सन्निधि संगोष्ठी अंक : 06
विषय : लघु कथा एवं हिंदी कविता
माह : सितम्बर
दिनाँक : 21 - सितम्बर - 2013
नमस्कार मित्रो इस बार सन्निधि की मासिक गोष्ठी २१ सितम्बर को संपन्न हुई, ये संगोष्ठी लघुकथा और हिंदी कविता पर आधारित रही, और इस गोष्ठी में वरिष्ठ कवियत्री और साहित्यकार अनामिका जी ने अध्यक्ष के तौर पर और गिलियन राईट जी जो पिछले चालीस सालो से भारत में रहकर हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए कार्य कर रही है, ने मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की, बारिश होने के बाबजूद हमारे बहुत से मित्र इस आयोजन में सम्मिलित हुए जिनमे कुसुम शाह दी, बीना हांडा जी उनके पतिदेव, नरेन जो मेरे प्रेरणा स्त्रोत है अतुल जी की धर्मपत्नी अनुराधा जी जो हर कदम पर होती है उनके साथ खड़ी बबली वशिष्ट, आरती शर्मा, कामदेव शर्मा जी, संजय गिरी और भी कुछ मित्र जिनके नाम मुझे याद नहीं है, सम्मिलित हुए !
सबसे पहले लतांत प्रसून जी ने अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ उपस्थित मित्रो का स्वागत किया और गिलियन राईट के विषय में बताया और अतुल जी को आमंत्रित किया स्वागत वक्तव्य के लिए अतुल जी ने सभी का स्वागत करते हुए मंच सञ्चालन के लिए मुझे आमंत्रित किया और इस तरह गोष्ठी का सुभारम्भ हुआ .....सबसे पहले अरुन रूहेला ने "रिश्ता" सुशिल कुमार जी ने "बाँझ" और किरण आर्य ने "आत्महत्या" अपनी लघुकथा सुनाई उसके बाद अरुन शर्मा, चेतन खरे, अभिषेक कुमार झा, नवीन कुमार और जनेंद्र जिज्ञासु ने अपनी कविताएं सुनाई उसके पश्चात् हमारे अतिथि कवि श्री राजेंद्र राजन जी जो जनसत्ता में सहायक संपादक है उन्होंने अपनी कुछ प्रतिनिधि रचनाये हम सभी के समक्ष रखी उनकी कविताएं आम आदमी से जुडी और मानवीय संवेदनाओं को गुनती नज़र आई, लतांत प्रसून जी ने कहा की राजन जी की कविताएं आंखें खोलती है और वयक्तिक चिंतन को दर्शाती है !
इसके पश्चात् हमारी मुख्य अतिथि गिलियन राईट जी ने अपना वक्तव्य दिया ....सबसे पहले उन्होंने सबको धन्यवाद दिया, उन्होंने कहा मैं खुशनसीब हूँ जो इस आयोजन में शिरकत कर रही हूँ, गिलियन जी ने राजेंद्र जी की कविता जो तालिबान पर थी उसके विषय में बात करते हुए प्राचीन तालिबान जिसे बामियान कहा जाता था, के स्वरुप की भी चर्चा की, बामियान के विषय में बाते करते हुए उन्होंने कहा की उनके एक मित्र जो वहां जाते रहते है उन्होंने बताया की वहां बुद्ध की जो विशालकाय प्रतिमा थी उसे अलकायदा आतंकियों ने उड़ा दिया जबकि वहां के पठान उसे तोडना नहीं चाहते थे और बामियान को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना चाहते थे लेकिन उसके बाद भी धूल से बनी उस प्रतिमा की छवि आज भी वहां विराजमान है, जिसे देख आभास होता है की जैसे साक्षात् बुद्ध खड़े है वहां, गिलियन जी ने बामियान जाने वाले एक दोस्त के हवाले से कहा अब वहां खुदाई हो रही है जिसमे बुद्ध के और भी मूर्तियाँ मिल रही है, उन्होंने कहा हर ख़राब काम का एक अच्छा पक्ष होता है, और सब ख़त्म होने पर भी उम्मीद सब लौटा जाती है ! गिलियन जी ने बताया की मैं पेशे से एक अनुवादक हूँ जब मैंने अनुवाद करना शुरू किया तो हिंदी से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद करने वाले अधिक लोग नहीं थे, लेकिन आज ये पाठ्यक्रम में शामिल है! आज से चालीस साल पहले स्टूडेंट बीजा पर यहाँ आई और यहीं की होकर रह गई मैं एक नदी में बहने वाली लहर हूँ जो चलती रही हूँ ! उन्होंने मिस्टर मैग्रेवा के विषय में बताया जिन्होंने ३३ साल हिंदी पढाई केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में, मिस्टर मैग्रेवा के विषय में उन्होंने बताया न्यूजीलेंड प्रवास के दौरान मैग्रेवा जी को एक फिजीयन द्वारा लिखा हिंदी शब्दकोष मिला उन्होंने उसे पढ़ा और वहीँ से हिंदी के प्रति उनका रुझान शुरू हुआ, इसके बाद हिंदी से अंग्रेजी शब्दकोष उन्होंने लिखा पिछले माह मिस्टर मैग्रेवा नहीं रहे और इसीलिए मैं इस गांधीवादी माहौल में उन्हें मैं याद कर रही हूँ !
