचनाकारों की जिज्ञासाएं शांत करने के लिए एक कार्यशाला की विशेष भूमिका
हो सकती है, मैं आयोजको से निवेदन करूँगा की गर संभव हो सके तो एक ऐसी
कार्यशाला की रूपरेखा तैयार की जाए ! इसके पश्चात उन्होंने अपने कुछ दोहे
सुनाये सभी श्रोतागण उनके दोहे सुनकर वाह वाह कर उठे, उनके दोहे आयोजन की
आत्मा रहे ! अतुल जी ने उसके पश्चात कहा कि हम सभी के पास ये एक अवसर है
कि इन गुनीजनो के सानिध्य में हम सीखे गुने बुने और आगे बढे, और इसके बाद
अतुल जी ने नरेश शांडिल्य जी और हरेन्द्र प्रताप जी के व्यक्तित्व को
मद्देनज़र रखते हुए दो चार पंक्तियाँ कही !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<span style="font-size: large;">
</span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">उसके पश्चात गोष्ठी के अध्यक्ष हरेन्द्र प्रताप जी ने अपना वक्तव्य
दिया, उन्होंने कहा मित्रो आज के इस आयोजन के लिए आयोजको को बधाई देना
चाहता हूँ,मैं कहना चाहूँगा कि काका कालेलकर जी की और विष्णु प्रभाकर जी
की रूह मुझे यहाँ खीच लाई, जैसा की आप सभी जानते है मुझे विष्णु प्रभाकर
जी के करीब रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, मैंने उनकी रचनाओं को बहुत करीब
से देखा,मैंने कई मर्तबे उनके नाटक और एकांकी पर अभिनय भी किया, जब कोई
किसी लेखक की रचनाओं को जीता है तो कहीं ना कहीं वो लेखक से बहुत करीब से
जुड़ जाता है, जहाँ तक प्रसून लतांत जी है उनसे मेरा रिश्ता पुराना है, 1985
में भागलपुर में हम एक अखबार से जुड़े थे, और भाई राजेंद्र सिंह के
नेतृत्व में खोजी पत्रकारिता के क्षत्र में अलख जगाने का प्रयास भी किया !
आज की संगोष्ठी का विषय कहीं ना कहीं साहित्य में है, जो आज के समय में
कहीं खो सा गया है उसे फिर से जीवंत किया इस आयोजन ने, इस विषय को ढूँढने
और फिर से जीवित करने के लिए मैं आप सभी को साधुवाद देता हूँ, ये सभी
विधाए समकालीन चिंताओं को उकेरती है, एक सृजक अपनी बात बिभिन्न आकारों में
कहने की कोशिश करता है, जो आकार उसे सबसे सुलभ लगता है वह उस ओर बह चलता
है !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">
साहित्य का भक्ति काल दोहों और रीतिकाल मुक्तक पर आधारित रहा, दोहे के
बिना कोई महाकाव्य नहीं रचा जा सकता है ये रीढ़ है साहित्य की, दोहा लिखना
कहना और गढ़ना सबसे मुश्किल काम है पद्य के क्षत्र में, रसखान ने अपने
दोहों में बहुत से प्रयोग किये और उन्हें लेकर ही आने वाले साहित्यकारों
ने बड़े बड़े लेख लिखे, दोहे मुक्तक में एक बूँद में सागर नज़र आना चाहिए,
इसीलिए दोहा रचना सबसे चुनौती पूर्ण है, और सिर्फ दोहा ही नहीं अन्य भाषाओ
में जाए तो जहाँ शेर कहे जाते है, या अन्य भाषाओ में जाए तो मुक्तक लिखे
कहे जाते है ये मुक्तक जो अद्भुद है, ठेट हिंदी और लोकगीतों में मुक्तक का
खूबसूरत प्रयोग देखने को मिलता है, पूरे विश्व की काव्य संस्कृति विलक्षण
है और इस विलक्षणता में दोहे उस मोती की तरह से है जो कितनी प्रक्रियाओ
के बाद जाकर तैयार होता है, और एक सुखमय एहसास बुनता है, और आज का जो दौर
है तमाम अच्छाइयों के बावजूद मानसिक रूप से सभी तनावग्रस्त है, और इस तनाव
में जो एक सापेक्ष चीज़ है वो है हम साहित्य से जुड़े लोग इस तनाव को कहीं
ना कहीं कम करने का प्रयास करते है, और जाहिर है कोई भी दोहा मुक्तक या
काव्य समाज को सुंदर बनाने के लिए रचा जाता है, मैं खुलकर कह सकता हूँ की
इतने सालो में पहली बार मैं इस विषय पर कोई संगोष्ठी होते देख रहा हूँ,
इसीलिए भी मैं आयोजको को धन्यवाद देना चाहता हूँ, साथ ही ये कहना चाहता
हूँ जितनी भी रचनाये मंच पर आई उनके एक उम्मीद एक सम्भावना है! </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;">प्रस्तुतकर्ता : (किरण आर्य)</span></div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-25181743303974818692013-12-06T05:14:00.002-08:002013-12-06T05:14:38.550-08:00सन्निधि संगोष्ठी दिसम्बर माह की गोष्ठी में आप सभी सादर आमंत्रित हैं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}" style="text-align: justify;">
<span style="font-size: large;"><span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}"><span class="userContent">नमस्कार
मित्रों दिसम्बर माह में होने वाली सन्निधि संगोष्ठी 14 दिसम्बर शनिवार
सायं ५ बजे से 7 बजे के बीच होना तय हुआ है, इस बार की संगोष्ठी दोहा और
मुक्तक पर आधारित रहेगी, इस संगोष्ठी की अध्यक्षता आकाशवाणी में हिंदी
अनुभाग के उपनिवेशक एक कवि और लेखक श्री राजेंद्र उपाध्याय जी करेंगे और
मुख्य अतिथि के तौर पर वरिष्ठ गज़लकार और दोहा सम्राट के रूप में जाने वाले
नरेश शांडिल्य जी हमारे बीच होंगे, इसके अलावा कोरबा से आ रही सीमा अग्रवाल
दी और शील निगम जी अतिथि कवयित्री के तौर पर हमारे बीच रहेंगी !</span></span></span></span></h5>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-36369819927948549352013-11-17T04:00:00.000-08:002013-12-08T21:35:48.365-08:00विस्तृत रिपोर्ट सन्निधि संगोष्ठी माह नवम्बर २०१३<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">सन्निधि संगोष्ठी अंक : 08</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">विषय : कहानी </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">माह : नवम्बर </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">दिनाँक : 16- नवम्बर - 2013</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContent"></span><br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinPximT4dxOvZ7cqVnw38AoFZWgspjsiJ392WfiEfdqMjM5jkcCS_VqvInt0pUg8MfOw2Xh8p1Zy7LNIKbK6kFt_PgPLjExpG1Y0CUObmkwvhykFgi8sCaZn0nOUlYEjMFkSYPUnBo8A0/s1600/1394340_573842169336815_1782034335_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="237" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinPximT4dxOvZ7cqVnw38AoFZWgspjsiJ392WfiEfdqMjM5jkcCS_VqvInt0pUg8MfOw2Xh8p1Zy7LNIKbK6kFt_PgPLjExpG1Y0CUObmkwvhykFgi8sCaZn0nOUlYEjMFkSYPUnBo8A0/s400/1394340_573842169336815_1782034335_n.jpg" width="400" /></a></div>
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_52a1afb5a53494b04676606" style="text-align: justify;">
</div>
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_52a1afb5a53494b04676606" style="text-align: justify;">
नमस्कार
मित्रो कल यानी 16 नवम्बर को सन्निधि की आठवीं गोष्ठी जो कहानी पर आधारित
रही सफलता पूर्वक संपन्न हुई गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार साहित्यकार
प्रेमपाल शर्मा जी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में हंस के पूर्व कार्यकारी
संपादक और कथाकार <span class="text_exposed_show">संजीव जी विशेष अतिथि के
रूप में हंस के कार्यकारी संपादक संगम पाण्डेय जी हमारे बीच रहे, उनके
अलावा अतुल प्रभाकर जी उनकी धर्म पत्नी आराधना जी, लतांत प्रसून जी, कुसुम
शाह दी, आदरणीय गंगेश गुंजन जी, बीना हांडा जी उनके पतिदेव, अनीता दी उनके
पतिदेव, राजीव तनेजा, संजू तनेजा, बलजीत कुमार, सुशील जोशी, राजेंद्र कुंवर
फरियादी, कामदेव शर्मा, संजय कुमार गिरी, बबली वशिष्ट, कमला सिंह, अलका
भारतीय, ममता जोशी, रिया दी, सुमन शर्मा, राजेश तंवर, शोभा मिश्रा, अनघ
शर्मा, अरुण अनंत शर्मा, नीरज द्विवेदी, वंदना गुप्ता, वंदना ग्रोवर, इंदु
सिंह, मृदुला शुक्ल, निरुपमा सिंह, शोभा रस्तोगी, हितेश कुमार, सुशील
कृष्णेत, अविनाश वाचस्पति, सरिता भाटिया, सरिता गुप्ता, पी के गुंजन, भाई
राज रंजन उनकी बहन और जीजा जी, अनुराग त्रिवेदी, और कुछ अन्य मित्र भी
शामिल हुए !<br /> <br /> आयोजन की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचत
मुस्कान के साथ अतिथियों के लिए दो शब्द कहकर की, उसके बाद अतुल जी ने
स्वागत भाषण दिया, और एक लघुकथा सुनाई, जो वास्तविक धरातल से जुडी हुई थी,
फिर राजेंद्र जी और बि'जी को श्रधांजली देते हुए सभी ने दो मिनट का मौन
रखा, उसके पश्चात् अतुल जी ने किरण आर्य को सञ्चालन के लिए निमंत्रित किया,
मंच पर चार कथाकारों और एक अतिथि कथाकार ने अपनी रचनाये रखी जिनके नाम है
.....हितेश कुमार, शोभा मिश्रा, ब्रिजेश कुमार, अनघ शर्मा, और अनुराग
त्रिवेदी जी !<br /> <br /> इसके पश्चात् संगम पाण्डेय जी जो हंस के कार्यकारी
संपादक है उन्होंने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा कि मुझे पहली कहानी जो
हितेश कुमार की थी उसने बहुत प्रभावित किया शुरू की 3 कहानियां सरलबोध की
कहानियां रही, और अंतिम कहानी जो अनघ शर्मा की थी जटल भाव का बोध करा रही
थी, कहानियां जो हम पढ़ रहे है और लिख रहे है, सभ्यता और जीवन के जिस मुकाम
पर हम पहुचे है, उससे आगे कुछ कहने का प्रयास हम कर रहे है या नहीं, क्युकि
जो वास्तविक है, साहित्य हमें उसी से परिचित कराने का नाम है, हालाँकि
हिंदी कहानी का इतिहास जो दिख रहा है उसीके आसपास बुना गया है उसकी के
संयोगो को जोड़ना हिंदी कहानी का चलन रहा है ! हंस के पिछले अंक में हमने एक
कहानी छपी एलिस मुनरो की जिसे नोबल पुरस्कार मिला है, एलिस जी को आज के
युग का चेखव कहा जाता है, उस कहानी का प्लाट है एक लड़की है जो शहर जा रही
है ट्रेन से कुछ सामान खरीदने ये उसकी अकेले पहली यात्रा है और इस यात्रा
के दौरान उसे कुछ लोग मिलते है, जिनमे एक यात्री एक पादरी है, जो उसे बताता
है उसने एक तालाब के पास बतखे देखि, पादरी के द्वारा वो वर्णन सुन लड़की के
सोचती है पादरी एक कल्पना शील मनुष्य है, और जीवन की कोमलता से वाकिफ है,
फिर कुछ समय बाद पादरी का अनावश्यक स्पर्श वो महसूस करती है, और कहानी आगे
बढती है उस लड़की की मन की दुविधा को लेकर, तो पूरी कहानी लड़की जो महसूस
करती है उसपर आधारित है, मेरा मानना है कहानी में जो दिख नहीं रहा उसे
दिखानें का प्रयास होना चाहिए ना की जो दिख रहा है उसे ....और मैंने अपने
इस संशय को राजेन्द्र जी के समक्ष रखा और साथ ही ये भी की ये कहानी पढ़कर
आपको कैसा लगा, राजेंद्र जी ने कहा इस कहानी में पादरी और लड़की दोनों ही
खुद को छिपा रहे है, ये उस कहानी का मूल थ्रस्ट है, तो बस मेरा इतना ही
कहना है की इस विचारधारा को सामने रखकर आज कथाकारों को कहानी लिखनी चाहिए !<br /> <br />
संजीव जी ने अपने वक्तव्य में कहा ये दिन परम दुःख के है मेरे लिए, आज
अपने दुःख के साथ साहित्य में संभावना के जो क्षितिज खुल रहे है, उनकी तरफ
भी इशारा करूँगा मैं, आपको लगे जहाँ कुछ आपतिजनक कह रहा हूँ कृपया टोक
दीजियेगा, सबसे पहले दुःख की बात राजेंद्र जी से मेरा रिश्ता बहुत करीबी
रहा अपने दुःख को शब्दों से राह देने की मेरी कोशिश असफल रही है, इसके
अलावा मेरे ऊपर जो वज्रघात हुआ वो है बि'जी का जाना राजस्थानी साहित्यकार
विजयदान देथा बि'जी का निधन एक भारी क्षति, बि'जी मुझे बेटे की तरह मानते
थे उनसे बहुत कुछ सीखा मैंने जीवन में, आप सभी नए पुराने मित्रो से मैं
विनती करूँगा भाषा के स्तर पर कथ्य के स्तर पर लोककथाओ के स्तर पर गर हमारे
बीच कोई वैश्विक स्तर का कथाकार था तो उसमे अग्रणीय नाम बि'जी का आता है,
उन्हें जरुर पढ़े उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानिया थी चरनदास चोर, दुविधा जिस पर
पहेली जैसी फिल्म बनी, बि'जी के वैभव पर एक लेख संकलित करने का प्रयास किया
था मैंने जो पूरा नहीं कर पाया था मैं ...संगम जी की बातों का आदर करते
हुए मैं उनसे इतेफाक़ नही रख पाता, मेरा अपना मानना है की हिंदी कहानी का
वैश्विक स्तर कहीं से भी उन्नीस नहीं है, मैंने राजेंद्र जी से भी कई बार
कहा और उन्होंने माना भी, हमारे इतिहास में इतनी समृद्ध कहानियां है
जिन्हें सोचा भी नहीं जा सकता है, कहानी कहने के कितने विकल्प हो सकते है,
बि'जी ने हमारी मान्यताओं से उठाया ! हमारे जो नए रचनाकार कथाकार शुरुवात
कर रहे है तो लिखने से पहले कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जो साहित्यकार
फैले हुए है उन्हें जरुर पढ़े, अब आती है आज मंच पर आने वाली कहानियों की
बात तो अतुल जी ने एक छोटी कहानी से आज शुरुवात की, आज चार कहानियां पढ़ी गई
हितेश की कहानी "झीनी झीनी बारिश" में अंचल का संकट, वहन के लोगो की
अस्तित्व की लड़ाई दोनों तरफ से मार खा रहे लोग हितेश की कहानी का ताना बाना
दोनों को समेटता है, तो इस कहानी को मैं एक तरह से अपनी भोगी हुई कहानी
बता सकता हूँ ! शोभा जी ने अपनी कहानी में एक आत्महत्या का हवाला दिया,
लडकी के अन्दर की संभावनाए जो खिलनी चाहिए थी नहीं है, भारतीय समाज में
बहूँ के साथ व्यवहार का चित्रण, और अंत में नायिका का आत्महत्या करना फिर
फिर एक डर का भाव और फिर लेखिका उसे सुखांत में ले आती है, तो कहानी को सहज
भाव से बहने दे पात्रो पर हावी ना होने दें ! इसके बाद ब्रिजेश की कहानी
जो रियाज़ा के उत्सर्ग की कहानी है, ब्रिजेश की कहानी पर थोड़ी मेहनत की
जरूरत है, फिर भी धन्यवाद उन्हें जो उन्होंने साम्प्रदायिकता के स्तर पर
कहानी रची, अनघ की कहानी धन्यवाद की पात्र है, और प्रभावित करती है, आज की
कहानियों में सबसे सुगठित कहानी अनघ की रही ! सुनाई जाने वाली कहानी पढ़ी
जाने वाली कहानी गाथा बनने वाली कहानी कहानी के उदारीकरण के कुछ प्रकार है,
कहानी का समृद्ध संसार हमारे यहाँ विकसित हो रहा है, थोडा सा प्रयास कहानी
की समृद्धि को बढ़ाएगा !<br /> <br /> संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री प्रेमपाल शर्मा
जी ने अपने वक्तव्य में कहा दोस्तों दिल्ली की गोष्ठियों में अध्यक्षीय
वक्तव्य का समय आते आते आधा हॉल खाली हो जाता है, खैर मुझे अच्छा लगा की नए
लेखको की पाठशाला तैयार की जा रही है, अतुल जी प्रसून जी और जो भागीदार है
सबको बधाई, जिस कक्ष में गोष्ठी हो रही है राजेंद्र जी के हंस के काफी
करीब है, यहाँ थोड़ी सी रिहर्सल होगी, पाण्डेय पड़ोस में है हो सकता है वो
जल्द ही हंस में छपे कुछ और रचनाकार सामने आये मृत्यु तो सबके लिए एक नियति
है ही और राजेंद्र जी विष्णु प्रभाकर जी और जो नहीं है आज उनकी क्षति तो
पूरी हो नहीं सकती, एक रचनाकार के तौर पर आप आगे आयेंगे तो उनके लिए ये एक
श्रधांजली होगी ! मैं एक प्रश्न से गुजर रहा था कहानियों के दौरान की हिंदी
साहित्य जगत में लेखकों की इतनी कमी नहीं है जितनी पाठकों की है, मैं इसे
इसीलिए भी कहना चाह रहा हूँ की गर हम उन कहानियों को पढेंगे तो थोडा सा खुद
ही समझ आ जाएगा की हिंदी कहानी में हम कहाँ शामिल हो सकते है, किन
पात्रताओ की तरफ हम बढ़ सकते है, किसी बच्चे को बार बार मापा जाए तो उसकी
लम्बाई रुक जाती है मेरे तीन दिग्गजों ने कई मर्तवा लम्बाई को नापा मैं
संक्षेप में कहूँगा सभी कथाकारों में एक तीखी संवेदनशीलता है, विशेषकर शोभा
ने जो कहानी पढ़ी, उनकी कहानी स्त्रियों की दशा पर सोचनीय सवाल उठाती है,
लेकिन अंत में उनका रिंकू जी को महान पति परमेश्वर बनाना खलता है थोडा, आज
भी अफगानिस्तान की मलाला और हमारे यहाँ स्त्री की दशा में अंतर नहीं है और
ये दशा बदलेगी तब जब कम से कम हम अपनी कहानियों में उसे सबल रूप दे पाए,
ब्रिजेश ने एक मुस्लिम चरित्र को चुना है, वो सराहनीय है, हकीकत वहीँ है आज
भी जो मुजफ्फ़रपुर में होता है और उसके लिए सत्ताधारी जिम्मेदार है ! अनघ
की कहानी में धीमरी का चरित्र अच्छा है और उनकी कहानी शिल्प की दृष्टि से
भी सफल रही !<br /> अंत में आये अनुराग त्रिवेदी जी और अतुल जी की लघुकथा में
उन्होंने अपनी बात बहुत सही ढंग से कही, तो दोस्तों आयोजको के लिए मेरी
बधाई उन्होंने जगह बहुत अच्छी चुनी है, लतांत प्रसून जी गाँधी जी के बहुत
