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सन्निधि संगोष्ठी में आप सभी का स्वागत एवं अभिनन्दन।

Tuesday 16 September 2014

सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : जुलाई २०१४

सन्निधि संगोष्ठी अंक : 16
दिनाँक / माह :  19 जुलाई 2014
विषय :   कहानी
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नमस्कार मित्रो दिनांक 19 जुलाई 2014 को सायं 5.00 बजे से राजघाट 1 जवाहरलाल नेहरु मार्ग, अम्बेडकर स्टेडियम के समीप गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा के सन्निधि सभागार में कहानी पर आधारित सन्निधि संगोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न हुई, गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसम शाह के सानिध्य में आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता भाषाविद नारायण कुमार जी ने की, और मुख्य अतिथि के तौर पर नाटककार और कहानीकार असगर वजाहत साहब हमारे बीच उपस्थित रहे !

अतिथियों, प्रतिभागियों और श्रोताओं का स्वागत भाषण विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार ने किया, अतुल जी ने अपने वक्तव्य में कहा सन्निधि अब तक सफलता पूर्वक मासिक गोष्ठी करती आई है अब जरूरत है हम भविष्य में होने वाली गोष्ठियों की दिशा बदले, गोष्ठी किसी विषय वस्तु पर केन्द्रित हो, उसमे विधा का बंधन ना हो, विषय वस्तु प्रमुख रहे, अगर हम हिंदी के अलावा अन्य प्रदेशों की भाषाओं को लेकर भी चले तो हम सार्थक प्रयास कर पायेंगे!

कार्यक्रम का संचालन प्रसून लतांत और किरण आर्या ने किया। गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान की ओर से आयोजित होने वाली इस बार की संगोष्ठी कहानी विधा पर केंद्रित थी और इसमें चार नए रचनाकारों ने अपनी-अपनी कहानियों का पाठ किया। संगोष्ठी में जाह्नवी सुमन की ‘अपना घरौंदा’, अनघ शर्मा की ‘चीनी मिट्टी रेशम पानी’, शोभा रस्तोगी की ‘डायन’ और राजीव तनेजा की ‘अलख निरंजन’ चार अलग तरह की कहानियां पढ़ी गई !

इस संगोष्ठी में गाँधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह जी के साथ अतुल प्रभाकर, लतांत प्रसून, आराधना प्रभाकर, अनीता प्रभाकर, सोमा विश्वास, राजीव तनेजा, रचना आभा, वी के बोंस, उर्मिला माधव दी, विवेक रॉय, नीरव कुमार, रुपेश कुमार, अशोक झा, परीक्षित नारायण सुरेश, अरुन कुमार, शिवानंद सहर द्विवेदी, बीना हांडा, राजेन्द्र कुंवर फरियादी, वीरेंद्र सिंह, इंदु कड्कल, निर्मल कान्त, अटल गाँधी जी के साथ अन्य कई मित्र शामिल रहे !

