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Tuesday 16 September 2014

सन्निधि संगोष्ठी विस्तृत रिपोर्ट माह : अगस्त २०१४




सन्निधि संगोष्ठी अंक : 17
दिनाँक / माह :  31 अगस्त रविवार 2014
विषय :  सोशल मीडिया और लेखन

नए रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के मकसद से पिछले पंद्रह महीने से लगातार संचालित की जाने वाली संगोष्ठी इस बार ‘सोशल मीडिया और लेखन’ विषय पर केंद्रित थी। ये संगोष्ठी 31 अगस्त रविवार सन्निधि सभागार में डॉ. विमलेश कांति वर्मा, पूर्व अध्यक्ष, हिंदी अकादमी, दिल्ली, की अध्यक्षता में सफलता पूर्वक संपन्न हुई .......

स्वागत भाषण के दौरान विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल कुमार ने घोषणा की कि विष्णु प्रबाकर की स्मृति में जो सम्मान शुरू किया गया है, वह अब हर साल दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसी के साथ दिसबंर में काका कालेलकर के जन्मदिन पर भी काका कालेलकर सम्मान दिए जाएंगे।

संगोष्ठी के संचालक और वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने कहा कि सोशल मीडिया का दायरा केवल संपन्न और पढ़े-लिखे लोगों तक सीमित है लेकिन यहां संकीर्ण सोच के कारण उत्पन्न त्रासदी की चपेट में वे लोग भी आ जाते हैं, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं होता।

विषय प्रवेशक के रूप में शिवानंद द्विवेदी सेहर ने अपने वक्तव्य में कहा कि फेसबुक और ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मायने दिए लेकिन सोचनीय ये है, कि हम उस स्वतंत्रता का उपयोग कैसे करते है ? सोशल मीडिया के माध्यम से संपादक जो मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे उनके बीच से हट जाने से सीधे अपनी बात कहने और रखने की स्वतंत्रता मिली लेखक को, वो खुलकर बिना काट छांट के अपनी बात कह सकता है, सोशल मीडिया पर लेखन की शुरुआत से होने से संपादकीय नाम की संस्था ध्वस्त हो गई। लेखन उनके दायरे से मुक्त हो गया है।

वहीँ मनोज भावुक जी ने कहा कि सोशल मीडिया पर भी अनुशासन की जरूरत है, अभिव्यकित की जो आज़ादी है वो खतरा ना पैदा करे, संपादक का ना होना वरदान बिलकुल नहीं है, संपादक जब काट छांट करता है तो वो एक लेखक की कला में निखार लाता है, और यहाँ जब संपादक बीच में नहीं है तो हर व्यक्ति दो लाइन लिखकर खुद को एक लेखक या कवि की श्रेणी में रख गौरान्वित महसूस करता है, सोशल मीडिया ने जहां अभिव्यक्ति का मौका दिया है , वहीं लोग भी इसके कारण एक-दूसरे के करीब आए हैं, मैं जब युगांडा जैसी जगह में था तो अपने क्षेत्र के लोगो को ढूँढने में सोशल मीडिया ने और मैंने वहां युगांडा भोजपुरी एसोसिएशन की स्थापना की, तो जनाब ये मीडिया की ताक़त है लेकिन बात यहाँ ताक़त की नहीं नियंत्रण की है .......

अलका सिंह जी ने कहा सोशल मीडिया जहाँ स्त्रियों का शोषण करता है वहीँ शैलजा पाठक जैसी अच्छी लेखिका को प्रोत्साहन भी देता है, सोशल मीडिया ने स्त्रियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है ! सोशल मीडिया आज जिस दौर से गुजर रहा है वहां हमें बहुत सी चीजों को स्पष्ट करने की आवश्यकता है ! जरुरत है आज सोशल मिडिया की दिशा तय करने की आज जो ज्वलंत मुद्दे है उन्हें कैसे स्थान दिया जाए सोशल मीडिया पर ये जानना जरुरी सबसे !
पारुल जैन ने भी स्त्री पक्ष को ही प्रधान रूप में रखकर बात रखी अपनी उन्होंने कहा यहाँ जो वैचारिक स्वतंत्रता मिली है उसका दुरूपयोग ना हो इसको ध्यान में रख चलना है सबको ! शिरेश ने सत्ता के विकेंद्रीकरण को केंद्र में रखकर अपनी बात शुरू की और बहुत हद तक सही दिशा में अपनी बात को रखा ....

