सन्निधि संगोष्ठी अंक : 03
विषय : गीत - ग़ज़ल
माह : जून
दिनाँक : 21- जून - 2013
राजधानी
दिल्ली में ‘आवारा मसीहा’ जैसी महत्त्वपूर्ण कृति के लेखक विष्णु प्रभाकर
की 101वीं जयंती को नए रचनाकारों को मार्गदर्शन और उन्हें प्रोत्साहन देने
के रूप में मनाया गया। इसका आयोजन गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और
विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान की ओर से
सन्निधि सभागार में किया गया। इन दोनों संस्थाओं की ओर से खासतौर से नए
रचनाकारों के लिए अप्रैल महीने से मासिक सन्निधि संगोष्ठी का सिलसिला शुरू
किया गया है। तीसरी संगोष्ठी संगोष्ठी गीत-गजल पर केंद्रित थी। इस बार
संगोष्ठी में डा सुधा मल्होत्रा की ‘विष्णु प्रभाकर: व्यक्त्तिव और
कृतित्व’ और वीना हांडा की ‘भावांजलि’ पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया।
संगोष्ठी की उपलब्धि यह रही कि इसमें भाग लेने वालों में ज्यादातर संख्या
युवाओं की थी। कार्यक्रम का प्रारंभ हिंदी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष
विमलेश वर्मा एवं पांचाल जी के कर कमलों द्वारा विष्णु प्रभाकर जी के चित्र
पर माल्यार्पण से हुआ। संगोष्ठी के शुभारंभ के पहले समवेत रूप से केदारनाथ
तबाही में मारे गए लोगों और समाजसेवक बाबूलाल शर्मा की दिवंगत आत्मा की
शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि रहे डॉ.
शफ़ी अयूब जबकि अध्यक्ष एवं विशेष अतिथि के पद पर क्रमश: डॉ. रंजना अग्रवाल
एवं मणिमाला जी आसीन रही जिन्हें स्वागत के क्रम में संस्थान की ओर से
स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए। तत्पश्चात् सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम
अपनी ऊँचाइयों को छूने आगे बढ़ा।
आदरणीय प्रसून लतांत जी ने अपनी मुस्कुराहट के साथ एक बार फिर माइक की जिम्मेदारी बखूबी संभाली। सबसे पहले स्व. विष्णु प्रभाकर जी के सुपुत्र श्री अतुल कुमार जी ने संगोष्ठी के प्रारंभ होने से लेकर इसके भविष्य की संभावनाओं को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही विष्णु जी के सुछ संस्मरण भी उनकी कुछ पंक्तियों के साथ हमसे सांझा किए। जैसे –
“सब कुछ तो नहीं समा सकता प्यार में,
इसलिए प्यार से अधिक प्यार मैं करता हूँ।“
विष्णु जी की इन पंक्तियों को श्री अतुल कुमार जी ने व्यंग्य का रूप भी दिया जो आज के हालातों को इंगित करता है- “सब कुछ तो नहीं समा सकता भ्रष्टाचार में,
इसलिए भ्रष्टाचार से अधिक भ्रष्ट आचार मैं करता हूँ।“
जयंती समारोह का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि संगोष्ठी का मकसद नए रचनाकारों के लिए माली बनना है न कि लकड़हारा बनना ताकि नए रचनाकारों को भरपूर मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिल सके। इस मौके पर विष्णु प्रभाकर के परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे और उनकी बेटी अनिता नवीन ने अपनी स्वरचित कविता का पाठ कर विष्णु प्रभाकर के हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान और अति मानवीय व्यक्तित्व को उजागर किया। अतुल प्रभाकर जी के अलावा उनकी पत्नी जो हमेशा इस आयोजन का हिस्सा रही है के साथ उनके भाई अमित प्रभाकर जी, बहन अर्चना और अनीता के साथ बहनोई अखिल कुमार और नवीन कुमार, उनकी बेटी और दामाद सभी शामिल रहे आयोजन में !
गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह के सान्निध्य में और वरिष्ठ गीतकार डा रंजना अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोजित इस महोत्सव में वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी कृष्णा कुमारी ने विष्णु प्रभाकर के सादगी भरे जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि वे अपने बेहतर संस्कारों और सरोकारों के लिए तो जाने ही जाएंगे लेकिन विपुल रचना भंडार देकर जाने के लिए भी हमारे बीच न केवल हमेशा जीवंत रहेंगे बल्कि हम सभी को बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरित भी करते रहेंगे। विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद गांधी स्मृति और दर्शन समिति की निदेशक मणिमाला ने राष्ट्रीय स्तर पर नए रचनाकारों के लिए 14 सिंतबर हिंदी दिवस पर आयोजन में समिति की ओर से भरपूर सहयोग देने का एलान किया
डॉ. सुधा ने विष्णु जी के साथ व्यतीत किए अपने शोध के दिनों को साँझा किया। वहीँ वीणा हांडा जी ने अपने वक्तव्य में अपनी पुस्तक भावांजली से हम सभी का परिचय कराया !
