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सन्निधि संगोष्ठी में आप सभी का स्वागत एवं अभिनन्दन।

Saturday 11 May 2013

सन्निधि संगोष्ठी मासिक रिपोर्ट : माह (मई २०१३)


सन्निधि संगोष्ठी अंक : 02
विषय : काव्य 
माह : मई 
दिनाँक : 11 - मई - 2013

नमस्कार मित्रो ११ मई को सन्निधि सभागार में सन्निधि संगोष्टी का आयोजन जो काव्य पर आधारित था सफलता पूर्वक संपन्न हुआ इसका शुभारंभ संगोष्टी में सम्मिलित सभी सदस्यों ने अपने परिचय के साथ किया ....इस आयोजन की अध्यक्षता गंगेश गुंजन जी ने की उनके अलावा हमारे बीच वरिष्ट साहित्यकार आदरणीय बलदेव बंशी जी भी रहे ..उनके अलावा गाँधी हिंदुस्तानी सभा की मंत्री कुसुम शाह जी, अतुल कुमार जी, लतांत प्रसून जी, नंदन शर्मा जी, अनीता प्रभाकर जी जो विष्णु प्रभाकर जी की बेटी भी है और उनकी पुत्रवधू जी अनुज जी, ज्योतिसंघ जी राकेश त्रिपाठी जी, प्रवीण आर्य जी, अजय अज्ञात जी, बबली बशिष्ट जी, रश्मि भारद्वाज, प्रभा मित्तल जी, सरिता भाटिया जी, अरुण अनंत शर्मा, बलजीत कुमार जी, मुकेश कुमार सिन्हा जी, नरेन् आर्य जी, अलका भारतीय दी, उर्मी धीर, रेहान सिद्दकी, आदेश त्यागी जी, बाबू लाल जी, और अन्य कई लोगो ने सहभागिता दर्ज कराई !
प्रसून जी ने मच पर संगोष्टी के अध्यक्ष डॉ गंगेश गुंजन जी बलदेव वंशी जी अतुल कुमार जी नन्दन शर्मा जी को मंच पर आमंत्रित किया उसके बाद नन्दन शर्मा जी ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और आयोजन की सफलता की कामना की तत्पश्चात किरण आर्य ने अध्यक्ष महोदय श्री गंगेश गुंजन जी को कुछ उपहार भेट स्वरुप दिए फिर अतुल जी ने गोष्टी के नियम और उसको आगे ले जाने के सम्बन्ध में जानकारी दी ....उन्होंने कहा आदि मानव ने जब विचार मंथन शुरू किया तब विचार मंथन की कला विरासत स्वरुप उसके पास नहीं थी ! इसी तरह जब छोटा बच्चा शून्य से शुरू कर परिपक्व बनता है इसीलिए आप भी मन में संकोच और आग्रह ना रख खुले मन से सहयोग करे और संगोष्टी से सम्बंधित कुछ दिशा निर्देश भी उन्होंने अपने वक्तव्य में दिए !
फिर लतांत प्रसून जी ने कविता की भूमिका समाज में उसपर प्रकाश डाला प्रसून जी ने ये भी कहा की कविता और रचनाकार समय के साथ साथ उसमे आते है बहुत से बदलाव कुल मिलकर उनका वक्तव्य बहुत प्रभावी रहा ! वरिष्ट साहित्यकार बलदेव बंसी जी ने कहा की आज आत्मसम्मान का दिन है आत्मा का सृजन है कविता ! नदी पर कविता लिखो तो नदी बन जाओ पेड़ पर कविता लिखो तो पेड़ फूल बन जाओ अकेले फूल के पास जाओ जैसे कविता जाती है जब लौटकर आओगे तो अपने भीतर भी एक खिला हुआ फूल पाओगे और अंत में उन्होंने कहा दोस्तों बस इतनी सी कहानी है जिसमे जितना पानी है उतनी ही रवानी है !
बलदेव बंसी जी के वक्तव्य के बाद प्रसून जी ने मंच संचालन का कार्यभार आपकी इस मित्र किरण आर्य का सौंप दिया, इस बार मच पर पंद्रह प्रतिभागियों ने अपनी कविता पाठ किया जिसमे सुशील जोशी, नीलम नागपाल मेंहदीरत्ता, शिवानन्द सहर, सुशील कुमार, बबीता, बृजेश कुमार, समर्थ वशिष्ट, इंदु सिंह, मृदुला शुक्ला, रचना आभा, जेनेन्द्र, बीना हांडा बेन, राजेंद्र कुँवर फरियादी, राजीव तनेजा, और वंदना गुप्ता शामिल रहे !
