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सन्निधि संगोष्ठी में आप सभी का स्वागत एवं अभिनन्दन।

Saturday, 19 October 2013

सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट : माह (अक्टूबर - २०१३)

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 07
विषय : व्यंग रचनाएँ
माह : अक्टूबर
दिनाँक : 19 - अक्टूबर - 2013
 
नमस्कार मित्रो 19 अक्टूबर को सन्निधि की सांतवी संगोष्ठी जो व्यंग रचनाओं पर आधारित रही सफलता पूर्वक संपन्न हुई, इस गोष्ठी में अध्यक्ष के तौर पर व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय जी मुख्य अतिथि के तौर पर दिल्ली नगर निगम के सहायक आयुक्त और साहित्यकार सुरेश यादव जी और फिल्मकार राजीव श्रीवास्तव जी हमारे बीच में रहे, उनके साथ आदरणीय कुसुम शाह दी, अतुल जी प्रसून जी, अतुल जी की धर्मपत्नी अनुराधा जी, अनीता दी, उनके पतिदेव, राजीव तनेजा, संजू तनेजा, कामदेव शर्मा, बबली वशिष्ठ, अजय अज्ञात जी, प्रभु नारायण जी, सुरेन्द्र मोहन जी, चेतन नितिनराज खरे, अभिषेक कुमार झा अभी, मित्र शोभा मिश्रा उनके पतिदेव, संजय कुमार गिरी, मेरी प्यारी सखी सरिता दास उनके पति रविन्द्र के दास जी, तंवर जी, और कुछ अन्य मित्रो ने भी इस आयोजन में शिरकत की.........
आयोजन की शुरुवात लतांत प्रसून जी ने अपनी चिरपरिचत मुस्कान के साथ अतिथियों के लिए दो शब्द कहकर की, उसके बाद अतुल जी ने स्वागत भाषण दिया और किरण आर्य को सञ्चालन के लिए आमंत्रित किया, मंच पर जिन मित्रो की रचनाये आई उनमे ......हमारे मुन्ना भाई अविनाश वाचस्पति जी, सीत मिश्रा, सुशील जोशी, नीरज द्विवेदी, रचना आभा, राजीव तनेजा, शिवानन्द सहर, राजेंद्र कुंवर फरियादी, रेनू रॉय, कौशल उप्रेती और सरिता गुप्ता जी रहे !

इसके पश्चात् फिल्मकार राजीव श्रीवास्तव जी ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा मैं एक फिल्म फेस्टेवल करने जा रहा हूँ नव यथार्थवाद न्यू रेअलेस्टिक सिनेमा, जिसका फिल्म जगत पर बड़ा इम्पैक्ट रहा है,सत्यजीत रे ने फिल्म दा बाइसिकल देखि और यथार्थवादी सिनेमा की नीव रखी उन्होंने सोचा इसी तरह की फिल्म बनायेंगे उसके बाद विमल राय ने उससे प्रेरित हो दो बीघा जमीन जैसी लोकप्रिय फिल्म बनाई, और वहीँ से शुरुवात हुई हिंदी सिने जगत में वास्तविक जीवन को सिनेमा से जोड़ने की, जहाँ किरदार आये सड़क से उठकर सामने ! फिल्मांकन में यथार्थवादी बहुत सी संभावनाए है और संभावना है की साहित्य फिल्म जगत से जुड़े !

इसके पश्चात् दिल्ली नगर निगम के सहायक आयुक्त और साहित्यकार सुरेश यादव जी ने अपना वक्तव्य दिया, सुरेश जी ने कहा चाहे व्यंग्य रचना हो कहानी हो या कविता वो एक रचनाकार का शौक नहीं हो सकता है, जब कोई व्यक्ति कहता है की रचना लिखना मेरा शौक है तो मुझे वाकई शॉक लगता है, ये एक साधना का ही परिणाम है, ये अलग बात है की रचना कभी बहुत गहरी तो कभी विकट और विकराल होती है, उनमे व्यक्ति का पूरा जीवन भी लग जाता है लेकिन रचना रचना ही होती है छोटी बड़ी नहीं होती है, सभी ने छोटी रचनाये लिखी होती है, उनकी साधना उन्हें बड़ी रचनाओं तक पहुचाती है, बड़े रचनाकार होना और ख्यातिप्राप्त होना दो अलग बात है, कई बार दोनों बात हो जाती है तो सोने पर सुहागा हो जाता है लेकिन प्राय ऐसा होता है जो बड़े अच्छे रचनाकार होते है वो शांत रहकर ख्यति में बहुत पीछे रह जाते है और जो रचनाकार हलके और थोड़े से उथले होते है वो प्रयासरत अधिक होने के कारण ख्यति में आगे निकल जाते है, लेकिन कालांतर में होता ये है केवल रचना ही बचती है जो ख्यति का कारण बनती है, रचना ही बचती है जो आपके व्यक्तित्व का निर्माण करती है, और रचना ही बचती है जिसे लोग याद करते है ! सभी प्रतिभागियों ने अच्छी रचनाये पढ़ी लेकिन मैं चाहता हूँ आप और गहरे डूबे और जब तक कोई रचना संवेदना के किसी एक बिंदु पर घनीभूत नहीं होती है स्थाई प्रभाव नहीं डालती है, अपने प्रयास को एक अच्छी रचना में तब्दील करना एक साधना है कौशल है जो स्वत ही आता है, मैं अतुल जी के प्रयास को नमन करता हूँ उन्होंने विष्णु जी को याद करने के लिए सही जगह चुनी है और आप सभी को अपनी शुभकामनाये प्रेषित करता हूँ !