सन्निधि संगोष्ठी की संयोजक किरण आर्या के संचालन में गीत और गजलों का दौर चला, गीत और ग़ज़ल पढ़ने एवं सुनने के लिए विभिन्न स्थानों से अनेक पाठक एवं श्रोता अपनी सारी व्यस्तताओं को दर-किनार कर यहाँ एकत्रित हुए। अनेक भावों को अपने अंदर समेटे विभिन्न गज़ल एवं गीतों से सभी को मोहित करने वाले गीतकार एवं गज़लकारों में अलका भारतीय, कालीशंकर सौम्य, अरविंद राय, विनय राज, निरुपमा सिंह, अजय अज्ञात, साहिल ठाकुर, कामदेव शर्मा, पूनम माटिया, नीरज द्विवेदी, आदेश त्यागी, अरुण अनंत शर्मा, शालिनी रस्तोगी, डा माँ समता और कौशल उप्रैती जैसे नए रचनाकार अपनी श्रेष्ठ रचनाओं को पेश कर आयोजन को एक उपलब्धि बनाने में कामयाब हुए। कार्यक्रम के बीच में जहाँ विनोद शर्मा एवं उनकी मंडली द्वारा भजन सुनाया गया वहीं माला जी एवं उनके साथियों ने एवं शीला जी ने बीना हाँडा जी की कविताओं को सुरों से सजाया।
धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी संयोजन समिति के सदस्य सुशील कुमार ने किया। संगोष्ठी में पिछली संगोष्ठी में अपनी महत्त्वपूर्ण कविताओं का पाठ करने वाले रचनाकारों में मौके पर मौजूद राजीव तनेजा, सुशिल जोशी, सुशिल कुमार, जैनेन्द्र जिज्ञासु, बीना हांडा, वंदना गुप्ता और रचना आभा के साथ किरण आर्य को प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। इसके साथ ही बहुत से मित्रो ने इस आयोजन में श्रोता बन सहभागिता दर्ज कराई जिसमे डॉ चौबे, बबली श्रीवास्तव, बलजीत कुमार, अंजू चौधरी, सुशीला शिरोयन, रश्मि नाम्बियार, रमा भारती, किरण कुमारी, मुकेश कुमार सिन्हा, इंदु सिंह, उर्मि धीर, राकेश त्रिपाठी जी, विनय विनम्र, कमला सिंह, नरेन् आर्य, संजय कुमार, सरिता भाटिया, संजू तनेजा, रमेश शर्मा, अभय सिन्हा, अजय सहाय, विजय हांडा जी, नीलू जी, के साथ अन्य कई मित्रो ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई यहाँ अपने दो मित्रो का नाम मैं विशेष रूप से लेना चाहूंगी .....जयपुर से मेरी सखी सरोज सिंह, मऊ से आई मेरी सखी रुचिका एवं उसके पतिदेव अरविंद मिश्रा और पटना से भाई राज रंजन जी आयोजन में सम्मिलित हुए उनका आना मेरे लिए सुखद अहसास रहा (जिन मित्रो के नाम भूलवश छूट गए है उनसे अग्रिम क्षमा प्रार्थी हूँ मैं )
मुख्य अतिथि डॉ. शफ़ी अयूब ने अपने शेरों से सबको मोह लिया। शफ़ी साहब का लहजा मन को छू जाने वाला रहा उन्होंने हिंदी और उर्दू में गजल लेखन के इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि गजल आज दोनों भाषाओं में लिखी जा रही है और यह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय भी है। उन्होंने कहा कि गजल शुरू में चाहे जिस मकसद से लिखी गई लेकिन आज वह लोगों की आकांक्षाओं को व्यक्त करने वाली काफी सशक्त विधा बन गई है।
उनके बाद उपहार स्वरूप सभी को विष्णु जी की सुपुत्री अनीता जी की अपने पिताजी को समर्पित रचना के सोपान का अवसर मिला। अंत में डॉ. रंजना अग्रवाल जी ने थोड़ी सी बात गीतों की करने के पश्चात् एक सुंदर गज़ल सुनाकर कार्यक्रम में समाँ बाँध दिया।
उसके पश्चात् संयोजन समिति से सुशील कुमार जी ने सभी को प्रीति भोज के लिए आमंत्रित कर कार्यक्रम का समापन किया। आयोजन में प्रीती भोज बीना हांडा की तरफ से था! निश्चित तौर पर यह एक सफल आयोजन रहा। हाँ कुछ असुविधाए और परेशानियाँ जरुर रही लेकिन शुक्रगुजार है हम अपने सभी मित्रो के जिन्होंने उन परेशानियों को दरकिनार रख हँसते हुए इस आयोजन को सफल बनाया, हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि भविष्य में इस तरह की परेशानियों का सामना ना करना पड़े आप सभी को ! अंत में विशेष आभार आदरणीय प्रसून सर का और सुशिल जोशी भाई का जिन्होंने इस रिपोर्ट को बनाने में मेरी मदद की ! ...........किरण आर्य (संयोजक )
नोट :-अगली सन्निधि संगोष्टी जुलाई माह के दूसरे शनिवार यानी 13 जुलाई को होगी जो कहानी विधा पर केन्द्रित होगी, जिसमे पार्ट लेने वाले प्रत्येक प्रतिभागी को 7 मिनट काय मिलेगा, जिसमे वो पूरी कहानी, उसके अंश या सार रूप में अपनी कहानी रखे !
