सन्निधि संगोष्ठी अंक : 12
दिनाँक / माह : 22 , मार्च 2014
विषय : विभिन्न विषयों पर आधारित
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नमस्कार
मित्रो दिनांक 22 मार्च 2014 को सन्निधि की बारहवीं संगोष्ठी सफलता पूर्वक
संपन्न हुई, संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार कथाकार अजय नावरिया
जी ने की, मुख्य अतिथि के तौर पर क्षमा शर्मा जी हमारे साथ रही और इसके
अतिरिक्त विशिष्ट अतिथि के तौर पर डॉ. सुरेश शर्मा, नरेंद्र भंडारी जी
हमारे बीच रहे, और उनके साथ अतुल प्रभाकर जी, लतांत प्रसून जी, कुसुम शाह
दी, अनुराधा प्रभाकर, अनीता प्रभाकर, अर्चना प्रभाकर जी और उनके पतिदेव,
आदरणीय गंगेश गुंजन जी, नंदन शर्मा जी, राजीव तनेजा जी, उनकी धर्मपत्नी
संजू तनेजा जो एक अच्छी सखी भी है और हर संगोष्ठी का हिस्सा होती है, केदार
नाथ जी जो हर गोष्ठी में श्रोता तौर पर शिरकत करते आये है, प्यारी सखियाँ
सुनीता शन्नो जी, अंजू शर्मा और वंदना गुप्ता, सरिता भाटिया दी, प्यारी
सुमन जान्हवी, मेरे जीवन का अभिन्न अंग मेरे पतिदेव नरेन् आर्य, छोटी बहन
संगीता शर्मा, बीना हांडा जी, महाखबर अखबार से सुधाकर सिंह, विवेक रॉय,
गौरव गुप्ता, भाई राजेंद्र कुंवर फरियादी, सरोज जोशी, डॉ सुरेश शर्मा जी की
धर्मपत्नी, सखी नेह सुनीता उनकी माँ, और अन्य कई मित्र इस आयोजन का हिस्सा
रहे.......
यह सन्निधि की बारहवीं संगोष्ठी थी, इसीलिए
इसमें अभी तक मंच पर आई सभी विधाओं को समाहित किया गया, जिसमे कविता, गीत,
ग़ज़ल, हायकु, कहानी, लघुकथा, क्षणिका, मुक्तक, व्यंग और दोहे सभी का समावेश
देखने को मिला, मंच पर आने वाले रचनाकारों में भाई सुशील जोशी (गीत), शिखा
सिंह (कहानी), सीमा अग्रवाल दी, जो कोरबा से है (गीत), भाई अरुन शर्मा
(ग़ज़ल), डॉ आरती स्मित (कविता), राजीव तनेजा (व्यंग), गुंजन गर्ग अग्रवाल
(हायकु), भाई नीरज द्विवेदी (क्षनिकाए), पी के शर्मा (व्यंग और मुक्तक),
मुन्ना भाई यानी अविनाश वाचस्पति (व्यंग), किशोर कौशल जी (दोहे) और सुमन
जान्हवी (लघु कथा) लेकर मंच पर आये !!
संगोष्ठी की
शुरुवात जनसता के वरिष्ट पत्रकार और सन्निधि के आधार स्तंभ लतांत प्रसून जी
ने अपनी चिर परिचित उर्जावान मुस्कान के साथ की......प्रसून जी की
जिन्दादिली और उर्जाशीलता हम सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है, दो शब्द कहने
के पश्चात् प्रसून जी ने सन्निधि संगोष्ठी की रीढ़ की हड्डी और हम सभी के
मार्गदर्शक अतुल प्रभाकर जी को स्वागत भाषण के लिए आमंत्रित किया.......
अतुल
जी ने अपने वक्तव्य में मंच आसीन सभी सुधिजनो और संगोष्ठी का हिस्सा बने
सभी मित्रो का स्वागत करते हुए कहा कि राजधानी दिल्ली में ऐसे भी लेखक समूह
हैं जो पिछले तीस सालों से लगातार मासिक संगोष्ठी करते आ रहे हैं। उनके
सामने हम लोगों की उपलब्धियां बहुत कम हैं, अपार हर्ष हो रहा है, सन्निधि
आज अपनी बारहवीं संगोष्ठी कर रही है ......और इसके बाद उन्होंने संगोष्ठी
की शुरुवात करने हेतु किरण आर्य को मंच पर आमंत्रित किया......
संगोष्ठी
की संयोजक किरण आर्य ने मंच संचालन के साथ सभी विधाओं में अपने भाव मंच से
रखे और सादत हसन मंटो जी की एक लघु कथा भी उन्होंने मंच से सुनाई
और मंच पर हर विधा से रचनाकारों को अपने भाव रखने हेतु आमंत्रित किया.....
इसके
पश्चात् विशिष्ट अतिथि नरेंद्र भंडारी जी ने अपने वक्तव्य में कहा मैं कोई
साहित्यकार नहीं हूँ एक पत्रकार हूँ और इस आयोजन का हिस्सा बनना मेरे लिए
सुखद एहसास रहा बहुत, हम पत्रकार हमेशा कटघरे में खड़े नज़र आते है, लेकिन
फिर भी चरवेती सिद्धांत पर अमल करते हुए करते है अपने कर्तव्य का निर्वाह
सतत उसी प्रकार आप सभी के ये प्रयास सफल रहे और रंग लाये !