बड़े दीवाने है इसीलिए राजघाट के पास उन्होंने ये जगह चुनी संगोष्ठी के लिए,
गांधीवादी संस्थाओ को जितना बेहतर लतांत प्रसून जी ने लिखा किसी और ने
नहीं लिखा है, आपने और अतुल प्रभाकर जी ने मुझे बुलाया मैं हार्दिक आभार
प्रकट करता हूँ !...........किरण आर्य</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContentSecondary fcg"> — </span></div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-50101841209559608662013-10-19T05:23:00.000-07:002013-12-08T21:23:53.639-08:00सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट : माह (अक्टूबर - २०१३)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">सन्निधि संगोष्ठी अंक : 07</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">विषय : व्यंग रचनाएँ </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">माह : अक्टूबर </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">दिनाँक : 19 - </span><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">अक्टूबर</span> - 2013</span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFMfR1CpIlFE3nk4NOD1B1ugq80nt4fuZDF5uHqHx8ghq-xuDZ3wFJy4UwgA5yapYBpy3Py2bWOOYLThJKOD6HDdLnJymy4BapgfbTeEf9fpTFOyWwA91twNaSu3YWILBfE07RWBJx1-4/s1600/1376370_562141537173545_2061154813_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="365" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgFMfR1CpIlFE3nk4NOD1B1ugq80nt4fuZDF5uHqHx8ghq-xuDZ3wFJy4UwgA5yapYBpy3Py2bWOOYLThJKOD6HDdLnJymy4BapgfbTeEf9fpTFOyWwA91twNaSu3YWILBfE07RWBJx1-4/s400/1376370_562141537173545_2061154813_n.jpg" width="400" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
नमस्कार
मित्रो 19 अक्टूबर को सन्निधि की सांतवी संगोष्ठी जो व्यंग रचनाओं पर
आधारित रही सफलता पूर्वक संपन्न हुई, इस गोष्ठी में अध्यक्ष के तौर पर
व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय जी मुख्य अतिथि के तौर पर दिल्ली नगर निगम के
सहायक आयुक्त और साहित्यकार सुरेश यादव जी और फिल्मकार राजीव श्रीवास्तव जी
हमारे बीच में रहे, उनके साथ आदरणीय कुसुम शाह दी, अतुल जी प्रसून जी,
अतुल जी की धर्मपत्नी अनुराधा जी, अनीता दी, उनके पतिदेव, राजीव तनेजा,
संजू तनेजा, कामदेव शर्मा, बबली वशिष्ठ, अजय अज्ञात जी, प्रभु नारायण जी,
सुरेन्द्र मोहन जी, चेतन नितिनराज खरे, अभिषेक कुमार झा अभी, मित्र शोभा
मिश्रा उनके पतिदेव, संजय कुमार गिरी, मेरी प्यारी सखी सरिता दास उनके पति
रविन्द्र के दास जी, तंवर जी, और कुछ अन्य मित्रो ने भी इस आयोजन में शिरकत
की.........</div>
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}" style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: small;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}"><span class="userContent"> आयोजन की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचत
मुस्कान के साथ अतिथियों के लिए दो शब्द कहकर की, उसके बाद अतुल जी ने
स्वागत भाषण दिया और किरण आर्य को सञ्चालन के लिए आमंत्रित किया, मंच पर
जिन मित्रो की रचनाये आई उनमे ......हमारे मुन्ना भाई अविनाश वाचस्पति जी,
सीत मिश्रा, सुशील जोशी, नीरज द्विवेदी, रचना आभा, राजीव तनेजा, शिवानन्द
सहर, राजेंद्र कुंवर फरियादी, रेनू रॉय, कौशल उप्रेती और सरिता गुप्ता जी
रहे !<br /> <br /> इसके पश्चात् फिल्मकार राजीव श्रीवास्तव जी ने अपना वक्तव्य
दिया, उन्होंने कहा मैं एक फिल्म फेस्टेवल करने जा रहा हूँ नव यथार्थवाद
न्यू रेअलेस्टिक सिनेमा, जिसका फिल्म जगत पर बड़ा इम्पैक्ट रहा है,सत्यजीत
रे ने फिल्म दा बाइसिकल देखि और यथार्थवादी सिनेमा की नीव रखी उन्होंने
सोचा इसी तरह की फिल्म बनायेंगे उसके बाद विमल राय ने उससे प्रेरित हो दो
बीघा जमीन जैसी लोकप्रिय फिल्म बनाई, और वहीँ से शुरुवात हुई हिंदी सिने
जगत में वास्तविक जीवन को सिनेमा से जोड़ने की, जहाँ किरदार आये सड़क से उठकर
सामने ! फिल्मांकन में यथार्थवादी बहुत सी संभावनाए है और संभावना है की
साहित्य फिल्म जगत से जुड़े !<br /> <br /> इसके पश्चात् दिल्ली नगर निगम के
सहायक आयुक्त और साहित्यकार सुरेश यादव जी ने अपना वक्तव्य दिया, सुरेश जी
ने कहा चाहे व्यंग्य रचना हो कहानी हो या कविता वो एक रचनाकार का शौक नहीं
हो सकता है, जब कोई व्यक्ति कहता है की रचना लिखना मेरा शौक है तो मुझे
वाकई शॉक लगता है, ये एक साधना का ही परिणाम है, ये अलग बात है की रचना कभी
बहुत गहरी तो कभी विकट और विकराल होती है, उनमे व्यक्ति का पूरा जीवन भी
लग जाता है लेकिन रचना रचना ही होती है छोटी बड़ी नहीं होती है, सभी ने छोटी
रचनाये लिखी होती है, उनकी साधना उन्हें बड़ी रचनाओं तक पहुचाती है, बड़े
रचनाकार होना और ख्यातिप्राप्त होना दो अलग बात है, कई बार दोनों बात हो
जाती है तो सोने पर सुहागा हो जाता है लेकिन प्राय ऐसा होता है जो बड़े
अच्छे रचनाकार होते है वो शांत रहकर ख्यति में बहुत पीछे रह जाते है और जो
रचनाकार हलके और थोड़े से उथले होते है वो प्रयासरत अधिक होने के कारण ख्यति
में आगे निकल जाते है, लेकिन कालांतर में होता ये है केवल रचना ही बचती है
जो ख्यति का कारण बनती है, रचना ही बचती है जो आपके व्यक्तित्व का निर्माण
करती है, और रचना ही बचती है जिसे लोग याद करते है ! सभी प्रतिभागियों ने
अच्छी रचनाये पढ़ी लेकिन मैं चाहता हूँ आप और गहरे डूबे और जब तक कोई रचना
संवेदना के किसी एक बिंदु पर घनीभूत नहीं होती है स्थाई प्रभाव नहीं डालती
है, अपने प्रयास को एक अच्छी रचना में तब्दील करना एक साधना है कौशल है जो
स्वत ही आता है, मैं अतुल जी के प्रयास को नमन करता हूँ उन्होंने विष्णु जी
को याद करने के लिए सही जगह चुनी है और आप सभी को अपनी शुभकामनाये प्रेषित
करता हूँ !<br /> <br /> इसके पश्चात् गोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ व्यंग्यकार
साहित्यकार प्रेम जनमेजय जी ने अपना वक्तव्य दिया ! प्रेम जी ने कहा वो सभा
निश्चित रूप से बहुत अच्छी होती है गुणवता पूर्ण होती है, जिसमे प्रबुद्ध
लोग भागीदारी करते है मैं आभारी हूँ अतुल जी का उन्होंने मुझे अवसर प्रदान
किया ऐसे आयोजन का हिस्सा बनने का, आजकल का समय अवसाद पूर्ण है और ऐसे में
जब ऐसी रचनाये आती है सामने जो संवेदनाओं को छूती है अपने एकांकीपन में जब
आप ऐसी रचनाये सुनते है जो मन को छूती है तो बल मिलता है आज इस तरह की
गोष्ठियों आयोजनों की बहुत आवश्यकता है, आज हमारे समाज से हमारे बीच से जो
गायब हो रहा है वो है संवाद और जिसके चलते फेसबुक जैसी प्रिंट मिडिया साईट
वजूद में आ रही है जहाँ प्रतिक्रिया तुरंत मिलती है, आजकल जहाँ समय नहीं है
अपने विषय में सोचने का वहीँ दुसरो के विषय में सोचना बड़ी बात है जो अतुल
जी कर रहे है, बधाई देता हूँ आभार प्रकट करता हूँ ! साहित्य में खुद ही
दिशा ढूंढ रहा हूँ, आज जो रचनाये मैंने सुनी उनके विषय में कुछ सामान्य
बातें मैं कहना चाहूँगा रचना को पढने के साथ एक चीज अपने आप जुडती है वो है
परफोर्मिंग आर्ट पढ़ना मंच पर भावो को संप्रेषित करना एक कला है कहाँ रुकना
है कहाँ प्रभाव छोड़ना है जितने भी रचनाकार पढ़ रहे है उन्हें सुधारना है!
वर्तमान को देखने की शक्ति युवाओं के पास है, नई तकनीक का प्रयोग अविनाश
वाचस्पति की रचनाओं में देखने को मिलता है, युवा दृष्टि आपके पास है और
परिपक्वता मेरे पास, बाधित दृष्टिकोण धृतराष्ट्र दृष्टिकोण है युवा आज के
बहुत अच्छा लिख रहे है, अपनी पत्रिका में युवाओं की ५४ रचनाये हमने रखी है !
युवा सोच जरुरी नहीं अपरिपक्व हो ! हास्य और व्यंग में जमीन आसमां का
अन्तर है हास्य आदि मानव से आरम्भ हुआ है और व्यंग्य समाज का हथियार है,
व्यंग्य प्रहार करता है हास्य रस देता है दोनों का उपदेश्य अलग होता है !