आदरणीय प्रसून लतांत जी ने अपनी मुस्कुराहट के साथ एक बार फिर माइक की जिम्मेदारी बखूबी संभाली। सबसे पहले स्व. विष्णु प्रभाकर जी के सुपुत्र श्री अतुल कुमार जी ने संगोष्ठी के प्रारंभ होने से लेकर इसके भविष्य की संभावनाओं को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही विष्णु जी के सुछ संस्मरण भी उनकी कुछ पंक्तियों के साथ हमसे सांझा किए। जैसे –
“सब कुछ तो नहीं समा सकता प्यार में,
इसलिए प्यार से अधिक प्यार मैं करता हूँ।“
विष्णु जी की इन पंक्तियों को श्री अतुल कुमार जी ने व्यंग्य का रूप भी दिया जो आज के हालातों को इंगित करता है- “सब कुछ तो नहीं समा सकता भ्रष्टाचार में,
इसलिए भ्रष्टाचार से अधिक भ्रष्ट आचार मैं करता हूँ।“
जयंती समारोह का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि संगोष्ठी का मकसद नए रचनाकारों के लिए माली बनना है न कि लकड़हारा बनना ताकि नए रचनाकारों को भरपूर मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिल सके। इस मौके पर विष्णु प्रभाकर के परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे और उनकी बेटी अनिता नवीन ने अपनी स्वरचित कविता का पाठ कर विष्णु प्रभाकर के हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान और अति मानवीय व्यक्तित्व को उजागर किया। अतुल प्रभाकर जी के अलावा उनकी पत्नी जो हमेशा इस आयोजन का हिस्सा रही है के साथ उनके भाई अमित प्रभाकर जी, बहन अर्चना और अनीता के साथ बहनोई अखिल कुमार और नवीन कुमार, उनकी बेटी और दामाद सभी शामिल रहे आयोजन में !
गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह के सान्निध्य में और वरिष्ठ गीतकार डा रंजना अग्रवाल की अध्यक्षता में आयोजित इस महोत्सव में वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी कृष्णा कुमारी ने विष्णु प्रभाकर के सादगी भरे जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि वे अपने बेहतर संस्कारों और सरोकारों के लिए तो जाने ही जाएंगे लेकिन विपुल रचना भंडार देकर जाने के लिए भी हमारे बीच न केवल हमेशा जीवंत रहेंगे बल्कि हम सभी को बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरित भी करते रहेंगे। विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद गांधी स्मृति और दर्शन समिति की निदेशक मणिमाला ने राष्ट्रीय स्तर पर नए रचनाकारों के लिए 14 सिंतबर हिंदी दिवस पर आयोजन में समिति की ओर से भरपूर सहयोग देने का एलान किया
डॉ. सुधा ने विष्णु जी के साथ व्यतीत किए अपने शोध के दिनों को साँझा किया। वहीँ वीणा हांडा जी ने अपने वक्तव्य में अपनी पुस्तक भावांजली से हम सभी का परिचय कराया !
