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सन्निधि संगोष्ठी में आप सभी का स्वागत एवं अभिनन्दन।

Saturday 26 April 2014

सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : अप्रैल २०१४


सन्निधि संगोष्ठी अंक : 13
दिनाँक / माह :  26 अप्रैल 2014
विषय : एकल नाट्य प्रस्तुति एवं काव्य पाठ
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दिनांक 26 अप्रैल 2014 सायं 5 बजे से गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के सन्निधि सभागार में काका कालेलकर और विष्णु प्रभाकर की स्मृति में अभिनेता निर्देशक रवि तनेजा जी द्वारा " प्यासा कौआ" एकल नाट्य पस्तुत किया गया, और इसके साथ ही कुछ मित्रो के द्वारा काव्य पाठ भी किया गया, एक और सफल संगोष्ठी जिसमे सम्मिलित रहे अतुल कुमार, लतांत प्रसून, अतुल जी की श्रीमती आराधना प्रभाकर, उनकी सुपुत्री और दामाद, अनीता दी, राम श्याम हसींन, भाई कौशल उप्रेती, नीरज द्विवेदी, सुमन जान्हवी, मेरी प्रिय सखी स्नेहलता मांगलिक, उसके पतिदेव भरत मांगलिक, बीना हांडा, उनके पतिदेव, उनके साथ और भी मित्र इस आयोजन का हिस्सा रहे, आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में अजय कुमार और संगम पाण्डेय जी सम्मिलित रहे !
सबसे पहले वरिष्ठ पत्रकार प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ संगोष्ठी की शुरुवात की प्रसून लतांत ने हिंदी में नाटक लेखन के इतिहास को पेश करते हुए कहा कि तीस साल पहले तक देश के गांव-गांव में होने वाले नाटकों का चलन अब थम गया है। नाटकों का यह दौर स्थानीय युवाओं को अपनी प्रतिभा को चमकाने और उभारने का बहुत बड़ा जरिया था। उन्होंने कहा कि न केवल गांवों और कस्बों में होने वाले नाटकों का दौर खत्म हुआबल्कि हजारों सालों से चली आ रहीलोकनाट्य की परंपरा भी लुप्त होने के कगार पर है।

इसके पश्चात् प्रसून जी ने स्वागत भाषण के लिए अतुल जी को मंच पर बुलाया, अतुल जी ने स्वागत भाषण के साथ नाटक के विषय वस्तु पर प्रकाश डाला और सन्निधि संगोष्ठी को नए रचनाकारों के लिए उपयोगी मंच बताते हुए कहा कि साल भर से आयोजित की जाने वाली संगोष्ठियों में सभी विधाओं को शामिल किया गया और सौ से कहीं ज्याद नए रचनाकारों ने इसमें शिरकत की है। उन्होंने कहा कि अबकी बार नाटक को शामिल किया गया क्योंकि यह साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा है पर आज इसकी बहुत उपेक्षा हो रही है। इसके पश्चात उन्होंने किरण आर्य को मंच पर बुलाया !

किरण आर्य ने मंच से सभी मित्रो का अभिनन्दन करते हुए कविता पाठ के लिए उर्मिला माधव, सरिता दास, मधु लबाना और सुशील कुमार को बुलाया और उसके पश्चात् संगम पाण्डेय जी ने अपना वक्तव्य दिया !

संगम जी ने कहा नमस्कार मैं यहाँ एक ही निमित से हूँ, कि मुझे अजय कुमार और रवि तनेजा जी का परिचय कराना है, ये दोनों ही रंगमंच के जाने माने नाम है, रवि तनेजा जी का रंगमंच से गहरा नाता रहा है उनके ससुर साहब सिद्धू जी भी रंगमंच से जुड़े है, और इसके साथ उनका पूरा परिवार रंगमंच और कला को समर्पित है, ये नाटक भी उन्ही का लिखा हुआ है जिसका मंचन आज यहाँ होने जा रहा है, अजय कुमार नाट्य कला अकादमी से 2000 में स्नातक हुए उन्होंने देश विदेश की यात्रा की और नाटक किये अजय जी अभिनेता बहुत अच्छे है लेकिन इनकी निपुणता गायन में है ! उन्होंने कहा किसी कौम की सेहत के बारे में जानने का सही तरीका स्कूल और कॉलेज में मिली विद्या से होता है, सच हमेशा कड़वा कसैला होता है, और उसे पचाना मुश्किल होता है, कला के नाम पर इसे सामने आना ही चाहिए, एक लेखक अपनी ईमानदारी से इसे सामने रखता है, समाज आईना होता है, समाज के सामने विकल्प होते है, खुद को सँभालने संवारने के, नाटककार में संयम नहीं होता आलस होता है, तो वह कहानी को बांधता है कुछ पलों घंटो में ! और अंत में उन्होंने एक शेर कहा ..........काश के ख़ुदा बक्शे हमें ऐसी ताकत .........के चश्में में गैरों के हम खुद को देख सके !

इसके पश्चात् रवि तनेजा ने अपने एकल अभिनय के जरिए पेश कर यह बताया कि आज प्यास बढ़ गई है और पानी न केवल तालाबों और नदियों से गायब हो रहा है बल्कि जिंदगी का पानी भी लगातार कम हो रहा है। रवि तनेजा ने एकल अभिनय के जरिए न केवल एक गांधीवादी शिक्षक आत्माराम की विडंबनापूर्ण जिंदगी के साथ उनकी संततियों के बुरे हश्र की वजहों को उजागर किया, बल्कि चौपट हो रही दुनिया का भयावह चित्र भी प्रस्तुत किया। तनेजा गांधीवादी शिक्षक आत्माराम को स्कूल से सेवानिवृत्त होने के एक दिन पहले नौकरी से हटा देने से लेकर उनकी संतानों की बरबादी की कथा को अपने सधे अभिनय में सहज ढंग से दर्शकों में संप्रेषित करने में कामयाब रहे। गांधी और भगत सिंह के विचारों के अंतरद्वंद्व में झूलते समाज की दशा को पेश करते हुए तनेजा ने जाहिर किया कि कैसे शिक्षक आत्माराम की बेटी भाग गई। नक्सली बना बड़ा बेटा शासन की प्रताड़ना का शिकार हुआ तो छोटा बेटा नशे का शिकार हो गया। इन बरबादियों को मास्टर आत्माराम रोक नहीं सका और अपनी असमर्थता पर पछताता-टूटता आत्माराम का दर्द आज केवल उसका नहीं रह गया है बल्कि अपने देश के सच्चे मूल्यों को आधार बना कर जीने वाले हरेक आदमी का दर्द हो गया है।

और गोष्ठी के अंत में संगोष्ठी में नई शैली में नाटकों को लोक गायन से जोड़ने के लिए चर्चित निर्देशक और अभिनेता अजय कुमार ने अपनी प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।...........

किरण आर्य