डॉ सुरेश
शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में कहा आज की गोष्ठी में कुछ भाव और व्यंग बहुत
बढ़िया थे, सन्निधि की इस उपलब्धि पर मैं अतुल जी और सन्निधि के सभी सदस्यों
को बधाई देता हूँ, उसके पश्चात् उन्होंने अपनी एक ग़ज़ल और दो कविताएं
सुनाई, जिनमे उनकी कविता दुमकटी ने दिल पर एक अलग छाप छोड़ी !
इसके
पश्चात् संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करने वाली क्षमा शर्मा
जी जो नंदन की पूर्व अध्यक्ष रह चुकी है, और अभी भी बहुत सी सामाजिक
संस्थाओ के साथ जुडी है, ने अपना वक्तव्य दिया, क्षमा जी ने अपने वक्तव्य
में कहा, सभागार में उपस्थित इतने सारे रचनाकारों को एक साथ देखकर मैं
स्तब्ध हूँ, मैं साधुवाद देती हूँ किरण आर्य को उन्होंने सभी विधाओं में
हाथ आजमाया है, उन्होंने कहा सुशील जोशी ने राधा के गाल से गुलाल लेने की
बात कही, तो भाई साहब गोरा करने की क्रीम बनाने वालो ने सुन लिया तो पीछे
पढ़ जायेंगे, शिखा सिंह की कहानी स्त्रियों की उस मानसिकता को दर्शाती है,
जो सुविधाओं का गलत उपयोग करने की भावना को बखूबी दर्शाती है, स्त्री के
व्यक्तित्व में जो नकारत्मक है आज स्त्री उसे लिख रही है, वो सराहनीय है,
मैं बधाई देती हूँ आप सभी को आपके प्रयासों और सृजनशीलता के लिए ! उन्होंने
कहा मुख्य अतिथि की भूमिका बेटी को विदा करने वाले जैसी होती है, किसी की
अधिक तारीफ कर दी तो दुसरो को लगता है हमारी तो बखिया उधेड़ दी और इस पर
इतनी मेहरबानी क्यों, तो मैं सभी रचनाकारों को स्नेह आशीष देती हूँ !
उनके
वक्तव्य के पश्चात् प्रसून जी अध्यक्ष महोदय को बुलाते हुए कहा आज की
गोष्ठी में वट वृक्ष वल्लभ डोभाल जी अगर हमारे बीच नहीं आ पाए तो, तुलसी
पौधे के रूप में अजय नावरिया जी का हमारे बीच होना भी एक सुखद एहसास है !
अजय
नावरिया जी जो दलित लेखक संघ के अध्यक्ष है, उन्होंने अपने वक्तव्य में
कहा, मैं आप सभी को बधाई देता हूँ एक सफल संगोष्ठी की, फेसबुक ने इतना सरल
कर दिया है, हम सभी आज चेहरे से एक दुसरे को पहचानते है, आज यहाँ एक तरफ नए
रचनाकार है तो दूसरी तरफ पी के शर्मा जी और अविनाश वाचस्पति जी जैसे मंजे
रचनाकार भी है, जो नए है वो नएपन को ओढे है और जो पुराने है वो अनुभव के
पिटारे के साथ, अविनाश जी को सामने देखकर एक विचार आया हमें अपनी विधा को
पहचानना होगा, और अगर हम देर करते है तो बहुत कुछ पीछे छूट जाता है, पहले
मैं कविताएं लिखता था, आज जब उन कविताओं को देखता हूँ तो लगता है कितना
बचकाना है वो सब, फिर कहानियां लिखना शुरू किया तो लगा हाँ यहीं है मेरी
विधा, हम लिखते है, तो केवल लिखने भर के लिए नहीं उसके साथ समकालीनों को
पढना भी आवश्यक है, जरुरी है हम परम्परा और समकालीनों को पढ़े, आपको
प्रशिक्षण की जरूरत है समय को बदलना है तो खुद को पहचानना होगा, आप सभी ने
कुछ हद तक तो मुझे अभिभूत किया ही, बाकी सतत प्रयास ही आगे बढ़ने की कुंजी
है !
प्रसून जी ने कहा की नावरिया जी का कुछ हद तक
अभिभूत होना संगोष्ठी की सफलता का घोतक है, बढ़ते हुए पौधों को काटा नहीं
जाता है, हम लकड़हाडे नहीं माली है, वरिष्ठ साहित्यकारों को हमारे बीच
बुलाने का ध्येय ही ये है की उनके अनुभवों से नए रचनाकार कुछ सीख पाए !
अंत
में नंदन शर्मा जी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और साथ ही ये भी कहा हर समय ये
होता आया है जो नए रचनाकार आते है अगर उन्हें बहुत अधिक क्रिटिसाइज कर दिया
जाए तो वो भाग जाते है, निराश हो जाते है, तो हमें उन्हें भगाना नहीं उनकी
हौसला अफ़जाई करना है !..............
प्रस्तुतकर्ता : किरण आर्य
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