इसके पश्चात् गोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ व्यंग्यकार साहित्यकार प्रेम जनमेजय जी ने अपना वक्तव्य दिया ! प्रेम जी ने कहा वो सभा निश्चित रूप से बहुत अच्छी होती है गुणवता पूर्ण होती है, जिसमे प्रबुद्ध लोग भागीदारी करते है मैं आभारी हूँ अतुल जी का उन्होंने मुझे अवसर प्रदान किया ऐसे आयोजन का हिस्सा बनने का, आजकल का समय अवसाद पूर्ण है और ऐसे में जब ऐसी रचनाये आती है सामने जो संवेदनाओं को छूती है अपने एकांकीपन में जब आप ऐसी रचनाये सुनते है जो मन को छूती है तो बल मिलता है आज इस तरह की गोष्ठियों आयोजनों की बहुत आवश्यकता है, आज हमारे समाज से हमारे बीच से जो गायब हो रहा है वो है संवाद और जिसके चलते फेसबुक जैसी प्रिंट मिडिया साईट वजूद में आ रही है जहाँ प्रतिक्रिया तुरंत मिलती है, आजकल जहाँ समय नहीं है अपने विषय में सोचने का वहीँ दुसरो के विषय में सोचना बड़ी बात है जो अतुल जी कर रहे है, बधाई देता हूँ आभार प्रकट करता हूँ ! साहित्य में खुद ही दिशा ढूंढ रहा हूँ, आज जो रचनाये मैंने सुनी उनके विषय में कुछ सामान्य बातें मैं कहना चाहूँगा रचना को पढने के साथ एक चीज अपने आप जुडती है वो है परफोर्मिंग आर्ट पढ़ना मंच पर भावो को संप्रेषित करना एक कला है कहाँ रुकना है कहाँ प्रभाव छोड़ना है जितने भी रचनाकार पढ़ रहे है उन्हें सुधारना है! वर्तमान को देखने की शक्ति युवाओं के पास है, नई तकनीक का प्रयोग अविनाश वाचस्पति की रचनाओं में देखने को मिलता है, युवा दृष्टि आपके पास है और परिपक्वता मेरे पास, बाधित दृष्टिकोण धृतराष्ट्र दृष्टिकोण है युवा आज के बहुत अच्छा लिख रहे है, अपनी पत्रिका में युवाओं की ५४ रचनाये हमने रखी है ! युवा सोच जरुरी नहीं अपरिपक्व हो ! हास्य और व्यंग में जमीन आसमां का अन्तर है हास्य आदि मानव से आरम्भ हुआ है और व्यंग्य समाज का हथियार है, व्यंग्य प्रहार करता है हास्य रस देता है दोनों का उपदेश्य अलग होता है ! आज के सन्दर्भ में कहे तो हास्य का अश्लीलीकरण हो गया है, आपको स्तर बनाना है उसे गिराना नहीं है, व्यंग्यकार मिथ को तोड़ता है, फंतासी का प्रयोग अपनी रचना में अविनाश ने कुशलता से किया, उन्होंने सभी रचनाकारों से आग्रह किया की अपनी रचना को तत्कालिता में मत बांधिए ! अपनी समय की राजनैतिक विसंगतियों पर प्रहार करना अलग बात है, आप लिख क्या रहे है ये बड़ी चीज है, और विवशता पर व्यंग्य ना करे कभी ! इसी के साथ सभी रचनाकारों का हौसला बढाते हुए और शुभकामनाये देते हुए उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया !
और अंत में अतुल जी ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए आयोजन समाप्ति की घोषणा की !

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (07-12-2013) को "याद आती है माँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1454 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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