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Sunday 17 November 2013

विस्तृत रिपोर्ट सन्निधि संगोष्ठी माह नवम्बर २०१३

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 08
विषय : कहानी
माह : नवम्बर
दिनाँक : 16- नवम्बर - 2013

नमस्कार मित्रो कल यानी 16 नवम्बर को सन्निधि की आठवीं गोष्ठी जो कहानी पर आधारित रही सफलता पूर्वक संपन्न हुई गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार साहित्यकार प्रेमपाल शर्मा जी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में हंस के पूर्व कार्यकारी संपादक और कथाकार संजीव जी विशेष अतिथि के रूप में हंस के कार्यकारी संपादक संगम पाण्डेय जी हमारे बीच रहे, उनके अलावा अतुल प्रभाकर जी उनकी धर्म पत्नी आराधना जी, लतांत प्रसून जी, कुसुम शाह दी, आदरणीय गंगेश गुंजन जी, बीना हांडा जी उनके पतिदेव, अनीता दी उनके पतिदेव, राजीव तनेजा, संजू तनेजा, बलजीत कुमार, सुशील जोशी, राजेंद्र कुंवर फरियादी, कामदेव शर्मा, संजय कुमार गिरी, बबली वशिष्ट, कमला सिंह, अलका भारतीय, ममता जोशी, रिया दी, सुमन शर्मा, राजेश तंवर, शोभा मिश्रा, अनघ शर्मा, अरुण अनंत शर्मा, नीरज द्विवेदी, वंदना गुप्ता, वंदना ग्रोवर, इंदु सिंह, मृदुला शुक्ल, निरुपमा सिंह, शोभा रस्तोगी, हितेश कुमार, सुशील कृष्णेत, अविनाश वाचस्पति, सरिता भाटिया, सरिता गुप्ता, पी के गुंजन, भाई राज रंजन उनकी बहन और जीजा जी, अनुराग त्रिवेदी, और कुछ अन्य मित्र भी शामिल हुए !

आयोजन की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचत मुस्कान के साथ अतिथियों के लिए दो शब्द कहकर की, उसके बाद अतुल जी ने स्वागत भाषण दिया, और एक लघुकथा सुनाई, जो वास्तविक धरातल से जुडी हुई थी, फिर राजेंद्र जी और बि'जी को श्रधांजली देते हुए सभी ने दो मिनट का मौन रखा, उसके पश्चात् अतुल जी ने किरण आर्य को सञ्चालन के लिए निमंत्रित किया, मंच पर चार कथाकारों और एक अतिथि कथाकार ने अपनी रचनाये रखी जिनके नाम है .....हितेश कुमार, शोभा मिश्रा, ब्रिजेश कुमार, अनघ शर्मा, और अनुराग त्रिवेदी जी !

इसके पश्चात् संगम पाण्डेय जी जो हंस के कार्यकारी संपादक है उन्होंने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा कि मुझे पहली कहानी जो हितेश कुमार की थी उसने बहुत प्रभावित किया शुरू की 3 कहानियां सरलबोध की कहानियां रही, और अंतिम कहानी जो अनघ शर्मा की थी जटल भाव का बोध करा रही थी, कहानियां जो हम पढ़ रहे है और लिख रहे है, सभ्यता और जीवन के जिस मुकाम पर हम पहुचे है, उससे आगे कुछ कहने का प्रयास हम कर रहे है या नहीं, क्युकि जो वास्तविक है, साहित्य हमें उसी से परिचित कराने का नाम है, हालाँकि हिंदी कहानी का इतिहास जो दिख रहा है उसीके आसपास बुना गया है उसकी के संयोगो को जोड़ना हिंदी कहानी का चलन रहा है ! हंस के पिछले अंक में हमने एक कहानी छपी एलिस मुनरो की जिसे नोबल पुरस्कार मिला है, एलिस जी को आज के युग का चेखव कहा जाता है, उस कहानी का प्लाट है एक लड़की है जो शहर जा रही है ट्रेन से कुछ सामान खरीदने ये उसकी अकेले पहली यात्रा है और इस यात्रा के दौरान उसे कुछ लोग मिलते है, जिनमे एक यात्री एक पादरी है, जो उसे बताता है उसने एक तालाब के पास बतखे देखि, पादरी के द्वारा वो वर्णन सुन लड़की के सोचती है पादरी एक कल्पना शील मनुष्य है, और जीवन की कोमलता से वाकिफ है, फिर कुछ समय बाद पादरी का अनावश्यक स्पर्श वो महसूस करती है, और कहानी आगे बढती है उस लड़की की मन की दुविधा को लेकर, तो पूरी कहानी लड़की जो महसूस करती है उसपर आधारित है, मेरा मानना है कहानी में जो दिख नहीं रहा उसे दिखानें का प्रयास होना चाहिए ना की जो दिख रहा है उसे ....और मैंने अपने इस संशय को राजेन्द्र जी के समक्ष रखा और साथ ही ये भी की ये कहानी पढ़कर आपको कैसा लगा, राजेंद्र जी ने कहा इस कहानी में पादरी और लड़की दोनों ही खुद को छिपा रहे है, ये उस कहानी का मूल थ्रस्ट है, तो बस मेरा इतना ही कहना है की इस विचारधारा को सामने रखकर आज कथाकारों को कहानी लिखनी चाहिए !