आज के सन्दर्भ में कहे तो हास्य का अश्लीलीकरण हो गया है, आपको स्तर बनाना
है उसे गिराना नहीं है, व्यंग्यकार मिथ को तोड़ता है, फंतासी का प्रयोग अपनी
रचना में अविनाश ने कुशलता से किया, उन्होंने सभी रचनाकारों से आग्रह किया
की अपनी रचना को तत्कालिता में मत बांधिए ! अपनी समय की राजनैतिक
विसंगतियों पर प्रहार करना अलग बात है, आप लिख क्या रहे है ये बड़ी चीज है,
और विवशता पर व्यंग्य ना करे कभी ! इसी के साथ सभी रचनाकारों का हौसला
बढाते हुए और शुभकामनाये देते हुए उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया !<br /> और अंत में अतुल जी ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए आयोजन समाप्ति की घोषणा की !</span></span></span></span></h5>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-31934214725063078642013-09-21T04:46:00.000-07:002013-12-08T21:26:46.864-08:00सन्निधि संगोष्टी विस्तृत रिपोर्ट : सितम्बर माह २०१३<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">सन्निधि संगोष्ठी अंक : 06</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">विषय : लघु कथा एवं हिंदी कविता </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">माह : सितम्बर </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">दिनाँक : 21 - </span><span style="font-size: large;">सितम्बर</span><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;"></span> - 2013</span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYaKvm4w5bH4lacET7bYNVVn4yZGCddgZlyMx2VUWwNyzVestEdoMPBrwageo78UXnBJwipBNHQ4IoxO5SMdAAByA6bScMVsla7KWcdE1c4Ol9dvpPvr5yv7LmS049pDTJXnpuVppOpE0/s1600/1236555_549237845130581_404534558_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYaKvm4w5bH4lacET7bYNVVn4yZGCddgZlyMx2VUWwNyzVestEdoMPBrwageo78UXnBJwipBNHQ4IoxO5SMdAAByA6bScMVsla7KWcdE1c4Ol9dvpPvr5yv7LmS049pDTJXnpuVppOpE0/s400/1236555_549237845130581_404534558_n.jpg" width="400" /></a></div>
<br />
<span class="userContent">नमस्कार मित्रो इस बार सन्निधि की मासिक गोष्ठी
२१ सितम्बर को संपन्न हुई, ये संगोष्ठी लघुकथा और हिंदी कविता पर आधारित
रही, और इस गोष्ठी में वरिष्ठ कवियत्री और साहित्यकार अनामिका जी ने
अध्यक्ष के तौर पर और गिलियन राईट जी जो पिछले चालीस सालो से भारत में रहकर
हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए कार्य कर रही है, ने मुख्य अतिथि के तौर पर
शिरकत की, बारिश होने के बाबजूद हमारे बहुत से मित्र इस आयोजन में
सम्मिलित हुए जिनमे कुसुम शाह दी, बीना हांडा जी उनके पतिदेव, नरेन जो मेरे
प्रेरणा स्त्रोत <span class="text_exposed_show">है अतुल जी की धर्मपत्नी
अनुराधा जी जो हर कदम पर होती है उनके साथ खड़ी बबली वशिष्ट, आरती शर्मा,
कामदेव शर्मा जी, संजय गिरी और भी कुछ मित्र जिनके नाम मुझे याद नहीं है,
सम्मिलित हुए !<br /> <br /> सबसे पहले लतांत प्रसून जी ने अपनी चिर परिचित
मुस्कान के साथ उपस्थित मित्रो का स्वागत किया और गिलियन राईट के विषय में
बताया और अतुल जी को आमंत्रित किया स्वागत वक्तव्य के लिए अतुल जी ने सभी
का स्वागत करते हुए मंच सञ्चालन के लिए मुझे आमंत्रित किया और इस तरह
गोष्ठी का सुभारम्भ हुआ .....सबसे पहले अरुन रूहेला ने "रिश्ता" सुशिल
कुमार जी ने "बाँझ" और किरण आर्य ने "आत्महत्या" अपनी लघुकथा सुनाई उसके
बाद अरुन शर्मा, चेतन खरे, अभिषेक कुमार झा, नवीन कुमार और जनेंद्र
जिज्ञासु ने अपनी कविताएं सुनाई उसके पश्चात् हमारे अतिथि कवि श्री
राजेंद्र राजन जी जो जनसत्ता में सहायक संपादक है उन्होंने अपनी कुछ
प्रतिनिधि रचनाये हम सभी के समक्ष रखी उनकी कविताएं आम आदमी से जुडी और
मानवीय संवेदनाओं को गुनती नज़र आई, लतांत प्रसून जी ने कहा की राजन जी की
कविताएं आंखें खोलती है और वयक्तिक चिंतन को दर्शाती है !<br /> इसके पश्चात्
हमारी मुख्य अतिथि गिलियन राईट जी ने अपना वक्तव्य दिया ....सबसे पहले
उन्होंने सबको धन्यवाद दिया, उन्होंने कहा मैं खुशनसीब हूँ जो इस आयोजन में
शिरकत कर रही हूँ, गिलियन जी ने राजेंद्र जी की कविता जो तालिबान पर थी
उसके विषय में बात करते हुए प्राचीन तालिबान जिसे बामियान कहा जाता था, के
स्वरुप की भी चर्चा की, बामियान के विषय में बाते करते हुए उन्होंने कहा की
उनके एक मित्र जो वहां जाते रहते है उन्होंने बताया की वहां बुद्ध की जो
विशालकाय प्रतिमा थी उसे अलकायदा आतंकियों ने उड़ा दिया जबकि वहां के पठान
उसे तोडना नहीं चाहते थे और बामियान को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना
चाहते थे लेकिन उसके बाद भी धूल से बनी उस प्रतिमा की छवि आज भी वहां
विराजमान है, जिसे देख आभास होता है की जैसे साक्षात् बुद्ध खड़े है वहां,
गिलियन जी ने बामियान जाने वाले एक दोस्त के हवाले से कहा अब वहां खुदाई हो
रही है जिसमे बुद्ध के और भी मूर्तियाँ मिल रही है, उन्होंने कहा हर ख़राब
काम का एक अच्छा पक्ष होता है, और सब ख़त्म होने पर भी उम्मीद सब लौटा जाती
है ! गिलियन जी ने बताया की मैं पेशे से एक अनुवादक हूँ जब मैंने अनुवाद
करना शुरू किया तो हिंदी से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद करने वाले अधिक लोग
नहीं थे, लेकिन आज ये पाठ्यक्रम में शामिल है! आज से चालीस साल पहले
स्टूडेंट बीजा पर यहाँ आई और यहीं की होकर रह गई मैं एक नदी में बहने वाली
लहर हूँ जो चलती रही हूँ ! उन्होंने मिस्टर मैग्रेवा के विषय में बताया
जिन्होंने ३३ साल हिंदी पढाई केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में, मिस्टर मैग्रेवा
के विषय में उन्होंने बताया न्यूजीलेंड प्रवास के दौरान मैग्रेवा जी को एक
फिजीयन द्वारा लिखा हिंदी शब्दकोष मिला उन्होंने उसे पढ़ा और वहीँ से हिंदी
के प्रति उनका रुझान शुरू हुआ, इसके बाद हिंदी से अंग्रेजी शब्दकोष
उन्होंने लिखा पिछले माह मिस्टर मैग्रेवा नहीं रहे और इसीलिए मैं इस
गांधीवादी माहौल में उन्हें मैं याद कर रही हूँ !<br /> <br /> इसके पश्चात्
अनामिका जी ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा मैं इस सभागार में रखी
अलमारियों में रखी किताबो इस पुराने ढंग की दरी इस पुरे परिवेश को जिसे
कुसुम शाह बेन ने अपने आँचल तले संभल कर रखा, एक स्त्री ही इतने मनोयोग से
इसे सभाल सकती है, अपने परिवार से परे एक परिवार के रूप में, लोग आयेंगे
जुड़ेंगे मशाल जायेगी एक हाथ से दुसरे हाथ में इसे देख रही हूँ मैं साक्षात्
! धरती के आँगन में घड़े का पानी जो देता है ओज धंस रहा है भीतर कहीं हमारी
संस्कृति का पानी और लघुकथा के साथ कविताएं कैसे भारती प्राण उसमे ये देखा
हमने, उन्होंने कहा आधुनिक साहित्य के बीच की तारम्यता टूट रही है गध और
पद्य के बीच की दूरी पाटती कविता निजी संवेग मन की दीवारों पर चटाई का काम
करती है इस खुशनुमा शाम को लाल सलाम कहती हूँ मैं !<br /> <br /> अनामिका जी ने
अरुण रूहेला की कहानी रिश्ता पर बात करते हुए कहा एक पेप्सी की बोतल सस्ती
हो गई आज विकास की विडंबना है ये जो एक छलावा मात्र है छलावो के स्तर है
अनेक, भिखारी का कटोरा और पेप्सी की बोतल एक झपाके में एक चित्र होता है
खड़ा, उसके बाद सुशिल कुमार की कहानी बाँझ के बारे में बात करते हुए
उन्होंने कहा न्याय और क्षमा दो बड़े भाव है मार्क्स ने न्याय और बुद्ध ने
क्षमा की बात की, बाँझ कहानी दर्शाती है नए पुरुष की नई समझ, किरण आर्य की
कहानी आत्महत्या के बारे में उन्होंने कहा स्पर्श की गंध अलग अलग होती है
एक ऐसे स्पर्श की गंध जो बिना प्रेम के रिश्ते से आती है ठीक वैसे ही होती
है जैसे मुर्दे के जलने की गंध हो, मृत्यु और जीवन हाथ बांध खड़े होते है,
उन्होंने कहा आज मंच पर जो कविताएं आई उनमे भाविक उर्जा थी, पहले ९ रस अलग
अलग रचे जाते थे आज सभी रस गडमड पड़े है जहाँ आधुनिक कविता वहीँ जन्म लेती
है, उन्होंने कहा यहाँ चारो और कविताओं के पोस्टर लगाये जाने चाहिए कविता
की समझ को एक पानी का घड़ा मिल जाएगा ! राजेंद्र जी की कविताओं के विषय में
बात करते हुए अनामिका जी ने कहा की जहाँ उनकी पहली कविता गर भ्रम देती है
मैं और वो का तो दूसरी उस भ्रम को तोडती है, राजन जी की बुद्ध की कविता में
एक सुनहरा खाका सा रह जाता है आँखों के सामने ! हम अतिरेक में जीते है
अतिरेक हमें अति पुरुष और अति स्त्री बना देता है, कविता में इतना दमखम
होता है कि मन में कुछ ना कुछ ठहर जाता है गर हम अपनी स्मृतियों में
गलबहियां डाले बैठे तो सीख सकते है बहुत कुछ, और इसके बाद अंत में इस तरह
के आयोजन के महत्व और उनमे सम्मिलित होने की अपनी चाहत के साथ उन्होंने
अपना वक्तव्य समाप्त किया !</span></span><br />
<br /></div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-89320028529193155522013-09-14T05:23:00.001-07:002013-09-14T05:23:28.253-07:00सन्निधि संगोष्ठी २१ - सितम्बर - २०१३<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}" style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: large;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}"><span class="userContent">नमस्कार
मित्रो आगामी माह में होने वाली सन्निधि संगोष्ठी लघुकथा पर रहेगी, दिल्ली
और एन सी आर में रहने वाले युवा रचनाकार जो लघु कथा लिखते है अपनी एक लघु
कथा सन्निधि के मेल पर भेजे जिन प्रतिभागियो की रचनाये आयोजन में सम्मिलित
की जायेंगी उन्हें सूचित किया जाएगा सन्निधि के मेल या फ़ोन के द्वारा
........इस बार का आयोजन २१ सितम्बर को होना तय हुआ है ! <br /> <br /> सन्निधि
से जुड़ने वाले नए रचनाकारों से गुजारिश पहले सन्निधि को जाने उससे एक
श्रोता के तौर पर जुड़े क्यूकी एक अच्छा श्रोता ही एक अच्छा वक्ता हो सकता
है उसके पश्चात् मंच आप लोगो का ही है, हम जानते है मंच और माइक का आकर्षण
बहुत बड़ा है लेकिन दूसरो को सुनना और सीखना वो सबसे अहम् है ..........शुभं</span></span></span></span></h5>