गोष्ठी के प्रथम कवि सुशील जोशी जी ने बड़े ही सुंदर ढंग से राधा की होली को रंग दिए अपने द्वारा रचित छंदों के माध्यम से और उसके बाद बड़े ही रुचिकर और सरस ढंग से अपनी प्रिया को याद कर उसका सुंदर रूप को विभिन्न उपमाओं में बांध कर श्रोताओं के सामने रखा बड़ा सरस रहा उनका विश्लेषण हास्य की चाशनी के साथ भक्ति रस से लबरेज़ ! दूसरी कवयित्री नीलम मेहदीरत्ता अपने स्वाभाव के अनुसार गंभीर और गहरी कविता लेकर आई मंच पर उन्होंने गरीब लड़की अमीर लड़की समाज में व्याप्त स्त्री पुरुष के भेदभाव से उपजे सामजिक परिवेश का चित्रण बखूबी किया उसके बाद गरीबी में ज़िन्दगी गुजरने पर मजबूर लोगों का भी बहुत संवेदनशील वर्णन करती हुई कविता प्रतिभाशाली कवयित्री नीलम की दोनों कविताएं सामजिक परिवेश पर बहुत ही जायज़ सवाल थे उनके बाद जोश-ओ-खरोश से भरे शिवानन्द की कविता ने कुछ रोमांस को जिया और माहौल को प्रेम रस में डुबो दिया उसके पश्चात् इन्दु सिंह जी की कविता समाज के कटु सत्य को उजागर करती हुई रही रोजमर्रा घरो में काम करने वालो की त्रासदी को दर्शा गयी ! बहुत संवेदनशील सवाल थे उनके भी ...
फिर आये गंभीर माहौल से अलग राजीव जी अपनी गुदगुदाने वाली कविता के साथ बड़ी व्यवहारिक लगी उनके द्वारा की गई माईक की महिमा राजीव सभी को हंसा गए फिर आये समर्थ वशिष्ट जी जो अपनी रचना के माध्यम से स्वदेश दीपक जी को हम सभी से रूबरू करा गए, जेनेन्द्र एक क्रन्तिकारी कवि के रूप में अपनी बात कही अपनी दोनों रचनाये ही उन्होंने देश के गावो को समर्पित की बहुत ही बढ़िया रहा उनका प्रस्तुतिकरण, गाँव के शहरीकरण और आज के राजनितिक माहौल पर उनकी दोनों कविताएं बहुत सारे सवाल छोड़ गयी ! मुस्कुराती सी मृदुला शुक्ला ने भी स्त्री पे बढ़ते अत्याचार पर चिंता व्यक्त करते हुए कविता प्रस्तुत की !
राजेंद्र कुँवर फरियादी की चिंता हिंदी को लेकर थी और उन्होंने हिंदी की स्थिति पर एक कविता प्रस्तुत की आज़ादी चाहिए बहुत अच्छी रचना रही उनकी भी फिर आये सुशील कुमार ने कविता के जन्म पर प्रकाश डाला अपनी रचनाओ के माध्यम से बृजेश ने गांवो के शहरीकरण और उद्योगीकरण पर बहुत अच्छी रचना प्रस्तुत की उनकी रचना का शीर्षक रहा 'मैं एक गाँव हूँ जो शहर हो गया हूँ' ! वहीँ बबीता जी ने सरलता और सहजता से गावो की स्त्री त्रासदी को अपनी रचना के माध्यम से रखा ! बबीता और बृजेश कुमार दोनों ही जेनेयू से पीएचडी कर रहे हैं दोनों का प्रस्तुतिकरण गज़ब का रहा ! रचना आभा की चिंता थी आज स्त्री पर बढ़ते अत्याचार पर बहुत प्रभावी ढंग से अपनी बात कही उन्होंने वंदना गुप्ता की चिंता भी कुछ ऐसी थी किन्तु उन्होंने स्त्री को सशक्त होने का सन्देश देकर अपनी रचना की समाप्ति की और अंत में वरिष्ठ कवयित्री वीणा हांडा जी थी! उन्होंने भी स्त्री के सामजिक परिवेश पर एक रचना प्रस्तुत की और एक रचना गाँधी जी पर प्रस्तुत की बहुत अच्छी प्रस्तुति थी उनकी गाँधी एक व्यक्ति नहीं विचार हैं जो आज भी हमारे बीच हैं लेकिन हम उन्हें पहचानने से इनकार कर रहे हैं कुछ ऐसा ही सारांश उनकी कविता का था !
अंत में अनुज कुमार के दो शब्द वरिष्ठ साहित्यकार गंगेश गुंजन जी के कवियों को प्रेरित करते शब्द उन्होंने कहा कि मंच पर जितनी भी रचनाये आई सभी सार्थक और प्रभावी रही इसके साथ ही उन्होंने सभी रचनाकारों का मनोबल भी बढ़ाया ! एक और व्यक्ति जिसके जिक्र के बिना ये आयोजन संपन्न नहीं होगा वो है विशाल चर्चित मुंबई में बैठकर विशाल हर पल इस आयोजन का हिस्सा रहा और एक सक्रिय सदस्य के रूप में विशाल ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई ! बैनर से लेकर आयोजन के बारे में सभी मित्रो को बताने तक विशाल हर पल क्रियाशील रहा! इस तरह से एक सफल आयोजन की समाप्ति हुई ! इस रिपोर्ट को तैयार करने में अलका दी ने मेरी बहुत मदद की आप सभी मित्रो का स्नेह सहयोग ही सबल है मेरा !

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