सन्निधि संगोष्ठी अंक : 05
विषय : काव्य
माह : अगस्त
दिनाँक : 17 - अगस्त - 2013
नमस्कार मित्रो शनिवार 17 अगस्त को सन्निधि की पांचवीं गोष्ठी जो काव्य पर आधारित रही सफलतापूर्वक संपन्न हुई ....इस संगोष्ठी की अध्यक्ष्ता वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक श्रीमती निर्मला जैन जी ने की ......
अतिथि कवियों के तौर पर जनसत्ता के सहायक संपादक अनुराग अन्वेषी जी, लंदन से वरिष्ठ पत्रकार एवं कवयित्री शिखा वार्ष्णेय और लेडी श्रीराम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष और कवयित्री डॉ वर्तिका नंदा जी ने शिरकत की .....उनके अलावा मंच पर आने वाले प्रतिभागियो में कमला सिंह, संजय कुमार गिरी, विनय विनम्र, सुशीला शिरोयन, सरिता भाटिया, बबली वशिष्ट, किरण आर्य, राधा कृष्ण पन्त, बेबांक जौनपुरी और डॉ सुरेश शर्मा जी रहे ....
इस आयोजन में गाँधी हिंदुस्तानी सभा के मंत्री कुसुम शाह दी, विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार जी, जनसत्ता के वरिष्ट पत्रकार लतांत प्रसून जी, नंदन शर्मा जी, अतुल जी की पत्नी आराधना जी, इंदु शर्मा जी, लीना मल्होत्रा, अलका सिंह, अलका भारतीय, उर्मी धीर, संजू तनेजा, राजीव तनेजा, बलजीत सिंह, राहुल राही, डॉ दिनेश कुमार, अभिषेक कुमार झा, संजीव चौहान, अंसार अली, अनीता अग्रवाल, उनके पतिदेव एम् के अग्रवाल, नीलम मेदीरता, अरुण सिंह रूहेला, राहुल रूहेला, कामदेव शर्मा, रेनू रॉय, किरण कुमारी, रूबी कुमारी, वी के बॉस, शालिनी रस्तोगी, धीरज कुमार, बीना हांडा जी, शिवानंद द्विवेदी, राजेंद्र कुंवर फरियादी, अरुण अनंत शर्मा, सुशील जोशी, अरविन्द जी, और अन्य कई मित्रगन सम्मिलित रहे !
आयोजन की शुरुवात अतुल जी ने अपने वक्तव्य से की, जिसमे उन्होंने सभी उपस्थित मित्रो का स्वागत करने के साथ आयोजन के नियमो पर भी अपनी बात रखी, उसके पश्चात प्रसून जी ने अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ आयोजन का शुभारम्भ करते हुए निर्मला जैन जी के विषय में बताते हुए कार्यकर्म की कमान किरण आर्य को सौंप दी ....
सभी मित्रो ने अपनी कविताओ के द्वारा मन मोह लिया ! अतिथि कवियों में अनुराग जी ने अपनी दो कविताएं सुनाई, फिर लन्दन से आई शिखा जी की पुस्तक "मन के प्रतिबिम्ब" का विमोचन किया गया, और शिखा जी ने अपनी रचनाओं के द्वारा सबके मन को छू लिया, बहुत ही सरल सहज और हँसमुख है शिखा, वर्तिका जी ने अपनी रचना के द्वारा बहुत ही सटीक ढंग से अपनी बात कही ! उसके पश्चात निर्मला जैन जी ने जो आयोजन की अध्यक्ष थी, अपना वक्तव्य दिया .... निर्मला जी ने कहा मुझे बेहद ख़ुशी है ये आयोजन एक ऐसा स्थल है जहाँ सब लोग मिल बैठ कर अपने भाव साझा कर रहे है, वर्ना तो लोगो की व्यस्तताएं इतनी बढ़ गई है की ऐसे अवसर कम ही मिल पाते है ....यहाँ उन लोगो की रचनाये सुनने को मिली जिन्होंने अभी कलम उठाई है, कविता के प्रति जो समर्पण जरुरी है वो यहाँ देखने को मिला ! आप नियमित रूप कविता सुन रहे है दाद दे रहे है जो प्रसंशनीय है ! मुझे याद आ रहा है पहले के समय में एक शनिवार समाज बनाया गया था जिसमे छोटी के साहित्यकार से लेकर युवा साहित्यकार तक सभी एकत्र होते थे, और उन्होंने जो ऊँचाइयाँ पाई वो इस शनिवार समाज की ही दें रही ! निर्मला जी ने ये भी कहा की झूठी शाबाशी देने से बखिया उधेड़ना ज्यादा सही है, उसके लिए मंच की जरुरत नहीं होती है, झूठी तारीफ़ सबसे खतरनाक सिद्ध होती है, उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए नए रचनाकारों के लिए .....
जो लोग रचना करते है वो केवल लिखे ही नहीं अपितु दूसरो को पढ़े भी, दूसरा आपने किसी विषय पर जब लिखा तो केवल लिखा ही या उसपर चितन भी किया आपने किसी समस्या को रखा तो उसका हल भी सोचा या सिर्फ समस्या लिखने भर से कर्तव्य पूरा हुआ, केवल उतेजित होने भर से काम नहीं चलता है, एक व्यक्ति के कर्तव्य भी निभाये ! अब तक क्या किया क्या जिया ये जरुर सोचे ! आज अजनबीपन बढ़ रहा है इस कदर की पडोसी को पडोसी की खबर नहीं !
निर्मला जी ने कहा की इन पैरो से पूरी धरती नापी है लेकिन कभी अपने भारतीय होने पर शर्म नहीं आई, हमारी जीवन शैली में बहुत कुछ ऐसा है जो और कहीं नहीं मिलता है, अंग्रेजी एक भारतीय से अच्छी कोई और नहीं बोल पाता है, उन्होंने बताया उनके अमरीकी प्रवास के दौरान बहुत सी अमरीकन स्त्रियाँ कहती थी कि आपकी अंग्रेजी बहुत अच्छी है, तो मैंने मुस्कुरा के कहा हमने अंग्रेजी आपसे नहीं ब्रिटिशर्स से सीखी है, उन्होंने कहा अपने ऊपर गर्व करना सीखें ! साहित्य पर जो लिखा जा रहा है उसपर ध्यान दें आपने जो लिखा दूसरे जो लिख रहे है उसपर ध्यान दें ! पुरे समाज में एक खास तरह की संवादहीनता आ रही है जो दूर होना जरुरी है ! कविता को अच्छी तरह सुनाना सबसे जरुरी है और आपके पढने का ढंग प्रभावी होना चाहिए इन दोनों में फर्क करना सीखे, उन्होंने याद करते हुए कहा लालकिले का कवी सम्मलेन मैंने देखा है, जहाँ लाखो की भीड़ उमड़ा करती थी अपने पसंदीदा रचनाकारों को सुनने के लिए, अशोक चक्रधर मेरा शिष्य है जो गंभीरता के साथ दो मिनट में भीड़ जुटा सकता है, और अंत में उन्होंने कहा कि रचनाओं में फर्क करना सीखे एक पर दाद दें और दूसरे पर विचार करे इसके साथ ही सभी को शुभकामनाये देते हुए उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया !
संजीव चौहान जी के प्रति हम सभी विशेष आभार प्रकट करते है जिन्होंने क्राइम वॉरियर यू टूब पर आयोजन के विडियो @YouTube playlist http://t.co/HxITFS9m4Y अपलोड किये!
सन्निधि का अगला आयोजन लघु कथा और कविता पर आधारित रहेगा !
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