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}" style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: large;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}"><span class="userContent"> </span></span></span></span></h5>
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}" style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span style="font-size: large;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3,"tn":"K"}"><span class="userContent"><b>संयोजक : </b> किरण आर्या</span></span></span></span></h5>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-21301796608371216882013-08-17T05:00:00.000-07:002013-12-08T21:30:24.560-08:00सन्निधि संगोष्ठी मासिक रिपोर्ट : माह अगस्त २०१३<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">सन्निधि संगोष्ठी अंक : 05</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">विषय : काव्य </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">माह : अगस्त </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">दिनाँक : 17 - </span><span style="font-size: large;">अगस्त</span><span style="font-size: large;"></span><span style="font-size: large;"> - 2013</span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCPT6FTyBKm92i29PyXZsQN8edr5cBWqmf_QHRDhoTl8pwett5_93RCpAFmieTIPXyTrMTJ7gVakqFHYANBixU2mbRmeGTaOmi77W2T8PsGC6N4OYke7jXA-fd1J9vP6MFAYYi5Bm4Vc8/s1600/1174963_534715036582862_279013404_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCPT6FTyBKm92i29PyXZsQN8edr5cBWqmf_QHRDhoTl8pwett5_93RCpAFmieTIPXyTrMTJ7gVakqFHYANBixU2mbRmeGTaOmi77W2T8PsGC6N4OYke7jXA-fd1J9vP6MFAYYi5Bm4Vc8/s400/1174963_534715036582862_279013404_n.jpg" width="400" /></a></div>
<br />
<span class="userContent">नमस्कार मित्रो शनिवार 17 अगस्त को सन्निधि की पांचवीं गोष्ठी जो काव्य पर आधारित रही सफलतापूर्वक संपन्न हुई ....इस
संगोष्ठी की अध्यक्ष्ता वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक श्रीमती निर्मला जैन जी
ने की ......<br /> अतिथि कवियों के तौर पर जनसत्ता के सहायक संपा<span class="text_exposed_show">दक
अनुराग अन्वेषी जी, लंदन से वरिष्ठ पत्रकार एवं कवयित्री शिखा वार्ष्णेय
और लेडी श्रीराम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष और कवयित्री डॉ
वर्तिका नंदा जी ने शिरकत की .....उनके अलावा मंच पर आने वाले प्रतिभागियो
में कमला सिंह, संजय कुमार गिरी, विनय विनम्र, सुशीला शिरोयन, सरिता
भाटिया, बबली वशिष्ट, किरण आर्य, राधा कृष्ण पन्त, बेबांक जौनपुरी और डॉ
सुरेश शर्मा जी रहे .... <br /> इस आयोजन में गाँधी हिंदुस्तानी सभा के
मंत्री कुसुम शाह दी, विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार जी,
जनसत्ता के वरिष्ट पत्रकार लतांत प्रसून जी, नंदन शर्मा जी, अतुल जी की
पत्नी आराधना जी, इंदु शर्मा जी, लीना मल्होत्रा, अलका सिंह, अलका भारतीय,
उर्मी धीर, संजू तनेजा, राजीव तनेजा, बलजीत सिंह, राहुल राही, डॉ दिनेश
कुमार, अभिषेक कुमार झा, संजीव चौहान, अंसार अली, अनीता अग्रवाल, उनके
पतिदेव एम् के अग्रवाल, नीलम मेदीरता, अरुण सिंह रूहेला, राहुल रूहेला,
कामदेव शर्मा, रेनू रॉय, किरण कुमारी, रूबी कुमारी, वी के बॉस, शालिनी
रस्तोगी, धीरज कुमार, बीना हांडा जी, शिवानंद द्विवेदी, राजेंद्र कुंवर
फरियादी, अरुण अनंत शर्मा, सुशील जोशी, अरविन्द जी, और अन्य कई मित्रगन
सम्मिलित रहे ! <br /> आयोजन की शुरुवात अतुल जी ने अपने वक्तव्य से की,
जिसमे उन्होंने सभी उपस्थित मित्रो का स्वागत करने के साथ आयोजन के नियमो
पर भी अपनी बात रखी, उसके पश्चात प्रसून जी ने अपनी चिर परिचित मुस्कान के
साथ आयोजन का शुभारम्भ करते हुए निर्मला जैन जी के विषय में बताते हुए
कार्यकर्म की कमान किरण आर्य को सौंप दी ....<br /> सभी मित्रो ने अपनी
कविताओ के द्वारा मन मोह लिया ! अतिथि कवियों में अनुराग जी ने अपनी दो
कविताएं सुनाई, फिर लन्दन से आई शिखा जी की पुस्तक "मन के प्रतिबिम्ब" का
विमोचन किया गया, और शिखा जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा सबके मन को छू लिया,
बहुत ही सरल सहज और हँसमुख है शिखा, वर्तिका जी ने अपनी रचना के द्वारा
बहुत ही सटीक ढंग से अपनी बात कही ! उसके पश्चात निर्मला जैन जी ने जो
आयोजन की अध्यक्ष थी, अपना वक्तव्य दिया .... निर्मला जी ने कहा मुझे बेहद
ख़ुशी है ये आयोजन एक ऐसा स्थल है जहाँ सब लोग मिल बैठ कर अपने भाव साझा कर
रहे है, वर्ना तो लोगो की व्यस्तताएं इतनी बढ़ गई है की ऐसे अवसर कम ही मिल
पाते है ....यहाँ उन लोगो की रचनाये सुनने को मिली जिन्होंने अभी कलम उठाई
है, कविता के प्रति जो समर्पण जरुरी है वो यहाँ देखने को मिला ! आप नियमित
रूप कविता सुन रहे है दाद दे रहे है जो प्रसंशनीय है ! मुझे याद आ रहा है
पहले के समय में एक शनिवार समाज बनाया गया था जिसमे छोटी के साहित्यकार से
लेकर युवा साहित्यकार तक सभी एकत्र होते थे, और उन्होंने जो ऊँचाइयाँ पाई
वो इस शनिवार समाज की ही दें रही ! निर्मला जी ने ये भी कहा की झूठी शाबाशी
देने से बखिया उधेड़ना ज्यादा सही है, उसके लिए मंच की जरुरत नहीं होती है,
झूठी तारीफ़ सबसे खतरनाक सिद्ध होती है, उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए नए
रचनाकारों के लिए .....<br /> जो लोग रचना करते है वो केवल लिखे ही नहीं
अपितु दूसरो को पढ़े भी, दूसरा आपने किसी विषय पर जब लिखा तो केवल लिखा ही
या उसपर चितन भी किया आपने किसी समस्या को रखा तो उसका हल भी सोचा या सिर्फ
समस्या लिखने भर से कर्तव्य पूरा हुआ, केवल उतेजित होने भर से काम नहीं
चलता है, एक व्यक्ति के कर्तव्य भी निभाये ! अब तक क्या किया क्या जिया ये
जरुर सोचे ! आज अजनबीपन बढ़ रहा है इस कदर की पडोसी को पडोसी की खबर नहीं ! <br />
निर्मला जी ने कहा की इन पैरो से पूरी धरती नापी है लेकिन कभी अपने भारतीय
होने पर शर्म नहीं आई, हमारी जीवन शैली में बहुत कुछ ऐसा है जो और कहीं
नहीं मिलता है, अंग्रेजी एक भारतीय से अच्छी कोई और नहीं बोल पाता है,
उन्होंने बताया उनके अमरीकी प्रवास के दौरान बहुत सी अमरीकन स्त्रियाँ कहती
थी कि आपकी अंग्रेजी बहुत अच्छी है, तो मैंने मुस्कुरा के कहा हमने
अंग्रेजी आपसे नहीं ब्रिटिशर्स से सीखी है, उन्होंने कहा अपने ऊपर गर्व
करना सीखें ! साहित्य पर जो लिखा जा रहा है उसपर ध्यान दें आपने जो लिखा
दूसरे जो लिख रहे है उसपर ध्यान दें ! पुरे समाज में एक खास तरह की
संवादहीनता आ रही है जो दूर होना जरुरी है ! कविता को अच्छी तरह सुनाना
सबसे जरुरी है और आपके पढने का ढंग प्रभावी होना चाहिए इन दोनों में फर्क
करना सीखे, उन्होंने याद करते हुए कहा लालकिले का कवी सम्मलेन मैंने देखा
है, जहाँ लाखो की भीड़ उमड़ा करती थी अपने पसंदीदा रचनाकारों को सुनने के
लिए, अशोक चक्रधर मेरा शिष्य है जो गंभीरता के साथ दो मिनट में भीड़ जुटा
सकता है, और अंत में उन्होंने कहा कि रचनाओं में फर्क करना सीखे एक पर दाद
दें और दूसरे पर विचार करे इसके साथ ही सभी को शुभकामनाये देते हुए
उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया !<br /> संजीव चौहान जी के प्रति हम सभी विशेष आभार प्रकट करते है जिन्होंने क्राइम वॉरियर यू टूब पर आयोजन के विडियो @YouTube playlist <a href="http://t.co/HxITFS9m4Y" rel="nofollow nofollow" target="_blank">http://t.co/HxITFS9m4Y</a> अपलोड किये!<br /> सन्निधि का अगला आयोजन लघु कथा और कविता पर आधारित रहेगा !</span></span></div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-80436497414571983002013-07-18T02:27:00.000-07:002013-12-08T21:34:32.047-08:00सन्निधि संगोष्ठी (११ अप्रैल २०१३ )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">सन्निधि संगोष्ठी अंक : 01</span></div>
<div style="text-align: center;">
</div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">माह : अप्रैल </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">दिनाँक : 11 - </span><span style="font-size: large;">अप्रैल</span><span style="font-size: large;"> - 2013</span></div>
<br />
<br />
गाँधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्टान के संयुक्त
तत्वाधान में मासिक साहित्यिक संगोष्टी के शुभारंभ पर आयोजित समारोह कल
सन्निधि सभागार में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ .........देश में 24 भाषाओ के
साहित्य की सर्वोच्च स्वायत संस्था साहित्य अकादमी के उप सचिव श्री
ब्रजेन्द्र त्रिपाठी जी, डॉ गोपेश्वर सिंह जी (अध्यक्ष हिंदी विभाग दिल्ली
विश्व विद्यालय ) एवं दिनेश मिश्र जी (मानद अध्यक्ष, इंडियन एसोसिएशन ऑफ़
ऑथर्स) जैसे वरिष्ट साहित्यकारों ने इसमें शिरकत की ......इसके अलावा इस
आयोजन में और भी कई प्रमुख हस्तियाँ थी जिनमे गाँधी हिंदुस्तानी साहित्य
सभा की मंत्री कुसुम शाह जी राष्ट्रिय गाँधी संग्राहलय की पूर्व निदेशक
सुश्री वर्षा दास जी, गाँधी समिति और दर्शन समिति की निदेशक सुश्री मणिमाला
जी, गाँधी ग्लोबल फोरम के अध्यक्ष श्री बाबूलाल शर्मा जी, गाँधी पीस
फाउंडेशन के श्री रमेश शर्मा जी सहित विष्णु प्रभाकर जी की दोनों बेटियां
दामाद, बहु और पोत्री भी थी ! साथ ही पायल शर्मा, शिवानन्द द्विवेदी शहर,
और गाँधी हिंदुस्तानी सभा के वरिष्ट सहयोगी भी इसमें मौजूद थी, निदान
फाउंडेशन की सचिव उर्मि धीर जो मेरी छोटी बहन भी है और सोमा विश्वास ने भी
इस आयोजन में अपनी सहभागिता दर्ज कराई !</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent"> सबसे पहले कुसुम शाह दी जो
गाँधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री भी है उन्होंने गाँधी साहित्य सभा
के क्रियाकलापों काका साहिब कालेलकर जी के सपने को लेकर आगे चलने और इस
आयोजन में गांधीवादी विचारधारा को लेकर चलने की बात कही !</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent"> उसके पश्चात्