सन्निधि संगोष्ठी की संयोजक किरण आर्या के संचालन में गीत और गजलों का दौर चला, गीत और ग़ज़ल पढ़ने एवं सुनने के लिए विभिन्न स्थानों से अनेक पाठक एवं श्रोता अपनी सारी व्यस्तताओं को दर-किनार कर यहाँ एकत्रित हुए। अनेक भावों को अपने अंदर समेटे विभिन्न गज़ल एवं गीतों से सभी को मोहित करने वाले गीतकार एवं गज़लकारों में अलका भारतीय, कालीशंकर सौम्य, अरविंद राय, विनय राज, निरुपमा सिंह, अजय अज्ञात, साहिल ठाकुर, कामदेव शर्मा, पूनम माटिया, नीरज द्विवेदी, आदेश त्यागी, अरुण अनंत शर्मा, शालिनी रस्तोगी, डा माँ समता और कौशल उप्रैती जैसे नए रचनाकार अपनी श्रेष्ठ रचनाओं को पेश कर आयोजन को एक उपलब्धि बनाने में कामयाब हुए। कार्यक्रम के बीच में जहाँ विनोद शर्मा एवं उनकी मंडली द्वारा भजन सुनाया गया वहीं माला जी एवं उनके साथियों ने एवं शीला जी ने बीना हाँडा जी की कविताओं को सुरों से सजाया।
धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी संयोजन समिति के सदस्य सुशील कुमार ने किया। संगोष्ठी में पिछली संगोष्ठी में अपनी महत्त्वपूर्ण कविताओं का पाठ करने वाले रचनाकारों में मौके पर मौजूद राजीव तनेजा, सुशिल जोशी, सुशिल कुमार, जैनेन्द्र जिज्ञासु, बीना हांडा, वंदना गुप्ता और रचना आभा के साथ किरण आर्य को प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। इसके साथ ही बहुत से मित्रो ने इस आयोजन में श्रोता बन सहभागिता दर्ज कराई जिसमे डॉ चौबे, बबली श्रीवास्तव, बलजीत कुमार, अंजू चौधरी, सुशीला शिरोयन, रश्मि नाम्बियार, रमा भारती, किरण कुमारी, मुकेश कुमार सिन्हा, इंदु सिंह, उर्मि धीर, राकेश त्रिपाठी जी, विनय विनम्र, कमला सिंह, नरेन् आर्य, संजय कुमार, सरिता भाटिया, संजू तनेजा, रमेश शर्मा, अभय सिन्हा, अजय सहाय, विजय हांडा जी, नीलू जी, के साथ अन्य कई मित्रो ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई यहाँ अपने दो मित्रो का नाम मैं विशेष रूप से लेना चाहूंगी .....जयपुर से मेरी सखी सरोज सिंह, मऊ से आई मेरी सखी रुचिका एवं उसके पतिदेव अरविंद मिश्रा और पटना से भाई राज रंजन जी आयोजन में सम्मिलित हुए उनका आना मेरे लिए सुखद अहसास रहा (जिन मित्रो के नाम भूलवश छूट गए है उनसे अग्रिम क्षमा प्रार्थी हूँ मैं )
मुख्य अतिथि डॉ. शफ़ी अयूब ने अपने शेरों से सबको मोह लिया। शफ़ी साहब का लहजा मन को छू जाने वाला रहा उन्होंने हिंदी और उर्दू में गजल लेखन के इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि गजल आज दोनों भाषाओं में लिखी जा रही है और यह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय भी है। उन्होंने कहा कि गजल शुरू में चाहे जिस मकसद से लिखी गई लेकिन आज वह लोगों की आकांक्षाओं को व्यक्त करने वाली काफी सशक्त विधा बन गई है।
उनके बाद उपहार स्वरूप सभी को विष्णु जी की सुपुत्री अनीता जी की अपने पिताजी को समर्पित रचना के सोपान का अवसर मिला। अंत में डॉ. रंजना अग्रवाल जी ने थोड़ी सी बात गीतों की करने के पश्चात् एक सुंदर गज़ल सुनाकर कार्यक्रम में समाँ बाँध दिया।
उसके पश्चात् संयोजन समिति से सुशील कुमार जी ने सभी को प्रीति भोज के लिए आमंत्रित कर कार्यक्रम का समापन किया। आयोजन में प्रीती भोज बीना हांडा की तरफ से था! निश्चित तौर पर यह एक सफल आयोजन रहा। हाँ कुछ असुविधाए और परेशानियाँ जरुर रही लेकिन शुक्रगुजार है हम अपने सभी मित्रो के जिन्होंने उन परेशानियों को दरकिनार रख हँसते हुए इस आयोजन को सफल बनाया, हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि भविष्य में इस तरह की परेशानियों का सामना ना करना पड़े आप सभी को ! अंत में विशेष आभार आदरणीय प्रसून सर का और सुशिल जोशी भाई का जिन्होंने इस रिपोर्ट को बनाने में मेरी मदद की ! ...........किरण आर्य (संयोजक )
नोट :-अगली सन्निधि संगोष्टी जुलाई माह के दूसरे शनिवार यानी 13 जुलाई को होगी जो कहानी विधा पर केन्द्रित होगी, जिसमे पार्ट लेने वाले प्रत्येक प्रतिभागी को 7 मिनट काय मिलेगा, जिसमे वो पूरी कहानी, उसके अंश या सार रूप में अपनी कहानी रखे !
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