इसके पश्चात् अनामिका जी ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा मैं इस सभागार में रखी अलमारियों में रखी किताबो इस पुराने ढंग की दरी इस पुरे परिवेश को जिसे कुसुम शाह बेन ने अपने आँचल तले संभल कर रखा, एक स्त्री ही इतने मनोयोग से इसे सभाल सकती है, अपने परिवार से परे एक परिवार के रूप में, लोग आयेंगे जुड़ेंगे मशाल जायेगी एक हाथ से दुसरे हाथ में इसे देख रही हूँ मैं साक्षात् ! धरती के आँगन में घड़े का पानी जो देता है ओज धंस रहा है भीतर कहीं हमारी संस्कृति का पानी और लघुकथा के साथ कविताएं कैसे भारती प्राण उसमे ये देखा हमने, उन्होंने कहा आधुनिक साहित्य के बीच की तारम्यता टूट रही है गध और पद्य के बीच की दूरी पाटती कविता निजी संवेग मन की दीवारों पर चटाई का काम करती है इस खुशनुमा शाम को लाल सलाम कहती हूँ मैं !
अनामिका जी ने अरुण रूहेला की कहानी रिश्ता पर बात करते हुए कहा एक पेप्सी की बोतल सस्ती हो गई आज विकास की विडंबना है ये जो एक छलावा मात्र है छलावो के स्तर है अनेक, भिखारी का कटोरा और पेप्सी की बोतल एक झपाके में एक चित्र होता है खड़ा, उसके बाद सुशिल कुमार की कहानी बाँझ के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा न्याय और क्षमा दो बड़े भाव है मार्क्स ने न्याय और बुद्ध ने क्षमा की बात की, बाँझ कहानी दर्शाती है नए पुरुष की नई समझ, किरण आर्य की कहानी आत्महत्या के बारे में उन्होंने कहा स्पर्श की गंध अलग अलग होती है एक ऐसे स्पर्श की गंध जो बिना प्रेम के रिश्ते से आती है ठीक वैसे ही होती है जैसे मुर्दे के जलने की गंध हो, मृत्यु और जीवन हाथ बांध खड़े होते है, उन्होंने कहा आज मंच पर जो कविताएं आई उनमे भाविक उर्जा थी, पहले ९ रस अलग अलग रचे जाते थे आज सभी रस गडमड पड़े है जहाँ आधुनिक कविता वहीँ जन्म लेती है, उन्होंने कहा यहाँ चारो और कविताओं के पोस्टर लगाये जाने चाहिए कविता की समझ को एक पानी का घड़ा मिल जाएगा ! राजेंद्र जी की कविताओं के विषय में बात करते हुए अनामिका जी ने कहा की जहाँ उनकी पहली कविता गर भ्रम देती है मैं और वो का तो दूसरी उस भ्रम को तोडती है, राजन जी की बुद्ध की कविता में एक सुनहरा खाका सा रह जाता है आँखों के सामने ! हम अतिरेक में जीते है अतिरेक हमें अति पुरुष और अति स्त्री बना देता है, कविता में इतना दमखम होता है कि मन में कुछ ना कुछ ठहर जाता है गर हम अपनी स्मृतियों में गलबहियां डाले बैठे तो सीख सकते है बहुत कुछ, और इसके बाद अंत में इस तरह के आयोजन के महत्व और उनमे सम्मिलित होने की अपनी चाहत के साथ उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया !
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