गोपेश्वर सिंह जी ने अपने वक्तव्य में कहा, भारतीय साहित्य दक्षिणपंथी और
वामपंथी अतिरेक से भरा पड़ा है। गांधीवादी या गांधीवाद से प्रभावित उन
आदर्शों से प्रेरित लेखकों का संगठन हो, कभी इस ओर नहीं सोचा गया। या मान
लिया गया कि गांधीवादी लेखकों के संगठनों की जरूरत नहीं है। हिंदी साहित्य
सभा इस दिशा में पहल कर सकती है। जिसमें मैं हर संभव कोशिश करूंगा। इस मंच
से नई पीढ़ी को नई दिशा देनी होगी। ऐसा नहीं है कि आर्थिक अनिश्चितता के
दौर में महान लेखक पैदा नहीं हो सकते। विष्णु प्रभाकर ऐसे ही महान लेखकों
में से एक थे। उन्होंने ये भी कहा की आज का लेखक अपनी कमियों या बुराइयों
को सुनने के लिए तैयार नहीं है वो केवल अपनी अच्छाई ही सुनना चाहता है जो
बहुत हद तक सही भी है। इस मंच से सभी नवोदित लेखको और कवियों का उन्होंने
हौसला बढ़ाया और अपने सीमाओ में साथ देने की बात भी कही ! </span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent"> इसके
बाद श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि युवाओं की
संगोष्ठी की बात महत्वपूर्ण है। इस तरह के मंचों के अभाव में युवा पीढ़ी
साहित्य से दूर होती जा रही है। प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर बच्चों में
भाषा व साहित्य के संस्कार दिए जाने से ही युवाओं में निज भाषा, निज देश के
लिए सम्मान पैदा होगा।</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent"> श्री दिनेश मिश्र जी ने अपने वक्तव्य में इस
मासिक गोष्टी का समर्थन किया और इस आयोजन में अपना निरंतर सहयोग देने का
आश्वासन भी दिया !</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent"> डॉ ममता धवन जी ने भी अपने वक्तव्य में नए लेखको की मानसिकता और परेशानियों पर प्रकाश डाला !</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent">
प्रसून जी जो जनसत्ता के वरिष्ट पत्रकार होने के साथ प्रतिभा के धनी और
एक नेकदिल इंसान भी है उन्होंने कार्यक्रम में मंच संचालन के कार्य का बहुत
ही सुंदर सहज रूप में निर्वाह किया और मंच से सभी युवा साहित्यकारों एवं
कवियों को आमंत्रित किया आगामी आयोजन के लिए ! प्रसून जी और अतुल जी ने इस
सपने की नीव रखी देल्ही में सभी युवा साहित्यकारों को एक मंच पर संगठित कर
साथ लाने का सपना ! मुझे ख़ुशी है और ये मेरा सौभाग्य भी है कि इस सपने को
धरातल रूप में साकार करने में मैं उनके साथ खड़ी हूँ !</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent"> अतुल जी जो श्री
विष्णु प्रभाकर जी के सुपुत्र है और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री
भी है उन्होंने मंच से आयोजन की विस्तृत रूपरेखा रखी सभी के समक्ष ! अतुल
जी को पहली बार मैं निदान फाउंडेशन के एक आयोजन में मिली बहुत ही शांत सहज
और मृदुल स्वाभाव के धनी, मुझे कल ही पता चला की अतुल जी विष्णु प्रभाकर जी
के सुपुत्र है जमीनी स्तर से जुड़े अतुल जी प्रसून जी नन्दनलाल जी और कुसुम
शाह दी इस आयोजन के सूत्रधार है जब इतने सारे नेकनीयत लोग एक मंच पर है तो
कार्यक्रम की सफलता में कोई संदेह नहीं साथ में आप सभी मित्रो का अपार
स्नेह और शुभकामनाये वो सबसे अहम् है ........मेरे एक स्नेह निमंत्रण पर
मेरे बहुत से मित्र इस आयोजन में आये और अपनी सहभागिता दर्ज की ........जो
मेरे लिए सबसे बड़ी बात रही ....वंदना गुप्ता, निरुपमा सिंह, मृदुला शुक्ला,
नीलम मेहंदीरता, सुनीता अग्रवाल, कल्पना बहुगुणा, सरिता भाटिया, पूनम
भाटिया, आनंद कुमार द्विवेदी जी, राजीव तनेजा जी, राजेंद्र फरियादी जी,
सुशिल जोशी भाई, कामदेव शर्मा जी, राघवेन्द्र अवस्थी जी, संदीप लखीरा,
अवनीश डबराल, मुकेश कुमार सिन्हा जी, बलजीत कुमार जी ......सभी मित्रो से
मिलना एक सुखद अनुभव रहा बहुत और आप सभी ने मेरे स्नेह निमंत्रण को स्वीकार
कर अपने व्यस्त समय में से कुछ पल निकाले उसके लिए शब्द नहीं है मेरे पास
.....फेसबुक पर लोग नाम कमाते है लेकिन मैंने कमाया यहाँ पर मित्रो का असीम
स्नेह जो मेरी ताक़त है सबसे बड़ी .....इसके अलावा एक और इंसान जो इस आयोजन
में आ नहीं पाए लेकिन पृष्ठभूमि में रह जिन्होंने मेरी बहुत मदद की वो है
सईद अयूब ....सईद ने मुझे बहुत से मित्रो के टेलीफोन नंबर मुहैया कराये और
मैं सभी से सम्बन्ध स्थापित भी कर पाई !.....अलका भारतीय दी हमेशा से मेरी
प्रेरणा स्त्रोत और हर कदम पर मेरे साथ रही है इस आयोजन में भी कदम कदम पर
उनका सहयोग मुझे मिला जो मेरा सबल भी रहा ........</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent"> सबसे अंत में मेरे
पतिदेव नरेन् आर्य उनका सबसे बड़ा योगदान रहा जो मैं इस आयोजन में पूरी
निष्ठा के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाई मित्रो की सूचि तैयार करने से
लेकर मेरे साथ आयोजन का हिस्सा बनने सभी आने मित्रो को रास्ता बताने का काम
उनके जिम्मे रहा किसी ने सच कहा है जीवन साथ के सहयोग के बिना आप आगे नहीं
बढ़ सकते तो नरेन् का साथ प्रेम और सहयोग मुझे बल देता है हर पल और मेरा
मार्ग भी प्रशस्त करता है ....</span></span></span><span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent" style="font-size: small;"> इस आयोजन की संचालन समिति की सदस्य होने
के नाते मैं आप सभी मित्रो को आभार प्रकट करती हूँ और साथ में विनम्र
निवेदन के साथ आगामी आयोजन में निमंत्रित भी करती हूँ आप सभी की सहभागिता
पर ही आगामी आयोजन की सफलता निर्भर करती है ! आप सभी के सुझावों का भी
स्वागत करती है संचालन समिति ............शुभं</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContent" style="font-size: small;"> </span><span class="userContentSecondary"><span class="fcg"> </span></span></span></span><span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContentSecondary"><span class="fcg"></span></span></span></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContentSecondary"><span class="fcg"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNzOQnhS6lUsb-PyxFMbcvWIlLCQCqAc6rfrNhf-z_q6XQo8DcwZWcueySRUloUbqA68SAHdcXALrZpfGf5nL9a0L0s7YEjfQqfxOmyFTypQfgXirbF4WICQrKoNdxOQQbevNBRsd7Sg/s1600/SANN.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="226" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjNzOQnhS6lUsb-PyxFMbcvWIlLCQCqAc6rfrNhf-z_q6XQo8DcwZWcueySRUloUbqA68SAHdcXALrZpfGf5nL9a0L0s7YEjfQqfxOmyFTypQfgXirbF4WICQrKoNdxOQQbevNBRsd7Sg/s320/SANN.jpg" width="320" /></a></span></span></span></span></div>
<span style="font-weight: normal;"><span class="messageBody" data-ft="{"type":3}"><span class="userContentSecondary"><span class="fcg">
</span></span></span></span>
</div>
Kiran Aryahttp://www.blogger.com/profile/13612424162022535855noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-35247781218044409252013-06-21T05:04:00.000-07:002013-12-08T21:37:16.658-08:00सन्निधि संगोष्ठी मासिक रिपोर्ट : माह जून २०१३ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<span class="userContent"></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">सन्निधि संगोष्ठी अंक : 0<u>3</u></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">विषय : गीत - ग़ज़ल </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">माह : जून </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">दिनाँक : 21- </span><span style="font-size: large;"><span style="font-size: large;">जून</span> - 2013</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContent"></span><br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhaWb5ZdNQcbSUZKTsxi96C4MsMWtEUlQZ5FiIv1j2NkUR-a5e9YaOuAddTuQXAXh-ZKNEBZvqgK05VXj2_OcaDPuO_Mc8vGFKUVd603BTeTwLxJcmjzQKMgxKAGqtUb2SeXWQL8iAvSbw/s1600/1044647_510879905633042_1390440663_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhaWb5ZdNQcbSUZKTsxi96C4MsMWtEUlQZ5FiIv1j2NkUR-a5e9YaOuAddTuQXAXh-ZKNEBZvqgK05VXj2_OcaDPuO_Mc8vGFKUVd603BTeTwLxJcmjzQKMgxKAGqtUb2SeXWQL8iAvSbw/s400/1044647_510879905633042_1390440663_n.jpg" width="400" /></a></div>
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_52a1ca83a49b75e40267470" style="text-align: justify;">
</div>
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_52a1ca83a49b75e40267470" style="text-align: justify;">
राजधानी
दिल्ली में ‘आवारा मसीहा’ जैसी महत्त्वपूर्ण कृति के लेखक विष्णु प्रभाकर
की 101वीं जयंती को नए रचनाकारों को मार्गदर्शन और उन्हें प्रोत्साहन देने
के रूप में मनाया गया। इसका आयोजन गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और
विष्णु प्रभाकर प्रतिष्<span class="text_exposed_show">ठान की ओर से
सन्निधि सभागार में किया गया। इन दोनों संस्थाओं की ओर से खासतौर से नए
रचनाकारों के लिए अप्रैल महीने से मासिक सन्निधि संगोष्ठी का सिलसिला शुरू
किया गया है। तीसरी संगोष्ठी संगोष्ठी गीत-गजल पर केंद्रित थी। इस बार
संगोष्ठी में डा सुधा मल्होत्रा की ‘विष्णु प्रभाकर: व्यक्त्तिव और
कृतित्व’ और वीना हांडा की ‘भावांजलि’ पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया।
संगोष्ठी की उपलब्धि यह रही कि इसमें भाग लेने वालों में ज्यादातर संख्या
युवाओं की थी। कार्यक्रम का प्रारंभ हिंदी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष
विमलेश वर्मा एवं पांचाल जी के कर कमलों द्वारा विष्णु प्रभाकर जी के चित्र
पर माल्यार्पण से हुआ। संगोष्ठी के शुभारंभ के पहले समवेत रूप से केदारनाथ
तबाही में मारे गए लोगों और समाजसेवक बाबूलाल शर्मा की दिवंगत आत्मा की
शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि रहे डॉ.