शुभुनाथ शुक्ल जी ने अपने वक्तव्य में कहा सोशल मीडिया और लेखन पर यहाँ तमाम सवाल उठाये गए, मैंने जब 30 साल पहले जब जनसत्ता ज्वाइन किया तब जनसत्ता एक नया प्रयोग था, उसमे पाठकीय पत्र के लिए एक मंच रखा गया जिसका नाम था चौपाल, चौपाल पर इतने पत्र आते थे चौपाल भर जाती थी, सेंकडो पत्र एक ही इशू पर आते थे, हमें कई बार पत्रों को एडिट करना पड़ता था और कई बार रोकना भी पड़ता था, लेकिन आज फेसबुक जैसी संस्था के आने से संपादक जैसी संस्था हट गई है, अब आप अपने मन से जो चाहे लिख सकते है, इसके लाभ भी है और दुर्गुण भी, समाज बनता है लोगो से उनकी सोच से उनके विचारों से, लिखने पढने में गर आपको असीमित वर्ग तक पहुच बनानी है, तो फेसबुक एक शसक्त माध्यम है उसके लिए, और मैंने इसका भरपूर उपयोग किया अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए, इसमें कोई शक नहीं की फेसबुक ने एक नया आयाम दिया है ! राजनेताओं ने फेसबुक का सबसे सही और भरपूर इस्तेमाल किया है ! तो यहाँ असली लेखक वहीं है जो राजनेताओं के प्रभाव से मुक्त हो और इस मंच से अपनी बात जिस तरह से कहना चाहता है कह सके !

पद्मा सचदेव जी ने अपने वक्तव्य में कहा मुझे यहाँ आकर अच्छा इसीलिए लग रहा है यहाँ उपस्थित सभी लोग उसी तरह एकत्र है जैसे आग तापने को लोग इकठ्ठा होते है और सार्थक चर्चा करते है, सोशल मीडिया और लेखन दोनों ही अलग विधाए है, सोशल मीडिया का आज बोलबाला है, सोशल मीडिया में जितने माध्यम है उनकी अपनी अलग ताक़त है, और लिखा हुआ वो जब चाहे बदल भी सकते है, और पुनर्विचार भी कर सकते है, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में कभी कभी सच पूरी तरह उजागर नहीं होता. पर जो भी जितना भर होता है उसका असर तुरंत होता है, सोशल मीडिया में लोगो को भड़काने का काम नहीं होना चाहिए, खबरे तोड़ मरोड़ कर ना दी जाए, भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए, मिडिया की शक्ति का सदुपयोग हो ये सबसे जरुरी है, पहले एक समय में बलात्कार जैसी घटनाएं होती थी, तो उन्हें दबा दिया जाता था, लेकिन आज ऐसी खबरों को छिपाया नहीं जाता बहुत तीव्र प्रतिक्रिया आती है, एक नई सोच नई क्रांति दिखती है, रहा लेखन तो लेखन आपको हमेशा लपेटे रखता है, जाने कब वो लम्हा आ जाए जब आप कुछ लिख पाए, लेखन मिडिया से अलग एक रचनात्मक क्रिया है, कभी यूँ भी लगता है ये एक लम्हा है, जो आपके पास आता है एक छोटे बच्चे की तरह और आँचल पकड़ आपके साथ साथ चलता है, इस लम्हे में आप जितना डूबते है उतनी रचना भीगी हुई होती है, उस लम्हे का इंतज़ार लेखक हमेशा करता है, ये मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ कविता आपके पास आती है , उसमे थोड़ी सोच आप लाते है लेकिन कविता आपके अन्दर जो बहुत समय से घुमड़ता है उसकी देन होती है ! आजकल मुक्त छंद या अजान पहर की कविता प्रचलन में है, पहले हम छंद युक्त कविताएं ही लिखते थे जिसमे मेहनत अधिक थी, कविता खुद अपने आप ही जन्मती है इसे एक शेर के साथ कह अपनी बात ख़त्म करुँगी ..........
कि टूट जाते है कभी मेरे किनारे मुझमे
डूब जाता है कभी मुझमे समंदर मेरा ............

डॉ विमलेश कांति ने अपने वक्तव्य में कहा आज मुझे यहाँ आकर बहुत सुखद अनुभूति हो रही है यहाँ आज नए मीडियाकर्मी और नई पीढ़ी के लोग अपनी बात कह रहे है हम वृद्ध लोगो के समक्ष ये अच्छी बात है, ईश्वर ने हमें एक मूह दो कान दिए है शायद इसीलिए हम कम बोले और अधिक सुने, गांधी जी भी यहीं कहते थे, मीडिया और लेखन दो ऐसे विषय है, उनमे शक्ति अपरिमित है, लेकिन शक्ति का नियत्रण कैसे हो ? कैसे हम उसे सही मार्ग पर ले जाए, ये सोचने की बात है !

कार्यक्रम का संचालन किरण आर्या और अरुन शर्मा अनंत ने किया। इंडिया अनलिमिटेड की संपादक ज्योत्सना भट्ट ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस मौके पर उपलब्धियों और प्रोत्साहन के लिए भोपाल के डा सौरभ मालवीय(पत्रकारिता), भागलपुर के मनोज सिन्हा(फोटो पत्रकारिता)और साहित्य के लिए प्रज्ञा तिवारी, राजेंद्र सिंह कुंवर फरियादी और कौशल उप्रेती विष्णु प्रभाकर सम्मान से सम्मानित किए गए। इन सभी को ये सम्मान समारोह की मुख्य अतिथि पदमा सचदेव और साहित्यकार गंगेश गुंजन ने दिया।


प्रस्तुति : किरण आर्या

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