इसके पश्चात् असगर वजाहत जी ने अपना वक्तव्य दिया, उन्होंने कहा जितनी भी कहानियां यहाँ पढ़ी गई, और जो आयोजक है वो सब बधाई के पात्र है, वो एक ऐसे कार्य में संलग्न है जो सराहनीय है, समाज को बदलने का काम साहित्य और संस्कृति करती है, हम लोग जिस साहित्य की प्रगति में लगे है, वो जड़ों से बदलने का काम कर रहा है, उनका कहना है कि राजनीति समाज में ऊपर-ऊपर बदलाव लाता है पर साहित्य यह काम नीचे से करता है। उन्होंने समाज में बेहतर बदलाव के लिए साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों की सक्रियता की जरूरत बताई। असगर वजाहत ने कहा कि जानकारियों की लगातार बढ़ती उपलब्धता के दौर में कहानीकारों के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। उन्हें यह सोचना पड़ रहा है कि कहानी के जरिए वे अपने पाठकों को क्या देना चाहेंगे, क्योंकि बहुत-सी जानकारियां अब लोगों को विभिन्न स्रोतों से मिल जाती हैं। कहानी के शिल्प की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कहानी भाषण नहीं है। भाषण के समाहित होने से डू और डोंट के जुड़ते ही कहानी की ताकत कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि पाठक को कहानी में गैर जरूरी चीजों में नहीं अटकाया जाना चाहिए। उन्होंने नए रचनाकारों से कहा कि केवल घटना बता कर कहानी लिखेंगे तो पाठक भ्रमित हो जाएंगे। वजाहत ने कहा कि लेखक को खिलाड़ियों की तरह ही कठिन परिस्थितियों में से गेंद को निकाल कर अपने कब्जे में लेकर गोल करना होता है। लेखक को संतुलित संयम के साथ अपने लक्ष्य तक पहुंचना होता है। उन्होंने कहा कि कहानी लिखने के पहले हमें इस बात पर जरूर गौर करना चाहिए कि हमें कहानी में क्या नहीं कहना है! कहानी का औचित्य क्या है? कहानी पाठक को सोचने पर विवश करे, आज का युग सूचनाओं का युग है, सर्च इंजन से सर्च करने पर हर तरह की सूचनाये उपलब्ध हो जाती है, आप जो कहे वो किसी सर्च इंजन से ना मिले, एक कहानी जो आप लिख रहे है अपने लिए नहीं पाठकों के लिए लिख रहे है, और पाठक को बांधे रखना सबसे मुश्किल काम होता है, आपके लिए अपनी बात कहना एक कला है, बहुत से लोग सोचते है कागज़ कलम हाथ में है तो कुछ भी लिख सकते है, आपको उपदेश्य तय करना है, अपनी कहानी का, जितने संयम से आप चलेंगे उतनी क्षमता से आप अपने लक्ष्य तक पहुँच पायेंगे, पाठक को गैर जरुरी बातों में भटकाना लक्ष्य से दूर ले जाता है, इसीलिए कहानी लिखते समय हम संवेदनशील बने अच्छा लिखने का सबसे सरल माध्यम है अच्छा लिखा पढना, उसकी रौशनी में आप जान पायेंगे की अच्छा लेखन किस प्रकार किया जाता है, मुझे ख़ुशी हुई ये देखकर युवा पीढ़ी अच्छा लिखने का प्रयास कर रही है !

संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे नारायण कुमार जी ने अपने वक्तव्य में कहा, मुझे याद आता है, जब मैं पढ़ रहा था, तो उस दौरान हमारे एक मित्र बोले तुम पी एच डी कर लो, उस समय कथा की समीक्षा का कोई मापदंड नहीं था, उसी समय में धर्मवीर भारती ने धर्मयुग के नाम से एक पत्रिका का संपादन शुरू किया, और मोहन राकेश ने सरिता में "आईने के सामने" एक स्तंभ शुरू किया जिसमे उन्होंने पूछा तुम क्यों लिखते हो? तो नागार्जुन ने कहा राकेश तुम शरारती हो, तुमने मुझे आईने के सामने खड़ा कर दिया ! एक कहानी का निरूपण चार तत्व करते है, ईश्वरीय तत्व, राजनैतिक तत्व, उत्सुकता और वल्गरिटी इन सबका मिश्रण कहानी की दशा दिशा तय करता है, हिंदी कहानी में अंग्रेजी शब्दों का बहुतायात में प्रयोग कहानी के पक्ष को निर्बल कर देता है, जो शब्द आप उपयोग में लाते है, वहीँ कहानी को प्रवाह प्रदान करते है ! अपनी जो आंचलिक कहानियां है, उनमे शब्दों के पर्याय ना लिखा जाना पाठकों के लिए असमंजस की स्थिति पैदा करता है अक्सर, इसीलिए कहानी जिस भाषा में हो उसे उसी भाषा में ही लिखा जाना चाहिए ! मैं धन्यवाद करता हूँ आयोजको का जिनकी वजह से मैं असगर वजाहत जी के संसर्ग में बैठा हूँ, और एक गैर कथाकार आदमी होने के बावजूद कहानी के विषय में कह सुन रहा हूँ !

संगोष्ठी के अंत में लतांत प्रसून जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया !

प्रस्तुति : किरण आर्या

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