शफ़ी अयूब जबकि अध्यक्ष एवं विशेष अतिथि के पद पर क्रमश: डॉ. रंजना अग्रवाल
एवं मणिमाला जी आसीन रही जिन्हें स्वागत के क्रम में संस्थान की ओर से
स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए। तत्पश्चात् सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम
अपनी ऊँचाइयों को छूने आगे बढ़ा।<br /> आदरणीय प्रसून लतांत जी ने अपनी
मुस्कुराहट के साथ एक बार फिर माइक की जिम्मेदारी बखूबी संभाली। सबसे पहले
स्व. विष्णु प्रभाकर जी के सुपुत्र श्री अतुल कुमार जी ने संगोष्ठी के
प्रारंभ होने से लेकर इसके भविष्य की संभावनाओं को लेकर अपने विचार व्यक्त
किए। साथ ही विष्णु जी के सुछ संस्मरण भी उनकी कुछ पंक्तियों के साथ हमसे
सांझा किए। जैसे –<br /> “सब कुछ तो नहीं समा सकता प्यार में,<br /> इसलिए प्यार से अधिक प्यार मैं करता हूँ।“<br />
विष्णु जी की इन पंक्तियों को श्री अतुल कुमार जी ने व्यंग्य का रूप भी
दिया जो आज के हालातों को इंगित करता है- “सब कुछ तो नहीं समा सकता
भ्रष्टाचार में,<br /> इसलिए भ्रष्टाचार से अधिक भ्रष्ट आचार मैं करता हूँ।“<br />
जयंती समारोह का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि
संगोष्ठी का मकसद नए रचनाकारों के लिए माली बनना है न कि लकड़हारा बनना ताकि
नए रचनाकारों को भरपूर मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिल सके। इस मौके पर
विष्णु प्रभाकर के परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे और उनकी बेटी अनिता नवीन
ने अपनी स्वरचित कविता का पाठ कर विष्णु प्रभाकर के हिंदी साहित्य के
क्षेत्र में उनके योगदान और अति मानवीय व्यक्तित्व को उजागर किया। अतुल
प्रभाकर जी के अलावा उनकी पत्नी जो हमेशा इस आयोजन का हिस्सा रही है के साथ
उनके भाई अमित प्रभाकर जी, बहन अर्चना और अनीता के साथ बहनोई अखिल कुमार
और नवीन कुमार, उनकी बेटी और दामाद सभी शामिल रहे आयोजन में !<br /> गांधी
हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह के सान्निध्य में और वरिष्ठ
गीतकार डा रंजना अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोजित इस महोत्सव में वयोवृद्ध
स्वतंत्रता सेनानी कृष्णा कुमारी ने विष्णु प्रभाकर के सादगी भरे जीवन की
चर्चा करते हुए कहा कि वे अपने बेहतर संस्कारों और सरोकारों के लिए तो जाने
ही जाएंगे लेकिन विपुल रचना भंडार देकर जाने के लिए भी हमारे बीच न केवल
हमेशा जीवंत रहेंगे बल्कि हम सभी को बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरित भी
करते रहेंगे। विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद गांधी स्मृति और दर्शन
समिति की निदेशक मणिमाला ने राष्ट्रीय स्तर पर नए रचनाकारों के लिए 14
सिंतबर हिंदी दिवस पर आयोजन में समिति की ओर से भरपूर सहयोग देने का एलान
किया<br /> डॉ. सुधा ने विष्णु जी के साथ व्यतीत किए अपने शोध के दिनों को
साँझा किया। वहीँ वीणा हांडा जी ने अपने वक्तव्य में अपनी पुस्तक भावांजली
से हम सभी का परिचय कराया !<br /> सन्निधि संगोष्ठी की संयोजक किरण आर्या के
संचालन में गीत और गजलों का दौर चला, गीत और ग़ज़ल पढ़ने एवं सुनने के लिए
विभिन्न स्थानों से अनेक पाठक एवं श्रोता अपनी सारी व्यस्तताओं को दर-किनार
कर यहाँ एकत्रित हुए। अनेक भावों को अपने अंदर समेटे विभिन्न गज़ल एवं
गीतों से सभी को मोहित करने वाले गीतकार एवं गज़लकारों में अलका भारतीय,
कालीशंकर सौम्य, अरविंद राय, विनय राज, निरुपमा सिंह, अजय अज्ञात, साहिल
ठाकुर, कामदेव शर्मा, पूनम माटिया, नीरज द्विवेदी, आदेश त्यागी, अरुण अनंत शर्मा, शालिनी रस्तोगी, डा माँ समता और कौशल उप्रैती जैसे नए रचनाकार अपनी
श्रेष्ठ रचनाओं को पेश कर आयोजन को एक उपलब्धि बनाने में कामयाब हुए।
कार्यक्रम के बीच में जहाँ विनोद शर्मा एवं उनकी मंडली द्वारा भजन सुनाया
गया वहीं माला जी एवं उनके साथियों ने एवं शीला जी ने बीना हाँडा जी की
कविताओं को सुरों से सजाया।<br /> धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी संयोजन समिति के
सदस्य सुशील कुमार ने किया। संगोष्ठी में पिछली संगोष्ठी में अपनी
महत्त्वपूर्ण कविताओं का पाठ करने वाले रचनाकारों में मौके पर मौजूद राजीव
तनेजा, सुशिल जोशी, सुशिल कुमार, जैनेन्द्र जिज्ञासु, बीना हांडा, वंदना
गुप्ता और रचना आभा के साथ किरण आर्य को प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। इसके
साथ ही बहुत से मित्रो ने इस आयोजन में श्रोता बन सहभागिता दर्ज कराई जिसमे
डॉ चौबे, बबली श्रीवास्तव, बलजीत कुमार, अंजू चौधरी, सुशीला शिरोयन, रश्मि
नाम्बियार, रमा भारती, किरण कुमारी, मुकेश कुमार सिन्हा, इंदु सिंह, उर्मि
धीर, राकेश त्रिपाठी जी, विनय विनम्र, कमला सिंह, नरेन् आर्य, संजय कुमार,
सरिता भाटिया, संजू तनेजा, रमेश शर्मा, अभय सिन्हा, अजय सहाय, विजय हांडा
जी, नीलू जी, के साथ अन्य कई मित्रो ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई यहाँ अपने
दो मित्रो का नाम मैं विशेष रूप से लेना चाहूंगी .....जयपुर से मेरी सखी
सरोज सिंह, मऊ से आई मेरी सखी रुचिका एवं उसके पतिदेव अरविंद मिश्रा और
पटना से भाई राज रंजन जी आयोजन में सम्मिलित हुए उनका आना मेरे लिए सुखद
अहसास रहा (जिन मित्रो के नाम भूलवश छूट गए है उनसे अग्रिम क्षमा प्रार्थी
हूँ मैं )<br /> मुख्य अतिथि डॉ. शफ़ी अयूब ने अपने शेरों से सबको मोह लिया।
शफ़ी साहब का लहजा मन को छू जाने वाला रहा उन्होंने हिंदी और उर्दू में गजल
लेखन के इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि गजल आज दोनों भाषाओं में लिखी जा
रही है और यह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय भी है। उन्होंने कहा कि गजल शुरू
में चाहे जिस मकसद से लिखी गई लेकिन आज वह लोगों की आकांक्षाओं को व्यक्त
करने वाली काफी सशक्त विधा बन गई है।<br /> उनके बाद उपहार स्वरूप सभी को
विष्णु जी की सुपुत्री अनीता जी की अपने पिताजी को समर्पित रचना के सोपान
का अवसर मिला। अंत में डॉ. रंजना अग्रवाल जी ने थोड़ी सी बात गीतों की करने
के पश्चात् एक सुंदर गज़ल सुनाकर कार्यक्रम में समाँ बाँध दिया। <br /> उसके
पश्चात् संयोजन समिति से सुशील कुमार जी ने सभी को प्रीति भोज के लिए
आमंत्रित कर कार्यक्रम का समापन किया। आयोजन में प्रीती भोज बीना हांडा की
तरफ से था! निश्चित तौर पर यह एक सफल आयोजन रहा। हाँ कुछ असुविधाए और
परेशानियाँ जरुर रही लेकिन शुक्रगुजार है हम अपने सभी मित्रो के जिन्होंने
उन परेशानियों को दरकिनार रख हँसते हुए इस आयोजन को सफल बनाया, हमारा पूरा
प्रयास रहेगा कि भविष्य में इस तरह की परेशानियों का सामना ना करना पड़े आप
सभी को ! अंत में विशेष आभार आदरणीय प्रसून सर का और सुशिल जोशी भाई का
जिन्होंने इस रिपोर्ट को बनाने में मेरी मदद की ! ...........किरण आर्य
(संयोजक )<br /> <br /> नोट :-अगली सन्निधि संगोष्टी जुलाई माह के दूसरे शनिवार
यानी 13 जुलाई को होगी जो कहानी विधा पर केन्द्रित होगी, जिसमे पार्ट लेने
वाले प्रत्येक प्रतिभागी को 7 मिनट काय मिलेगा, जिसमे वो पूरी कहानी, उसके
अंश या सार रूप में अपनी कहानी रखे !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContentSecondary fcg"></span></div>
</div>
अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5767117997191748762.post-85509557961427053112013-05-11T05:06:00.000-07:002013-12-08T21:35:05.520-08:00सन्निधि संगोष्ठी मासिक रिपोर्ट : माह (मई २०१३)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContent"></span><br /></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">सन्निधि संगोष्ठी अंक : 02</span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">विषय : काव्य </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">माह : मई </span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-size: large;">दिनाँक : 11 - </span><span style="font-size: large;">मई</span><span style="font-size: large;"> - 2013</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="userContent"></span><br /></div>
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_52a1cba7eed487489519100" style="text-align: justify;">
नमस्कार
मित्रो ११ मई को सन्निधि सभागार में सन्निधि संगोष्टी का आयोजन जो काव्य
पर आधारित था सफलता पूर्वक संपन्न हुआ इसका शुभारंभ संगोष्टी में सम्मिलित
सभी सदस्यों ने अपने परिचय के साथ किया ....इस आयोजन की अध्यक्षता गंगेश
गुंजन जी ने की उनके <span class="text_exposed_show">अलावा हमारे बीच
वरिष्ट साहित्यकार आदरणीय बलदेव बंशी जी भी रहे ..उनके अलावा गाँधी
हिंदुस्तानी सभा की मंत्री कुसुम शाह जी, अतुल कुमार जी, लतांत प्रसून जी,
नंदन शर्मा जी, अनीता प्रभाकर जी जो विष्णु प्रभाकर जी की बेटी भी है और
उनकी पुत्रवधू जी अनुज जी, ज्योतिसंघ जी राकेश त्रिपाठी जी, प्रवीण आर्य
जी, अजय अज्ञात जी, बबली बशिष्ट जी, रश्मि भारद्वाज, प्रभा मित्तल जी,
सरिता भाटिया जी, अरुण अनंत शर्मा, बलजीत कुमार जी, मुकेश कुमार सिन्हा जी,
नरेन् आर्य जी, अलका भारतीय दी, उर्मी धीर, रेहान सिद्दकी, आदेश त्यागी
जी, बाबू लाल जी, और अन्य कई लोगो ने सहभागिता दर्ज कराई ! <br /> प्रसून जी
ने मच पर संगोष्टी के अध्यक्ष डॉ गंगेश गुंजन जी बलदेव वंशी जी अतुल कुमार
जी नन्दन शर्मा जी को मंच पर आमंत्रित किया उसके बाद नन्दन शर्मा जी ने सभी
प्रतिभागियों का स्वागत किया और आयोजन की सफलता की कामना की तत्पश्चात
किरण आर्य ने अध्यक्ष महोदय श्री गंगेश गुंजन जी को कुछ उपहार भेट स्वरुप
दिए फिर अतुल जी ने गोष्टी के नियम और उसको आगे ले जाने के सम्बन्ध में
जानकारी दी ....उन्होंने कहा आदि मानव ने जब विचार मंथन शुरू किया तब विचार
मंथन की कला विरासत स्वरुप उसके पास नहीं थी ! इसी तरह जब छोटा बच्चा
शून्य से शुरू कर परिपक्व बनता है इसीलिए आप भी मन में संकोच और आग्रह ना
रख खुले मन से सहयोग करे और संगोष्टी से सम्बंधित कुछ दिशा निर्देश भी
उन्होंने अपने वक्तव्य में दिए ! <br /> फिर लतांत प्रसून जी ने कविता की
भूमिका समाज में उसपर प्रकाश डाला प्रसून जी ने ये भी कहा की कविता और
रचनाकार समय के साथ साथ उसमे आते है बहुत से बदलाव कुल मिलकर उनका वक्तव्य
बहुत प्रभावी रहा ! वरिष्ट साहित्यकार बलदेव बंसी जी ने कहा की आज
आत्मसम्मान का दिन है आत्मा का सृजन है कविता ! नदी पर कविता लिखो तो नदी
बन जाओ पेड़ पर कविता लिखो तो पेड़ फूल बन जाओ अकेले फूल के पास जाओ जैसे
कविता जाती है जब लौटकर आओगे तो अपने भीतर भी एक खिला हुआ फूल पाओगे और अंत
में उन्होंने कहा दोस्तों बस इतनी सी कहानी है जिसमे जितना पानी है उतनी
ही रवानी है ! <br /> बलदेव बंसी जी के वक्तव्य के बाद प्रसून जी ने मंच
संचालन का कार्यभार आपकी इस मित्र किरण आर्य का सौंप दिया, इस बार मच पर
पंद्रह प्रतिभागियों ने अपनी कविता पाठ किया जिसमे सुशील जोशी, नीलम नागपाल
मेंहदीरत्ता, शिवानन्द सहर, सुशील कुमार, बबीता, बृजेश कुमार, समर्थ
वशिष्ट, इंदु सिंह, मृदुला शुक्ला, रचना आभा, जेनेन्द्र, बीना हांडा बेन,
राजेंद्र कुँवर फरियादी, राजीव तनेजा, और वंदना गुप्ता शामिल रहे ! <br />
गोष्ठी के प्रथम कवि सुशील जोशी जी ने बड़े ही सुंदर ढंग से राधा की होली
को रंग दिए अपने द्वारा रचित छंदों के माध्यम से और उसके बाद बड़े ही
रुचिकर और सरस ढंग से अपनी प्रिया को याद कर उसका सुंदर रूप को विभिन्न
उपमाओं में बांध कर श्रोताओं के सामने रखा बड़ा सरस रहा उनका विश्लेषण
हास्य की चाशनी के साथ भक्ति रस से लबरेज़ ! दूसरी कवयित्री नीलम
मेहदीरत्ता अपने स्वाभाव के अनुसार गंभीर और गहरी कविता लेकर आई मंच पर
उन्होंने गरीब लड़की अमीर लड़की समाज में व्याप्त स्त्री पुरुष के भेदभाव
से उपजे सामजिक परिवेश का चित्रण बखूबी किया उसके बाद गरीबी में ज़िन्दगी
गुजरने पर मजबूर लोगों का भी बहुत संवेदनशील वर्णन करती हुई कविता
प्रतिभाशाली कवयित्री नीलम की दोनों कविताएं सामजिक परिवेश पर बहुत ही
जायज़ सवाल थे उनके बाद जोश-ओ-खरोश से भरे शिवानन्द की कविता ने कुछ रोमांस
को जिया और माहौल को प्रेम रस में डुबो दिया उसके पश्चात् इन्दु सिंह जी
की कविता समाज के कटु सत्य को उजागर करती हुई रही रोजमर्रा घरो में काम
करने वालो की त्रासदी को दर्शा गयी ! बहुत संवेदनशील सवाल थे उनके भी ...<br />
फिर आये गंभीर माहौल से अलग राजीव जी अपनी गुदगुदाने वाली कविता के साथ
बड़ी व्यवहारिक लगी उनके द्वारा की गई माईक की महिमा राजीव सभी को हंसा गए
फिर आये समर्थ वशिष्ट जी जो अपनी रचना के माध्यम से स्वदेश दीपक जी को हम
सभी से रूबरू करा गए, जेनेन्द्र एक क्रन्तिकारी कवि के रूप में अपनी बात
कही अपनी दोनों रचनाये ही उन्होंने देश के गावो को समर्पित की बहुत ही
बढ़िया रहा उनका प्रस्तुतिकरण, गाँव के शहरीकरण और आज के राजनितिक माहौल पर
उनकी दोनों कविताएं बहुत सारे सवाल छोड़ गयी ! मुस्कुराती सी मृदुला
शुक्ला ने भी स्त्री पे बढ़ते अत्याचार पर चिंता व्यक्त करते हुए कविता
प्रस्तुत की !<br /> राजेंद्र कुँवर फरियादी की चिंता हिंदी को लेकर थी और
उन्होंने हिंदी की स्थिति पर एक कविता प्रस्तुत की आज़ादी चाहिए बहुत अच्छी
रचना रही उनकी भी फिर आये सुशील कुमार ने कविता के जन्म पर प्रकाश डाला
अपनी रचनाओ के माध्यम से बृजेश ने गांवो के शहरीकरण और उद्योगीकरण पर बहुत
अच्छी रचना प्रस्तुत की उनकी रचना का शीर्षक रहा 'मैं एक गाँव हूँ जो शहर
हो गया हूँ' ! वहीँ बबीता जी ने सरलता और सहजता से गावो की स्त्री त्रासदी
को अपनी रचना के माध्यम से रखा ! बबीता और बृजेश कुमार दोनों ही जेनेयू से
पीएचडी कर रहे हैं दोनों का प्रस्तुतिकरण गज़ब का रहा ! रचना आभा की चिंता
थी आज स्त्री पर बढ़ते अत्याचार पर बहुत प्रभावी ढंग से अपनी बात कही
उन्होंने वंदना गुप्ता की चिंता भी कुछ ऐसी थी किन्तु उन्होंने स्त्री को
सशक्त होने का सन्देश देकर अपनी रचना की समाप्ति की और अंत में वरिष्ठ
कवयित्री वीणा हांडा जी थी! उन्होंने भी स्त्री के सामजिक परिवेश पर एक
रचना प्रस्तुत की और एक रचना गाँधी जी पर प्रस्तुत की बहुत अच्छी प्रस्तुति
थी उनकी गाँधी एक व्यक्ति नहीं विचार हैं जो आज भी हमारे बीच हैं लेकिन हम
उन्हें पहचानने से इनकार कर रहे हैं कुछ ऐसा ही सारांश उनकी कविता का था !<br />
अंत में अनुज कुमार के दो शब्द वरिष्ठ साहित्यकार गंगेश गुंजन जी के
कवियों को प्रेरित करते शब्द उन्होंने कहा कि मंच पर जितनी भी रचनाये आई
सभी सार्थक और प्रभावी रही इसके साथ ही उन्होंने सभी रचनाकारों का मनोबल भी
बढ़ाया ! एक और व्यक्ति जिसके जिक्र के बिना ये आयोजन संपन्न नहीं होगा वो
है विशाल चर्चित मुंबई में बैठकर विशाल हर पल इस आयोजन का हिस्सा रहा और
एक सक्रिय सदस्य के रूप में विशाल ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई ! बैनर से
लेकर आयोजन के बारे में सभी मित्रो को बताने तक विशाल हर पल क्रियाशील रहा!
इस तरह से एक सफल आयोजन की समाप्ति हुई ! इस रिपोर्ट को तैयार करने में
अलका दी ने मेरी बहुत मदद की आप सभी मित्रो का स्नेह सहयोग ही सबल है मेरा !</span></div>
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अरुन अनन्तhttp://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.com0