संजीव जी ने अपने वक्तव्य में कहा ये दिन परम दुःख के है मेरे लिए, आज अपने दुःख के साथ साहित्य में संभावना के जो क्षितिज खुल रहे है, उनकी तरफ भी इशारा करूँगा मैं, आपको लगे जहाँ कुछ आपतिजनक कह रहा हूँ कृपया टोक दीजियेगा, सबसे पहले दुःख की बात राजेंद्र जी से मेरा रिश्ता बहुत करीबी रहा अपने दुःख को शब्दों से राह देने की मेरी कोशिश असफल रही है, इसके अलावा मेरे ऊपर जो वज्रघात हुआ वो है बि'जी का जाना राजस्थानी साहित्यकार विजयदान देथा बि'जी का निधन एक भारी क्षति, बि'जी मुझे बेटे की तरह मानते थे उनसे बहुत कुछ सीखा मैंने जीवन में, आप सभी नए पुराने मित्रो से मैं विनती करूँगा भाषा के स्तर पर कथ्य के स्तर पर लोककथाओ के स्तर पर गर हमारे बीच कोई वैश्विक स्तर का कथाकार था तो उसमे अग्रणीय नाम बि'जी का आता है, उन्हें जरुर पढ़े उनकी कुछ प्रसिद्ध कहानिया थी चरनदास चोर, दुविधा जिस पर पहेली जैसी फिल्म बनी, बि'जी के वैभव पर एक लेख संकलित करने का प्रयास किया था मैंने जो पूरा नहीं कर पाया था मैं ...संगम जी की बातों का आदर करते हुए मैं उनसे इतेफाक़ नही रख पाता, मेरा अपना मानना है की हिंदी कहानी का वैश्विक स्तर कहीं से भी उन्नीस नहीं है, मैंने राजेंद्र जी से भी कई बार कहा और उन्होंने माना भी, हमारे इतिहास में इतनी समृद्ध कहानियां है जिन्हें सोचा भी नहीं जा सकता है, कहानी कहने के कितने विकल्प हो सकते है, बि'जी ने हमारी मान्यताओं से उठाया ! हमारे जो नए रचनाकार कथाकार शुरुवात कर रहे है तो लिखने से पहले कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जो साहित्यकार फैले हुए है उन्हें जरुर पढ़े, अब आती है आज मंच पर आने वाली कहानियों की बात तो अतुल जी ने एक छोटी कहानी से आज शुरुवात की, आज चार कहानियां पढ़ी गई हितेश की कहानी "झीनी झीनी बारिश" में अंचल का संकट, वहन के लोगो की अस्तित्व की लड़ाई दोनों तरफ से मार खा रहे लोग हितेश की कहानी का ताना बाना दोनों को समेटता है, तो इस कहानी को मैं एक तरह से अपनी भोगी हुई कहानी बता सकता हूँ ! शोभा जी ने अपनी कहानी में एक आत्महत्या का हवाला दिया, लडकी के अन्दर की संभावनाए जो खिलनी चाहिए थी नहीं है, भारतीय समाज में बहूँ के साथ व्यवहार का चित्रण, और अंत में नायिका का आत्महत्या करना फिर फिर एक डर का भाव और फिर लेखिका उसे सुखांत में ले आती है, तो कहानी को सहज भाव से बहने दे पात्रो पर हावी ना होने दें ! इसके बाद ब्रिजेश की कहानी जो रियाज़ा के उत्सर्ग की कहानी है, ब्रिजेश की कहानी पर थोड़ी मेहनत की जरूरत है, फिर भी धन्यवाद उन्हें जो उन्होंने साम्प्रदायिकता के स्तर पर कहानी रची, अनघ की कहानी धन्यवाद की पात्र है, और प्रभावित करती है, आज की कहानियों में सबसे सुगठित कहानी अनघ की रही ! सुनाई जाने वाली कहानी पढ़ी जाने वाली कहानी गाथा बनने वाली कहानी कहानी के उदारीकरण के कुछ प्रकार है, कहानी का समृद्ध संसार हमारे यहाँ विकसित हो रहा है, थोडा सा प्रयास कहानी की समृद्धि को बढ़ाएगा !

संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री प्रेमपाल शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में कहा दोस्तों दिल्ली की गोष्ठियों में अध्यक्षीय वक्तव्य का समय आते आते आधा हॉल खाली हो जाता है, खैर मुझे अच्छा लगा की नए लेखको की पाठशाला तैयार की जा रही है, अतुल जी प्रसून जी और जो भागीदार है सबको बधाई, जिस कक्ष में गोष्ठी हो रही है राजेंद्र जी के हंस के काफी करीब है, यहाँ थोड़ी सी रिहर्सल होगी, पाण्डेय पड़ोस में है हो सकता है वो जल्द ही हंस में छपे कुछ और रचनाकार सामने आये मृत्यु तो सबके लिए एक नियति है ही और राजेंद्र जी विष्णु प्रभाकर जी और जो नहीं है आज उनकी क्षति तो पूरी हो नहीं सकती, एक रचनाकार के तौर पर आप आगे आयेंगे तो उनके लिए ये एक श्रधांजली होगी ! मैं एक प्रश्न से गुजर रहा था कहानियों के दौरान की हिंदी साहित्य जगत में लेखकों की इतनी कमी नहीं है जितनी पाठकों की है, मैं इसे इसीलिए भी कहना चाह रहा हूँ की गर हम उन कहानियों को पढेंगे तो थोडा सा खुद ही समझ आ जाएगा की हिंदी कहानी में हम कहाँ शामिल हो सकते है, किन पात्रताओ की तरफ हम बढ़ सकते है, किसी बच्चे को बार बार मापा जाए तो उसकी लम्बाई रुक जाती है मेरे तीन दिग्गजों ने कई मर्तवा लम्बाई को नापा मैं संक्षेप में कहूँगा सभी कथाकारों में एक तीखी संवेदनशीलता है, विशेषकर शोभा ने जो कहानी पढ़ी, उनकी कहानी स्त्रियों की दशा पर सोचनीय सवाल उठाती है, लेकिन अंत में उनका रिंकू जी को महान पति परमेश्वर बनाना खलता है थोडा, आज भी अफगानिस्तान की मलाला और हमारे यहाँ स्त्री की दशा में अंतर नहीं है और ये दशा बदलेगी तब जब कम से कम हम अपनी कहानियों में उसे सबल रूप दे पाए, ब्रिजेश ने एक मुस्लिम चरित्र को चुना है, वो सराहनीय है, हकीकत वहीँ है आज भी जो मुजफ्फ़रपुर में होता है और उसके लिए सत्ताधारी जिम्मेदार है ! अनघ की कहानी में धीमरी का चरित्र अच्छा है और उनकी कहानी शिल्प की दृष्टि से भी सफल रही !
अंत में आये अनुराग त्रिवेदी जी और अतुल जी की लघुकथा में उन्होंने अपनी बात बहुत सही ढंग से कही, तो दोस्तों आयोजको के लिए मेरी बधाई उन्होंने जगह बहुत अच्छी चुनी है, लतांत प्रसून जी गाँधी जी के बहुत बड़े दीवाने है इसीलिए राजघाट के पास उन्होंने ये जगह चुनी संगोष्ठी के लिए, गांधीवादी संस्थाओ को जितना बेहतर लतांत प्रसून जी ने लिखा किसी और ने नहीं लिखा है, आपने और अतुल प्रभाकर जी ने मुझे बुलाया मैं हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ !...........किरण आर्य

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