दिनाँक / माह : 24 मई 2014
विषय : कविता
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नमस्कार मित्रो 24 मई को होने वाली सन्निधि संगोष्ठी सफलतापूर्वक
संपन्न हुई, यह गोष्ठी कविता पर आधारित रही, इस गोष्ठी में वरिष्ठ कथाकार
और कवयित्री कमल कुमार जी अध्यक्ष के रूप में और कवि-गजलकार और आकाशवाणी
के उप महानिदेशक लक्ष्मी शंकर वाजपेयी मुख्य अतिथि के रूप में हमारे बीच
रहे, इसके आलावा अतिथि कवियों के तौर पर ममता किरण, निरुपमा सिंह और केदार
नाथ कादर जी भी हमारे बीच रहे .....
इसके अतिरिक्त गंगेश गुंजन, ममता किरण, निरुपमा सिंह, केदारनाथ कादर,
अतुल प्रभाकर, वंदना ग्रोवर, नीरज द्विवेदी, कौशल उत्प्रेती, संगीता
शर्मा, रश्मि भारद्वाज, सुशीला श्योराण, आलोक खरे सहित संगोष्ठी का संचालन
कर रहीं किरण आर्या ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया। इन सभी की कविताओ
देश की चिंता समाई थी और भविष्य के प्रति उम्मीदें थीं।
इस संगोष्ठी में श्रोता रूप में अनुराधा प्रभाकर, सुरेश चंद्रा,
सीमान्त सोहल, उर्मिला माधव, राजीव तनेजा, अविनाश वाचस्पति, आनंद कुमार
द्विवेदी, मृदुला शुक्ला, कामदेव शर्मा, देवेन्द्र तिवारी, सोमा दास,
रश्मि नाम्बियार, मेरी प्यारी सखी कुसुम कुशवाहा और अन्य कुछ मित्रो ने
शिरकत की !
संगोष्ठी के प्रारंभ में संगोष्ठी के मकसद को उजागर करते हुए वरिष्ठ
पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि आज किताबों में कविता देखने को मिलती है
पर जीवन में वह खत्म हो गई है। स्वागत अतुल प्रभाकर ने किया, और अपना एक
भाव भी हम सभी के समक्ष रखा, गोष्ठी की संयोजिका किरण आर्य ने काव्य पाठ
के लिए मित्रो को आमंत्रित किया और अपने कुछ भाव भी रखे हम सभी के समक्ष !
इसके पश्चात् मुख्य अतिथि लक्ष्मी शंकर बाजपई जी ने अपना वक्तव्य दिया,
उन्होंने कहा मैं आभारी हूँ, पहले मैं साझा करना चाहूँगा एक सवाल कि
भविष्य में कविता का स्वरुप क्या होगा? कविता रहेगी या नहीं? इसमें कोई
संशय नहीं है, कविता का सम्बन्ध भावो से है इसीलिए कविता का अस्तित्व
हमेशा विद्धमान रहेगा, जीवन में जितनी पेशोपेश या समस्या है उनका निदान
कविता और साहित्य में है, जो साहित्य कला से जुड़ा नहीं है वो ह्रदय पशु
समान है, कविता पर आज जो संकंट है गहरा है, वो सोचनीय है, मैं विश्व कविता
महोत्सव में गया, तो वहां कविता का जो रूप देखा बेहद खूबसूरत था, पूरा
देश कविता में था, दिल्ली और पूरे देश में ऐसे प्रयास की जरूरत है, जरुरी
है कविता को स्कूल कॉलेज और आम जन तक पहुचाया जाए, दूसरा संकट कविता को
उनकी तरफ से है, जो कविता को घटिया तरीके से कविता को पाजेब पहनाकर चौराहे
पर नाचाना चाहते है, कविता की सरलता सहजता जो गाँव शहरों में बसती थी, वो
फिर से जीवंत हो जरुरी है, एक कविता वो है जो किताबो में है और एक कविता
वो है जो कठिन जटिल गद्य को कविता रूप में प्रसारित किया जा रहा है, कविता
बोद्धिक विलास का पर्याय नहीं हाही, आज के युवाओं के लिए दो हिंदी कवियों
के नाम बताना भी दुर्लभ जान पड़ता है, हमारे लोकसभा अध्यक्ष ने देश भर से
ढाई सौ से अधिक बुद्धिजीवी बुलाये थे जिनमे एक भी हिंदी कवी का नाम नहीं
था, इतने बुद्धिजीवियों में एक भी कवि का ना होना कवियों की कमियों की और
इंगित करता है, कविता को आज जो अजीबोगरीब रूप दे दिया गया है वो सोचनीय
है, कविता का आज जो बटवारा हो रहा है वो मेरी समझ से परे है, कविता में
साम्प्रदायिकता नहीं होनी चाहिए, जब तक संसार में मनुष्य रहेगा तब तक
कविता का वजूद बना रहेगा।
कविता मनुष्य की ताकत है इसे केवल तथाकथित विद्वानों और अभिजात्यों के
दायरे से बाहर लाने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि अपने
देश में कविता की समृद्ध वाचिक परंपरा पूरी तरह से लुप्त हो गई है और उसके
नाम पर जो कुछ बचा है उसकी सराहना नहीं की जा सकती है, क्योंकि वह पूरी
तरह फूहड़ हास्य-व्यंग्य तक सीमित रह गई है। उन्होंने कहा कि पहले किताबों
और पत्रिकाओं में छपने वाले महान कवि भी कवि सम्मेलनों में भाग लेते थे और
आम जनता कविता से जुड़ती थी। आज किताबों में छपने वाले कवि भी आम जनता से
दूर हो गए हैं और फूहड़ कवि सम्मेलनों से लोगों को कोई दिशा नहीं मिलती।
हिंदी कविता समाज में अपनी पैठ बनाए आज ये प्रयास होने चाहिए ! लक्ष्मी
शंकर ने अपनी कुछ कविताएं और ग़ज़ल भी सुनाई !
इसके पश्चात् गोष्ठी की अध्यक्ष कमल कुमार जी ने अपने वक्तव्य में कहा,
मैं विष्णु प्रभाकर जी की स्मृति को नमन करते हुए आप सभी मित्रो का
स्वागत करती हूँ, कविता नदी की तरह, धूप की तरह, हवा और नदी की तरह होती
है, इन सभी का बहना अविरल और सतत है, जिन्दगी के जो अनुभव और क्षण है उनमे
पिरोकर आज कविता अलग अलग ढंग से लिखी जा रही है, कविता अपने अंतस की
प्रेरणा अंतस का उजास है, उसका ही प्रकाश है, कवि जब छंद में कविता बोलते
है, आपके मस्तिष्क और भाव को बांधती है, छंद मुक्त कविता पहले मस्तिष्क
में जा फिर भावो का आकार लेती है, उसके पश्चात् उन्होंने अपनी कुछ कविताये
सुनाई !
गोष्ठी के अंत में धन्यवाद ज्ञापन नंदन शर्मा ने किया।
प्रस्तुतकर्ता : किरण आर्य
संयोजक (सन्निधि संगोष्ठी)
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